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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 10
    सूक्त - प्रजापति देवता - याजुषी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    22

    अ॑रि॒प्रा आपो॒अप॑ रि॒प्रम॒स्मत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒रि॒प्रा: । आप॑: । अप॑ । रि॒प्रन् । अ॒स्मत् ॥१.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अरिप्रा आपोअप रिप्रमस्मत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अरिप्रा: । आप: । अप । रिप्रन् । अस्मत् ॥१.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
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    हिन्दी (1)

    विषय

    दुःख से छूटने का उपदेश।

    पदार्थ

    (अरिप्राः) निर्दोष (आपः) विद्वान् लोग (रिप्रम्) पाप को (अस्मत्) हम से (अप) दूर [पहुँचावें] ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्वानों केसत्सङ्ग और शिक्षा से जागते-सोते कभी पाप कर्म का विचार न करें ॥१०, ११॥

    टिप्पणी

    १०−(अरिप्राः)निर्दोषाः (आपः) म० ८। विपश्चितः (अप) दूरे (रिप्रम्) पापम् (अस्मत्) ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    Let the waters, the flow of will and action, purified and free from sin, dispel sin and evil from us.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(अरिप्राः)निर्दोषाः (आपः) म० ८। विपश्चितः (अप) दूरे (रिप्रम्) पापम् (अस्मत्) ॥

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