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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 45 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 45/ मन्त्र 7
    ऋषि: - भृगुः देवता - आञ्जनम् छन्दः - एकावसाना निचृन्महाबृहती सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
    17

    इन्द्रो॑ मेन्द्रि॒येणा॑वतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। मा॒। इ॒न्द्रि॒येण॑। अ॒व॒तु॒। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। आयु॑षे। वर्च॑से। ओज॑से। तेज॑से। स्व॒स्तये॑। सु॒ऽभू॒तये॑। स्वाहा॑ ॥४५.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो मेन्द्रियेणावतु प्राणायापानायायुषे वर्चस ओजसे तेजसे स्वस्तये सुभूतये स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। मा। इन्द्रियेण। अवतु। प्राणाय। अपानाय। आयुषे। वर्चसे। ओजसे। तेजसे। स्वस्तये। सुऽभूतये। स्वाहा ॥४५.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 45; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (2)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] (मा) मुझे (इन्द्रियेण) इन्द्र के चिह्न [परम ऐश्वर्य] के साथ (अवतु) बचावे, (प्राणाय) प्राण के लिये....... [म०६] ॥७॥

    भावार्थ

    मन्त्र ६ के समान है ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (इन्द्रियेण) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्ग०। पा०५।२।९३। इन्द्र-घच्। इन्द्रलिङ्गेन। इन्द्रत्वेन। परमैश्वर्येण। अन्यत् पूर्ववत् ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Anjanam

    Meaning

    May Indra, lord omnipotent, protect and promote me with the vigour and power of sense and mind for prana and apana, health, energy and full age, honour and glory, the glow of inner splendour and brilliance of performance, all round well being, and abundance of prosperity. Homage to Indra in truth of thought, word and deed.

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