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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 61/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ब्रह्मणस्पतिः छन्दः - विराट्पथ्याबृहती सूक्तम् - पूर्ण आयु सूक्त
    48

    त॒नूस्त॒न्वा मे सहे द॒तः सर्व॒मायु॑रशीय। स्यो॒नं मे॑ सीद पु॒रुः पृ॑णस्व॒ पव॑मानः स्व॒र्गे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त॒नूः। त॒न्वा᳡। मे॒। स॒हे॒। द॒तः। सर्व॑म्। आयुः॑। अ॒शी॒य॒। स्यो॒नम्। मे॒। सी॒द॒। पु॒रुः। पृ॒ण॒स्व॒। पव॑मानः। स्वः॒ऽगे ॥६१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तनूस्तन्वा मे सहे दतः सर्वमायुरशीय। स्योनं मे सीद पुरुः पृणस्व पवमानः स्वर्गे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तनूः। तन्वा। मे। सहे। दतः। सर्वम्। आयुः। अशीय। स्योनम्। मे। सीद। पुरुः। पृणस्व। पवमानः। स्वःऽगे ॥६१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 61; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (मे) अपने (तन्वा) शरीर के साथ (तनूः) [दूसरों के] शरीरों को (सहे) मैं सहारता हूँ, (दतः=दत्तः) रक्षा किया हुआ मैं (सर्वम्) पूर्ण (आयुः) जीवन (अशीय) प्राप्त करूँ (मे) मेरे लिये (स्योनम्) सुख से (सीद) तू बैठ, (पुरुः) पूर्ण होकर (स्वर्गे) स्वर्ग [सुख पहुँचानेवाले स्थान] में (पवमानः) चलता हुआ तू [हमें] (पृणस्व) पूर्ण कर ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि आप सबकी रक्षा करके अपनी रक्षा करें और विद्या और पराक्रम में पूर्ण होकर सबको विद्वान् और पराक्रमी बनाकर आप सुखी होवें और सबको सुखी करें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(तनूः) अन्येषां शरीराणि (तन्वा) शरीरेण (मे) मम। आत्मीयेन (सहे) उत्साहयामि (दतः) तकारलोपः। दत्तः। रक्षितः (सर्वम्) पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (अशीय) प्राप्नुयाम (स्योनम्) सुखम् (मे) मदर्थम् (सीद) उपविश (पुरुः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। पॄ पालनपूरणयोः-कु। पूर्णस्त्वम् (पृणस्व) पूरय अस्मान् (पवमानः) पवतेर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। गच्छन् (स्वर्गे) सुखप्रापके स्थाने ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Life at the Full

    Meaning

    May my body be strong with all my systems and pranic, psychic and intellectual potentials perfect so that I can face, challenge and forbear all forces against me and live a full life to the full capacity. O lord Brahmanaspati, be kind and gracious to my soul within, raise me to the full in abundance, purifying, sanctifying and edifying me for heavenly bliss.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(तनूः) अन्येषां शरीराणि (तन्वा) शरीरेण (मे) मम। आत्मीयेन (सहे) उत्साहयामि (दतः) तकारलोपः। दत्तः। रक्षितः (सर्वम्) पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (अशीय) प्राप्नुयाम (स्योनम्) सुखम् (मे) मदर्थम् (सीद) उपविश (पुरुः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। पॄ पालनपूरणयोः-कु। पूर्णस्त्वम् (पृणस्व) पूरय अस्मान् (पवमानः) पवतेर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। गच्छन् (स्वर्गे) सुखप्रापके स्थाने ॥

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