अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 3
सोमो॑ मा रु॒द्रैर्दक्षि॑णाया दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑। मा॒। रु॒द्रैः। दक्षि॑णायाः। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो मा रुद्रैर्दक्षिणाया दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठसोमः। मा। रुद्रैः। दक्षिणायाः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रक्षा करने का उपदेश।
पदार्थ
(सोमः) सबका उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर (रुद्रैः) दुष्टनाशक गुणों के साथ (मा) मुझे (दक्षिणायाः) दक्षिण वा दाहिनी (दिशः) दिशा से (पातु) बचावे, (तस्मिन्) उसमें.... [म०१] ॥३॥
भावार्थ
मन्त्र १ के समान है ॥३॥
टिप्पणी
३−(सोमः) सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (रुद्रैः) रुङ् गतौ वधे च-क्विप् तुक् च+रु वधे-ड प्रत्ययः। दुष्टनाशकैर्गुणैः (दक्षिणायाः) दक्षिणस्याः। दक्षिणहस्तस्थितायाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
'सोम' रुद्र के साथ दक्षिण में
पदार्थ
१. (सोमः) = ये सौम्य, शान्त प्रभु (रुद्रैः) = रोगों को दूर भगानेवाले [रुत् द्र] सब आवश्यक तत्त्वों के साथ (मा) = मुझे (दक्षिणायाः दिश:) = दक्षिण दिशा से (पातु) = रक्षित करें। २. (तस्मिन् क्रमे) = उस परमात्मा में स्थित होता हुआ मैं गतिवाला होता हूँ। शेष पूर्ववत् ।
भावार्थ
मैं दक्षिण दिशा में 'सोम' [शान्त] प्रभु की उपस्थिति को देखू। ये प्रभु सब रोगनाशक तत्त्वों को प्राप्त कराके मुझे भी शान्त बनाते हैं। इन्हीं में स्थित हुआ-हुआ मैं गति करूँ।
भाषार्थ
(रुद्रैः) रौद्र विद्युतों के साथ वर्तमान (सोमः) अभिषुत जल में प्रविष्ट सोमनामक परमेश्वर (दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से (मा) मेरी (पातु) रक्षा करे। तस्मिन्=पूर्ववत्।
टिप्पणी
[भूमण्डल की भूमध्यरेखा से उत्तर की ओर तो भूमि है, और दक्षिण में समुद्र। वर्षा ऋतु में दक्षिण दिशा में अर्थात् समुद्र से, प्रखर सूर्य किरणों के कारण जल मानो अभिषुत (Distilled) होकर शुद्ध हुआ अन्तरिक्ष में आरोहण करता है। इस शुद्ध जल को जिसमें कि कोई पार्थिव कण नहीं होते “सोम” कहा है। इस सोम में शक्तिरूप से प्रविष्ट परमेश्वर को भी “सोम” कहा है। जैसे अग्नि में प्रविष्ट परमेश्वर अग्नि नाम वाला, और वायु में प्रविष्ट वायु नामवाला है, वैसे ही इस अभिषुत सोम में प्रविष्ट परमेश्वर सोम नाम वाला है। सोमः=षुञ् अभिषवे। अभिषवः= सुरासन्धानम्१। समुद्र में जब सोमाभिषव क्रिया सूर्य की प्रखर किरणों के कारण होती है, तब यह अभिषुत सोम विद्युत् से आविष्ट होकर अन्तरिक्ष में आरोहण करता है। यह विद्युत् “रुद्र” है। इस प्रकार दक्षिणदिशा के साथ “सोमो रुद्रैः” का सम्बन्ध समझा जा सकता है। यही विद्युत् मेघ से पतन करती हुई रौद्ररूप वाली होती है।] [१. प्रकरण की दृष्टि से अभिषव= वाष्पीकरण।]
विषय
रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
(सोमः) सोम (रुदैः) रोदनकारी प्राणों, रुद्रों सहित (दक्षिणायाः दिशः पातु) दक्षिण दिशा, से मेरी रक्षा करे। (तस्मिन् क्रमे०) इत्यादि पूर्ववत्।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः । १-४ जगत्यः। ५, ७, १० अतिजगत्यः, ६ भुरिक्, ९ पञ्चपदा अति शक्वरी। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Protection and Security
Meaning
May Soma, inspiring spirit of divine life, with Rudras, breath of life energies, from the right direction protect and promote me. Therein I advance. Therein I rest for my mainstay. That same supreme life and breath I attain to. May that guard me. May that save me. To that I surrender myself life and soul in truth of word and deed.
Translation
May the blissful Lord (Soma), along with Rudras (adult sages), guard me from the southern quarter. I step in Him; in Him I take shelter; to that castle do I go. May He defend me; mayHe protect me. To Him I totally surrender myself. - Svahà.
Translation
Soma, the All-inspiring God guard me with Rudras (the eleven Rudras) from south.........__ soul to. Him... appreciation.
Translation
May the Creator protect me through Rudras, from the south or right side. I .... so on.
Footnote
Rudra: Ten vital breaths and the soul; also 44 years old celibates.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(सोमः) सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (रुद्रैः) रुङ् गतौ वधे च-क्विप् तुक् च+रु वधे-ड प्रत्ययः। दुष्टनाशकैर्गुणैः (दक्षिणायाः) दक्षिणस्याः। दक्षिणहस्तस्थितायाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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