अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 2
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
36
स॒प्त प्रा॒णाःस॒प्तापा॒नाः स॒प्त व्या॒नाः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒प्त । प्रा॒णा: । स॒प्त । अ॒पा॒ना: । स॒प्त । वि॒ऽआना: ॥१५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सप्त प्राणाःसप्तापानाः सप्त व्यानाः ॥
स्वर रहित पद पाठसप्त । प्राणा: । सप्त । अपाना: । सप्त । विऽआना: ॥१५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।
पदार्थ
(सप्त) सात (प्राणाः)प्राण [शरीर में भीतर जानेवाले जीवनवर्धक श्वास], (सप्त) सात (अपानाः) अपान[शरीर से बाहिर निकलनेवाले दोषनाशक प्रश्वास] और (सप्त) सात (व्यानाः) व्यान [सबशरीर में फैले हुए वायु] हैं ॥२॥
भावार्थ
परमेश्वर ने प्राणियोंके शरीर में मस्तक के भीतर दो कान, दो नथने, दो आँखें और एक मुख सात छिद्र बनायेहैं, इन को ही [सप्त ऋषयः, सप्त सिन्धवः, सप्त प्राणाः आदि] कहते हैं। विद्वान्योगी अतिथि इनकी विविध वृत्तियों को वश में करने से तत्त्वज्ञानी होकर सर्वोपकारीहोता है। इन ही सात शीर्षण्य छिद्रों के सम्बन्ध से इस सूक्त तथा १६ और १७ मेंअतिथि के सात प्राण, सात अपान और सात व्यान का वर्णन है ॥१, २॥अथर्ववेवद १०।२।६का वचन है−(कः सप्त खानि वि ततर्द शीर्षणि कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्। येषांपुरुत्रा विजयस्य मह्मनि चतुष्पादो द्विपदोयन्ति यामम्) कर्ता प्रजापति ने [प्राणी के] मस्तक में सात गोलक खोदे, यह दोनों कान, दो नथने, दोनों आँखें और एकमुख। जिनके विजय की महिमा में चौपाये और दोपाये जीव अनेक प्रकार से सन्मार्ग परचलते हैं ॥
टिप्पणी
२−(सप्त) शीर्षण्यसप्तच्छिद्रसम्बन्धेन सप्तसंख्याकाः (प्राणाः)प्र+अन जीवने-घञ्। शरीरमध्यगामिनो जीवनवर्धका वायवः (सप्त) (अपानाः) अप+अनजीवने-घञ्। शरीरबहिर्गामिनो दोषनाशका वायवः (सप्त) (व्यानाः) वि+अन जीवने-घञ्।सर्वशरीरव्यापका वायवः ॥
इंग्लिश (1)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
Seven are the pranas, inhaling breath energies, seven apanas, exhaling energies, and seven vyanas, systemic energies.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(सप्त) शीर्षण्यसप्तच्छिद्रसम्बन्धेन सप्तसंख्याकाः (प्राणाः)प्र+अन जीवने-घञ्। शरीरमध्यगामिनो जीवनवर्धका वायवः (सप्त) (अपानाः) अप+अनजीवने-घञ्। शरीरबहिर्गामिनो दोषनाशका वायवः (सप्त) (व्यानाः) वि+अन जीवने-घञ्।सर्वशरीरव्यापका वायवः ॥
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