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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुब्गर्भा पङ्क्तिः सूक्तम् - शर्म सूक्त
    37

    य॒ज्ञो दक्षि॑णाभि॒रुद॑क्राम॒त्तां पुरं॒ प्र ण॑यामि वः। तामा वि॑शत॒ तां प्र वि॑शत॒ सा वः॒ शर्म॑ च॒ वर्म॑ च यच्छतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒ज्ञः। दक्षि॑णाभिः। उत्। अ॒क्रा॒म॒त्। ताम्। पुर॑म्। प्र। न॒या॒मि॒। वः॒। ताम्। आ। वि॒श॒त॒। ताम्। प्र। वि॒श॒त॒। सा। वः॒। शर्म॑। च॒। वर्म॑। च॒। य॒च्छ॒तु॒ ॥१९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यज्ञो दक्षिणाभिरुदक्रामत्तां पुरं प्र णयामि वः। तामा विशत तां प्र विशत सा वः शर्म च वर्म च यच्छतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यज्ञः। दक्षिणाभिः। उत्। अक्रामत्। ताम्। पुरम्। प्र। नयामि। वः। ताम्। आ। विशत। ताम्। प्र। विशत। सा। वः। शर्म। च। वर्म। च। यच्छतु ॥१९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 19; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रक्षा के प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (यज्ञः) यज्ञ [पूजनीय व्यवहार] (दक्षिणाभिः) दक्षिणाओं [योग्य दानों] के साथ (उत् अक्रामत्) ऊँचा चढ़ा है, (ताम्) उस (पुरम्) अग्रगामिनी शक्ति..... [मन्त्र १] ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे उत्तम-उत्तम काम सुपात्रों के सत्कार से सिद्ध होते हैं, वैसे ही मनुष्यों को ईश्वरभक्ति के साथ लोगों का मान करके बड़े-बड़े काम करने चाहिए ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(यज्ञः) पूजनीयव्यवहारः (दक्षिणाभिः) योग्यदानैः। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    यज्ञ व दानवृत्ति

    पदार्थ

    १. (यज्ञ:) = यह 'देवपूजा, संगतिकरण व दान' की वृत्सिवाला पुरुष (दक्षिणाभि:) = दानों के द्वारा (उदक्रामत्) = उन्नत होता है। २. इस यज्ञशील, दान की वृत्तिवाले पुरुष को उस ब्रह्मपुरी की ओर ले-चलता हूँ। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    यज्ञमय जीवनवाले बनकर धन को लोकहित के कार्यों के लिए दान करते हुए हम ब्रह्मपुरी को प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं।

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    भाषार्थ

    (यज्ञः) यज्ञ (दक्षिणाभिः) दक्षिणाओं के कारण (उद् अक्रामत्) ऊँचाई पर चढ़ाई है, उन्नतिपथ पर चढ़ा है। (तां पुरं—यच्छतु) पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    [यज्ञः— यज्ञों की महिमा दक्षिणाओं के कारण होती है। ऋत्विजों को दक्षिणाएँ मिलने के कारण उन के द्वारा यज्ञ सम्पन्न होते हैं, और यज्ञों के द्वारा ईश्वर-प्रसादन, वायुशुद्धि, नीरोगता, वर्षा तथा अन्नोत्पादन के कारण यज्ञों की महिमा बढ़ती है। प्रकरण के अनुसार कहा जा सकता है कि अधिपति-यज्ञ ऋत्विजों को दक्षिणा-दान करता है, क्योंकि यज्ञ दक्षिणाओं का अधिपति है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Peace and Protection

    Meaning

    Yajna, creative cooperation for production and advancement, arose with Dakshinas, profuse gifts for society and posterity. O seekers, to that city of yajna and prosperity, I lead you on. Come and enter there, enter there and move forward, and may yajna and Dakshina bless you with peace and protection.

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    Translation

    The sacrifice rose up with the sacrificial gifts: I lead you forward to that castle; reach it; enter it. May it offer you happiness as well as protection.

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    Translation

    Yajna rises with remuneration of priests and to ………..defense.

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    Translation

    The value of the sacrifice is enhanced by the Dakshana, the reward given to its performers. I lead you to that town, where such sacrifices are the order of the day. Be prepared to go there and do so. May it bring peace and security for you.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(यज्ञः) पूजनीयव्यवहारः (दक्षिणाभिः) योग्यदानैः। अन्यद् गतम् ॥

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