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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - आसुरी पङ्क्तिः सूक्तम् - ओदन सूक्त
    54

    चक्षु॒र्मुस॑लं॒ काम॑ उ॒लूख॑लम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चक्षु॑: । मुस॑लम् । काम॑: । उ॒लूख॑लम् ॥३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चक्षुर्मुसलं काम उलूखलम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चक्षु: । मुसलम् । काम: । उलूखलम् ॥३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।

    पदार्थ

    (चक्षुः) [उसकी] दर्शन शक्ति (मुसलम्) मूसल [समान], [उसकी] (कामः) कामना (उलूखलम्) ओखली [समान] है ॥३॥

    भावार्थ

    परमेश्वर संसार में दृष्टि मात्र से कूटने आदि व्यवहार करता और इच्छा मात्र से सूक्ष्म बनाकर यथावत् रखने की क्रिया करता है, अर्थात् स्थूल भूतों से सूक्ष्म समीचीन रचना करना उसी के वश में है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(चक्षुः) दृष्टिसामर्थ्यम् (मुसलम्) अ० ९।६(१)।१५। मुस खण्डने-कल, चित्। कुट्टनसाधनम् (कामः) अभिलाषः (उलूखलम्) अ० ९।६(१)।१५। धान्यादिमर्दनसाधनम् ॥

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    विषय

    'बृहस्पति: शिरा'

    पदार्थ

    १. (तस्य ओदनस्य) = उस ब्रह्मौदन के विराट् शरीर का (बृहस्पतिः शिर:) = महान् लोकों का स्वामी प्रभु ही शिर:स्थानीय है, अर्थात् वह बृहस्पति ही इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। (ब्रह्म) = ज्ञान (मुखम्) = मुख है-इस ओदन के मुख से ब्रह्म [ज्ञान] की वाणियौं उच्चरित होती हैं। इस ओदन के विराट् शरीर के (द्यावापृथिवी) = द्युलोक व पृथिवीलोक (श्रोत्रे) = कान हैं। इसमें युलोक से पृथिवीलोक तक सब लोक-लोकान्तरों का ज्ञान सुनाई पड़ता है। (सूर्याचन्द्रमसौ) = सूर्य और चाँद इस ओदन-शरीर की (अक्षिणी) = आँखें हैं। सूर्य व चन्द्र द्वारा ही यह ज्ञान प्राप्त होता है। दिन का अधिष्ठातृदेव सूर्य है, रात्रि का चन्द्र। हमें दिन-रात इस ज्ञान को प्रास करना है। (सप्तऋषयः) = शरीरस्थ सप्तऋषि ही (प्राणापाना:) = इसके प्राणापान हैं। ('कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्') = दो कानों, दो नासिका-छिद्रों, दो आँखों व मुख के द्वारा ही इस ओदन-शरीर का जीवन धारित होता है। २. इस ओदन को तैयार करने के लिए (चक्षुः मुसलम्) = आँख मूसल का कार्य करती है, (काम:) = इच्छा ही इसके लिए (उलूखलम्) = ओखली है। प्रत्येक वस्तु को आँख खोलकर देखने पर वह वस्तु उस ब्रह्म की महिमा का प्रतिपादन कर रही होती है। इच्छा के बिना यह ज्ञान प्राप्त नहीं होता। (दितिः) = यह खण्डनात्मक जगत्-जिस जगत् में प्रतिक्षण छेदन-भेदन चल रहा है, वह कार्यजगत्-इस ओदन के लिए (शूर्पम्) = छाज होता है। (अदिति:) = मूल प्रकृति शर्पग्राही उस छाज को मानो पकड़े हुए है। (वात:) = यह वायु ही (अपाविनक्) = धान से तण्डलों को पृथक् करनेवाला होता है। (अश्वा: कणा:) = इस ओदन के कण अश्व' है, (गावः तण्डुला:) = ओदन के उपादानभूत तण्डुल गौवें हैं। (मशका: तुषा:) = अलग किये हुए तुष [भूसी] मशक आदि क्षुद्र जन्तु हैं। (कब्रू) = [कब to colour] चित्रित प्राणी या जगत् इस ओदन के (फलीकरणा:) = [Husks separated from the grain] छिलके हैं तथा (अभ्रम् शर:) = मेघ ऊपर आई हुई पपड़ी [Cream] की भाँति हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ने वेदज्ञान दिया। इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय ब्रह्म है। इसमें 'हलोक, पृथिवीलोक, सूर्य-चन्द्र, सप्तर्षि, चक्षु, काम, दिति, अदिति, वात, अश्व, गौ, मशक, चित्रित जगत् [प्राणी] व मेघ' इन सबका वर्णन उपलभ्य है।

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    भाषार्थ

    (चक्षुः) आंख अर्थात् परमेश्वर की ईक्षण-शक्ति मुसलस्थानी है, (कामः) और कामना (उलूखलम्) ओखली स्थानी है।

    टिप्पणी

    [सृष्टिरचना में परमेश्वर में प्रथम, ईक्षण होता है। यथा “तद् ऐक्षत्"१ (छान्दो० उप० ६/२/३), तत्पश्चात् सृष्टि रचने की कामना होती है। यथा "सोऽकामयत" (बृ० उप० १/४-७)। कृष्योदन के लिये ब्रीहि अर्थात् धान के अवहनन में प्रथम मुसल को उठाते और उस का प्रहार ओखली में करते हैं, तत्पश्चात् ओखली में तण्डुल तय्यार होता है। अतः परमेश्वरीय ईक्षण और कामना, मुसल और उलूखल स्थानी हैं]।[१. तथा "स ईक्षांचक्रे" (बृहदा० उप० अ० १/ ब्रा० ४/ ख० २/४) ।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    Chakshu, divine will and vision, is the pestle, and Kama, creative desire, is the mortar.

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    Translation

    Sight (caksus) the pestle, desiré (kama) the mortar.

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    Translation

    It's eye is like pestle and its desire is like mortar.

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    Translation

    Vision is the pestle, Desire the mortar.

    Footnote

    Just as pestle reduces the rough objects to fine ones, so does God casting His vision on the sinners purify them. Just as in a mortar, rough objects are pulverised and made intensely fine, so as desired by God, the physical, rough matter is resolved into a beautiful, fine world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(चक्षुः) दृष्टिसामर्थ्यम् (मुसलम्) अ० ९।६(१)।१५। मुस खण्डने-कल, चित्। कुट्टनसाधनम् (कामः) अभिलाषः (उलूखलम्) अ० ९।६(१)।१५। धान्यादिमर्दनसाधनम् ॥

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