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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 22
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपः देवता - आपः, चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
    42

    यद॑र्वा॒चीनं॑ त्रैहाय॒णादनृ॑तं॒ किं चो॑दि॒म। आपो॑ मा॒ तस्मा॒त्सर्व॑स्माद्दुरि॒तात्पा॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अर्वा॒चीन॑म् । त्रै॒हा॒य॒नात् । अनृ॑तम् । किम् । च॒ । ऊ॒दि॒म । आप॑: । मा॒ । तस्मा॑त् । सर्व॑स्मात् । दु॒:ऽइ॒तात् । पा॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥५.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदर्वाचीनं त्रैहायणादनृतं किं चोदिम। आपो मा तस्मात्सर्वस्माद्दुरितात्पान्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अर्वाचीनम् । त्रैहायनात् । अनृतम् । किम् । च । ऊदिम । आप: । मा । तस्मात् । सर्वस्मात् । दु:ऽइतात् । पान्तु । अंहस: ॥५.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्रैहायणात्) तीन उद्योगों [परमेश्वर के कर्म, उपासना और ज्ञान] से [अलग होकर] (यत् किम् च) जो कुछ भी (अर्वाचीनम्) नीच कर्म में होनेवाले (अनृतम्) झूँठ को (ऊदिम) हम बोले हैं, (आपः) विद्वान् लोग (मा) मुझको (तस्मात् सर्वस्मात्) उस सब (दुरितात्) कठिन (अंहसः) अपराध से (पान्तु) बचावें ॥२२॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग द्वारा परमेश्वर के कर्म, उपासना और ज्ञान की प्राप्ति से मिथ्या कथन आदि दुराचारों को छोड़कर धर्मात्मा होवें ॥२२॥ इस मन्त्र का उत्तर भाग आ चुका है-अ० ७।६४।१ ॥

    टिप्पणी

    २२−(यत्) (अर्वाचीनम्) अवर+अञ्च गतौ-क्विन्, अर्वादेशः, अर्वाच्-ख प्रत्ययः। अर्वाचि अवरे अधमे कर्मणि भवम् (त्रैहायणात्) हश्च व्रीहिकालयोः। पा० ३।१।१८४। ओहाक् त्यागे, ओहाङ् गतौ च−ण्युट् बाहुलकात्। आतो युक् चिण्कृतोः। पा० ७।३।३३। युक्। तस्य समूहः। पा० ४।२।३७। अण्। त्रयाणां हायनानां गतीनां परमेश्वरस्य कर्मोपासनाज्ञानरूपाणामुद्योगानां समूहस्त्रैहायनं तस्मात् पृथक् भूत्वा (अनृतम्) असत्यम् (किम् च) किंचन (ऊदिम) वयं कथिवन्तः (आपः) म० ६। विद्वांसः (मा) माम् (तस्मात्) (सर्वस्मात्) (दुरितात्) कठिनात् (पान्तु) (अहंसः) अपराधात् ॥

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    विषय

    'दुरित व अंहस्' से दूर

    पदार्थ

    १. तीन साल की आयु तक तो पाप लगता ही नहीं, परन्तु (त्रैहायणात् अर्वाचीनम्) = तीन साल की आयु के पश्चात् [on this side of] (यत् किश्च) = जो कुछ भी (अनृतं उदिम) = हमने अनृत [असत्य] बोला है (आप:) = ये रेत:कण (तस्मात् सर्वस्मात् दुरितात्) = उस सब दुरित [दुराचरण] से तथा (अंहसः) = उस दुरित से जनित चिन्ता से-कष्ट से [trouble, anxiety, care] (मा पान्तु) = मुझे रक्षित करें।

    भावार्थ

    रेत:कणों का रक्षण हमें दुरितों व कष्टों से मुक्त करता है।

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    भाषार्थ

    [त्रैहायणात१] तीन वर्षों से (अर्वाचीनम्) अव तक, (यत् किंच) जो कोई (अनृतम्, ऊदिम) अनृत-भाषण हम ने किया है, (तस्मान्, दुरितात्) उस दुष्परिणामी तथा (सर्वस्मात्) सब दुष्परिणामी (अंहसः) पापों से (मा) मुझे (आपः२) व्यापक-परमेश्वर (पान्तु) सुरक्षित करें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में कितनी सर्वोच्च आध्यात्मिक तथा सदाचार की भावना प्रकट हुई है। वैदिक आदर्शों वाले इन्द्र अर्थात् सम्राट् तथा उस के साम्राज्य की प्रजाएं यह कहती हैं कि तीन वर्षों के समय में हम में से किसी ने अनृत-भाषण नहीं किया। यदि कोई अनृतभाषण हो गया हो, जिस का कि हम में से किसी को स्मरण नहीं, तो उस दुष्परिणामी सव प्रकार के अनृतभाषणरूपी पाप से सर्वव्यापक परमेश्वर हमें सुरक्षित करे। मन्त्र में “आपः" पद न तो प्रजाओं का वाचक है, न जल का, न शारीरिक रस-रक्त-वीर्य का, और न प्राणों का। अपितु सर्वव्यापक और हृदयान्तर्वर्ती परमेश्वर का वाचक है। आपः शब्द परमेश्वरार्थ वाचक भी है। यथा- वैदिक इन्द्र अर्थात् सम्राट् कितना आस्तिक, धार्मिक और परमेश्वर परायण है इस के साक्षी (मन्त्र १५-२१) हैं। राजा के अनुसार ही तो प्रजा होती है। इसीलिये मन्त्र २२ के अनुसार प्रजा भी सत्यपरायण है]। [१. हायन (ह+अयन)= सायन (स+अयन) सकार की विकृति हकार में, अतः सायन अर्थात् उत्तरायण और दक्षिणायन से निर्मित हायन=वर्ष। २. तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चन्द्रमाः। तदेव शुक्रं तद् व्रह्म ता आपः स प्रजापतिः (यजु० ३२/१) में, आपः= प्रजापतिः, व्रह्म।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    Whatever untrue we might have spoken in the last three years, this side lower and other than of knowledge, karma and worship, the trio of noble action, in the service of Lord Supreme, may the sages excuse and the Lord guard and save us from all that sin and evil.

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    Translation

    Whatever lies we have-told within the last threé years; may the waters shield me from all that evil and sin.

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    Translation

    May the learned men guard me well from all miserable evils which I newly think to do through the trio of my intellect, body and speech.

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    Translation

    Whatever evil I have done within the last triennium, from all that woe and sin let the learned shield and guard me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(यत्) (अर्वाचीनम्) अवर+अञ्च गतौ-क्विन्, अर्वादेशः, अर्वाच्-ख प्रत्ययः। अर्वाचि अवरे अधमे कर्मणि भवम् (त्रैहायणात्) हश्च व्रीहिकालयोः। पा० ३।१।१८४। ओहाक् त्यागे, ओहाङ् गतौ च−ण्युट् बाहुलकात्। आतो युक् चिण्कृतोः। पा० ७।३।३३। युक्। तस्य समूहः। पा० ४।२।३७। अण्। त्रयाणां हायनानां गतीनां परमेश्वरस्य कर्मोपासनाज्ञानरूपाणामुद्योगानां समूहस्त्रैहायनं तस्मात् पृथक् भूत्वा (अनृतम्) असत्यम् (किम् च) किंचन (ऊदिम) वयं कथिवन्तः (आपः) म० ६। विद्वांसः (मा) माम् (तस्मात्) (सर्वस्मात्) (दुरितात्) कठिनात् (पान्तु) (अहंसः) अपराधात् ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    अपराध विषय Dealing with Crime केवल तीन वर्ष की आयु तक – बालक का आचार व्यवहार ही क्षमा योग्य है

    Word Meaning

    तीन वर्ष तक की आयु तक ( शिशु ) तक तो पाप लगता ही नहीं , परंतु तीन साल की आयु के बाद (बालक) के रूप में जो कुछ भी हम ने असत्य बोला है अथवा दुष्कर्म किया है ,उस से जनित चिंता एवं कष्ट से मुझे रक्षित वं मुक्त करें |

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