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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
    सूक्त - सिन्धुद्वीपम् देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त
    135

    अ॒म्बयो॑ य॒न्त्यध्व॑भिर्जा॒मयो॑ अध्वरीय॒ताम्। पृ॑ञ्च॒तीर्मधु॑ना॒ पयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒म्वयः॑ । य॒न्ति॒ । अध्व॑ऽभिः । जा॒मयः॑ । अ॒ध्व॒रि॒ऽय॒ताम् ।पृ॒ञ्च॒तीः । मधु॑ना । पय॑: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अम्बयो यन्त्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्। पृञ्चतीर्मधुना पयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अम्वयः । यन्ति । अध्वऽभिः । जामयः । अध्वरिऽयताम् ।पृञ्चतीः । मधुना । पय: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    परस्पर उपकार के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (अम्बयः) पाने योग्य माताएँ और (जामयः) मिलकर भोजन करने हारी, बहिनें [वा कुलस्त्रियाँ] (मधुना) मधु के साथ (पयः) दूध को (पृञ्चतीः) मिलाती हुई (अध्वरीयताम्) हिंसा न करने हारे यजमानों के (अध्वभिः) सन्मार्गों से (यन्ति) चलती हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जो पुरुष, पुत्रों के लिये माताओं के समान और भाइयों के लिये बहिनों के समान हितकारी होते हैं, वे सन्मार्गों से आप चलते और सबको चलाते हैं ॥१॥

    टिप्पणी

    १−अम्बयः। सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११९। इति अम्ब गतौ-इन्। प्रापणीया मातरः। मातृभूता आपः। अम्बाशब्दवद् अम्बिशब्दो वेदे मातृवाची। यथा। अम्बितमे नदीतमे। ऋ० २।४१।१६। अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके। य० ३४।१८। यन्ति। इण् गतौ-लट् गच्छन्ति। अध्वभिः। अत्ति, गमनेन बलं नाशयति स अध्वा। अदेर्ध च। उ० ४।११६। इति अद भक्षणे-क्वनिप्, पृषोदरादित्वात् दस्य धः। यद्वा। अत सातत्यगमने-क्वनिप्, तकारस्य धः। सन्मार्गैः। जामयः। वसिवपियजिराजि०। उ० ४।१२५ जम भक्षणे-इञ्। जमन्ति, संगत्य भोजनं कुर्वन्ति ताः। कुलस्त्रियः। भगिन्यः। भगिनीवत् सहायभूताः पुरुषाः। अध्वरि-यताम्। अध्वानं सत्पथं रातीति। अध्वन्+रा-दानग्रहणयोः-क। यद्वा। न ध्वरति कुटिलीकरोति हिनस्तीति वा। न+ध्वृ कुटिलीकरणे, हिंसने च-अच्। अध्वर इति यज्ञनाम ध्वरतिर्हिंसाकर्मा तत्प्रतिषेधः−निरु० १।८। सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। इति अध्वर+क्यच्। शतृ। क्यचि च। पा० ७।४।३३। अकारस्य ईत्वम्। सन्मार्गदातारं कौटिल्यरहितं वा यज्ञमिच्छतां यजमानानाम्। पृञ्चतीः। पृची सम्पर्के-शतृ। ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। पृञ्चत्यः। संयोजयन्त्यः। मधुना। फलिपाटिनमिमनिजनां गुक्पटिनाकिधतश्च। उ० १।१८। इति मन ज्ञाने-उ। धश्चान्तादेशः। रसभेदेन। मधुरगुणेन। पयः। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति पीङ् पाने-असुन्। दुग्धम्, रसम् ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Water Treatment

    Meaning

    Streams of nature’s living energy, life giving mothers and loving sisters of humanity, performing the soma yajna of their life of love and non-violence, flow on by their divine paths on the vedi of life mixing the waters of living vitality with the sweets of honey and soma of joyous living for us.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−अम्बयः। सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११९। इति अम्ब गतौ-इन्। प्रापणीया मातरः। मातृभूता आपः। अम्बाशब्दवद् अम्बिशब्दो वेदे मातृवाची। यथा। अम्बितमे नदीतमे। ऋ० २।४१।१६। अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके। य० ३४।१८। यन्ति। इण् गतौ-लट् गच्छन्ति। अध्वभिः। अत्ति, गमनेन बलं नाशयति स अध्वा। अदेर्ध च। उ० ४।११६। इति अद भक्षणे-क्वनिप्, पृषोदरादित्वात् दस्य धः। यद्वा। अत सातत्यगमने-क्वनिप्, तकारस्य धः। सन्मार्गैः। जामयः। वसिवपियजिराजि०। उ० ४।१२५ जम भक्षणे-इञ्। जमन्ति, संगत्य भोजनं कुर्वन्ति ताः। कुलस्त्रियः। भगिन्यः। भगिनीवत् सहायभूताः पुरुषाः। अध्वरि-यताम्। अध्वानं सत्पथं रातीति। अध्वन्+रा-दानग्रहणयोः-क। यद्वा। न ध्वरति कुटिलीकरोति हिनस्तीति वा। न+ध्वृ कुटिलीकरणे, हिंसने च-अच्। अध्वर इति यज्ञनाम ध्वरतिर्हिंसाकर्मा तत्प्रतिषेधः−निरु० १।८। सुप आत्मनः क्यच्। पा० ३।१।८। इति अध्वर+क्यच्। शतृ। क्यचि च। पा० ७।४।३३। अकारस्य ईत्वम्। सन्मार्गदातारं कौटिल्यरहितं वा यज्ञमिच्छतां यजमानानाम्। पृञ्चतीः। पृची सम्पर्के-शतृ। ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। पृञ्चत्यः। संयोजयन्त्यः। मधुना। फलिपाटिनमिमनिजनां गुक्पटिनाकिधतश्च। उ० १।१८। इति मन ज्ञाने-उ। धश्चान्तादेशः। रसभेदेन। मधुरगुणेन। पयः। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति पीङ् पाने-असुन्। दुग्धम्, रसम् ॥

    बंगाली (1)

    पदार्थ

    (অন্বয়ঃ) প্রাপ্তি যোগ্য মাতৃগণ, (জাময়ঃ) একত্র ভোজনশীল ভগিনী বা কুল স্ত্রীগণ (মধুনা) শধুর সহিত (পয়ঃ) দুগ্ধকে (পৃঞ্চতীঃ) মিলাইয়া (অধ্বরীঘ্নতাং) হিংসা হীন যজমানের (অদ্বভিঃ) সন্মার্গ অনুসারে (য়প্তি) চলে।।
    ‘অন্বয়ঃ’ অন্ব গতৌ ইন্‌। প্রাপনীয়া মাতরঃ। ‘জাময়ঃ’ জম ভক্ষণে ইঞ। জমন্তি সংগত্য ভোজনং কুর্বন্তি তাঃ, কুলস্ক্রিয়ঃ, ভগিণাঃ, ভগিনীবং সহায়ভূতাঃ পুরুষাঃ।।

    भावार्थ

    স্নেহময়ী মাতৃগণ ও একত্র ভোজনশীল ভগিনীগণ দুগ্ধকে শধুর গুণযুক্ত রসের সহিত মিলাইয়া হিংসাহীন যজ্ঞ কর্তার সন্মার্গে গমন করে
    পুত্রের প্রতি মাতার ন্যায় এবং ভ্রাতার প্রতি ভগিনীর ন্যায় হিতকারী হইলে পুরুষ নিজে সন্মার্গে চলে এবং অন্যকে সন্মার্গে চালিত করে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    অন্বয়ো য়ন্ত্যধ্বভিৰ্জাময়ো অধ্বরীয়তাম্। পৃঞ্চতীৰ্মধুনা পয়ঃ

    ऋषि | देवता | छन्द

    সিন্ধুদ্বীপঃ কৃতি। আপঃ। গায়ত্রী

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