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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 2
    सूक्त - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - द्विपदा साम्नीबृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    38

    स॑पत्न॒क्षय॑णमसि सपत्न॒चात॑नं मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प॒त्न॒ऽक्षय॑णम् । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽचात॑नम् । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सपत्नक्षयणमसि सपत्नचातनं मे दाः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सपत्नऽक्षयणम् । असि । सपत्नऽचातनम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    विषय

    शत्रुओं से रक्षा करनी चाहिये–इसका उपदेश।

    पदार्थ

    [हे ईश्वर !] तू (सपत्नक्षयणम्) प्रकट शत्रुओं की नाशशक्ति (असि) है, (मे) मुझे (सपत्नचातनम्) प्रकट शत्रुओं के मिटाने का बल (दाः) दे, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे ईश्वर वा राजा प्रकट कुचालियों का नाश करता है, वैसे ही मनुष्य अपने प्रकट दोषों का नाश करके सुख भोगे ॥२॥

    टिप्पणी

    २–सपत्नक्षयणम्। सह+पत गतौ, ऐश्ये–न, सहस्य सः। एकार्थे पतन्ति यतन्ते ते सपत्नाः। तेषां प्रकटशत्रूणां क्षयणं नाशनम्। अन्यद् गतम् ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Prayer for Self-Protection

    Meaning

    You are the destroyer of adversaries. Give me the power to fight out and destroy my adversaries. This is the voice of prayer in truth.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २–सपत्नक्षयणम्। सह+पत गतौ, ऐश्ये–न, सहस्य सः। एकार्थे पतन्ति यतन्ते ते सपत्नाः। तेषां प्रकटशत्रूणां क्षयणं नाशनम्। अन्यद् गतम् ॥

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