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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वाङ्गिराः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आकूति सूक्त
    25

    बृह॒स्पति॑र्म॒ आकू॑तिमाङ्गिर॒सः प्रति॑ जानातु॒ वाच॑मे॒ताम्। यस्य॑ दे॒वा दे॒वताः॑ संबभू॒वुः स सु॒प्रणी॑ताः॒ कामो॒ अन्वे॑त्व॒स्मान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॒स्पतिः॑। मे॒। आऽकू॑तिम्। आ॒ङ्गि॒र॒सः। प्रति॑। जा॒ना॒तु॒। वाच॑म्। ए॒ताम्। यस्य॑। दे॒वाः। दे॒वताः॑। स॒म्ऽब॒भू॒वुः॒। सः। सु॒ऽप्रनी॑ताः। कामः॑। अनु॑। ए॒तु॒। अ॒स्मान् ॥४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पतिर्म आकूतिमाङ्गिरसः प्रति जानातु वाचमेताम्। यस्य देवा देवताः संबभूवुः स सुप्रणीताः कामो अन्वेत्वस्मान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पतिः। मे। आऽकूतिम्। आङ्गिरसः। प्रति। जानातु। वाचम्। एताम्। यस्य। देवाः। देवताः। सम्ऽबभूवुः। सः। सुऽप्रनीताः। कामः। अनु। एतु। अस्मान् ॥४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (आङ्गिरसः) ज्ञानवान् परमेश्वर का सेवक, (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी विद्याओं का स्वामी पुरुष] (मे) मेरी (आकूतिम्) संकल्प शक्ति, (एताम्) इस (वाचम्) वाणी को (प्रति) प्रतीति के साथ (जानातु) जाने “(सुप्रणीताः) यथाविधि चलाये गये (देवाः) विद्वानों ने (यस्य) जिस [शुभ कामना] के (देवताः) दिव्य भावों [सूक्ष्मगुणों] को (संबभूवुः) सब प्रकार पाया है, (सः) वह (कामः) शुभ कामना (अस्मान्) हम को (अनु) अनुकूलता से (एतु) प्राप्त होवे” ॥४॥

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुष परमेश्वर के भक्त ज्ञानी लोगों के बीच जो प्रतिज्ञा करे, उस को अवश्य पूरा करे, क्योंकि सुशिक्षित विद्वानों ने ही सत्य सङ्कल्प के दिव्य गुणों को जानकर मनोरथ सिद्ध किये हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां स्वामी पुरुषः (मे) मम (आकूतिम्) सङ्कल्पशक्तिम् (आङ्गिरसः) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इत्यण्। अङ्गिरसो ज्ञानिनः परमेश्वरस्य सेवकः (प्रति) प्रतीत्या (जानातु) (वाचम्) वाणीम् (एताम्) वक्ष्यमाणाम् (यस्य) कामस्य (देवाः) विद्वांसः (देवताः) तस्य भावस्त्वतलौ। पा० ५।१।११९। इति तल् प्रत्ययः। देवभावान्। दिव्यगुणान् (संबभूवुः) भू प्राप्तौ−लिट्। सम्यक् प्रापुः (सः) तादृशः (सुप्रणीताः) यथाविधिप्रेरिता देवाः (कामः) शुभकामना (अनु) आनुकूल्येन (एतु) प्राप्नोतु (अस्मान्) ॥

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    विषय

    संकल्प से ज्ञान व दिव्यशक्तियों की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (आङ्गिरस:) = अंग-प्रत्यंग में रस का संचार करनेवाला (बृहस्पति:) = ज्ञान का स्वामी प्रभु (मे) = मेरे लिए (आकूतिम्) = इस संकल्पशक्ति को (प्रतिजानातु) = प्रतिज्ञात [Introduce] करे। इस संकल्पशक्ति को हममें प्रविष्ट करे। इस संकल्पशक्ति के द्वारा (एताम् वाचम्) = इस वाणी को वेदवाणी को मुझमें प्रविष्ट करे । २. (यस्य) = जिस काम [संकल्प] के होने पर (सुप्रणीता:) = उत्तम मार्ग से अपने जीवन का प्रणयन करनेवाले (देवा:) = देववृत्ति के पुरुष (देवता:) = सब दिव्यशक्तियों को (संबभूवः) = [to meet, be united with] अपने साथ मिलाते हैं। (सः काम:) = यह प्रबल कामना [संकल्प] (अस्मान्) = हमें (अन्वेतु) = अनुकूलता से प्राप्त हो। इस संकल्प से हम अपने जीवनों को दिव्यशक्ति-सम्पन्न बनाएँ।

    भावार्थ

    शक्तिशालीज्ञान के स्वामी वे प्रभु हमें संकल्पशक्ति प्राप्त कराएँ। इसके द्वारा हमें वेदवाणी को प्राप्त कराएँ और यह संकल्प हमें दिव्यशक्तियों से युक्त करनेवाला हो। अगले सूक्त में भी ऋषि अथर्वाङ्गिराः' ही है

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    भाषार्थ

    (आङ्गिरसः) मेरे अङ्गों और अङ्गरसों में व्यापक, (बृहस्पतिः) महती शक्ति के स्वामी परमेश्वर (मे) मेरी (आकूतिम्) दृढ़ संकल्पशक्ति को, तथा (एतां वाचम्) इस प्रार्थना-वचन को (प्रति जानातु) जाने-पहचाने, (यस्य) जिस बृहस्पति के प्रसाद में (देवाः) विषयों में क्रीड़ा करनेवाली इन्द्रियाँ (देवताः) दिव्यगुणी, तथा (सुप्रणीताः) सुमार्गगामी (संबभूवुः) हो जाती हैं, (सः) वह (कामः) काम्य अर्थात् हमारी कामनाओं का विषयभूत परमेश्वर (अस्मान्) हमें (अन्वेतु) निरन्तर प्राप्त रहे।

    टिप्पणी

    [देवाः=इन्द्रियां (मन्त्र १९.३.४)। कामः= object of desire (आप्टे), यथा—“सर्वान् कामान् समश्नुते” (मनुस्मृति १.१२४)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Akuti

    Meaning

    May Brhaspati, lord of Infinity immanent in the mind and senses, know and recognise my thought and intention, acknowledge my words of thought and intention and respond favourably. May the lord, to whom the mind and senses are obedient in unison and well guided, and they grow divine thereby, approve our desires and ambitions and grant us fulfilment.

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    Translation

    May the wise and brillant Lord Supreme know this determination and this speech of mine; all the enlightened ones and the bountigs of nature have submitted to whose control, let that well-conducted desire follow us.

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    Translation

    The Lord of Vedic speech (God) who is present in the part and parcels of the universe knows my intention and this my purpose (behind it). It is that intention of which the Devas (forces like Agni etc.) well-arranged become the Devatah, the subject-matter. Let this intended purpose develop in to us.

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    Translation

    May the All-penetrating Lord of the vast Vedic Lore invest me with deep thinking power and this befitting power of speech, so that well-regulated sense-organs of mine (whose) may become divine. Thus may the Fulfiller of the desires of all come to us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां स्वामी पुरुषः (मे) मम (आकूतिम्) सङ्कल्पशक्तिम् (आङ्गिरसः) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इत्यण्। अङ्गिरसो ज्ञानिनः परमेश्वरस्य सेवकः (प्रति) प्रतीत्या (जानातु) (वाचम्) वाणीम् (एताम्) वक्ष्यमाणाम् (यस्य) कामस्य (देवाः) विद्वांसः (देवताः) तस्य भावस्त्वतलौ। पा० ५।१।११९। इति तल् प्रत्ययः। देवभावान्। दिव्यगुणान् (संबभूवुः) भू प्राप्तौ−लिट्। सम्यक् प्रापुः (सः) तादृशः (सुप्रणीताः) यथाविधिप्रेरिता देवाः (कामः) शुभकामना (अनु) आनुकूल्येन (एतु) प्राप्नोतु (अस्मान्) ॥

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