अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 2
ऋषिः - कपिञ्जलः
देवता - ओषधिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुपराजय सूक्त
49
सु॑प॒र्णस्त्वान्व॑विन्दत्सूक॒रस्त्वा॑खनन्न॒सा। प्राशं॒ प्रति॑प्राशो जह्यर॒सान्कृ॑ण्वोषधे ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽप॒र्ण: । त्वा॒ । अनु॑ । अ॒वि॒न्द॒त् । सू॒क॒र: । त्वा॒ । अ॒ख॒न॒त् । न॒सा । प्राश॑म् । प्रति॑ऽप्राश: । ज॒हि॒ । अ॒र॒सान् । कृ॒णु॒ । ओ॒ष॒धे॒ ॥२७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सुपर्णस्त्वान्वविन्दत्सूकरस्त्वाखनन्नसा। प्राशं प्रतिप्राशो जह्यरसान्कृण्वोषधे ॥
स्वर रहित पद पाठसुऽपर्ण: । त्वा । अनु । अविन्दत् । सूकर: । त्वा । अखनत् । नसा । प्राशम् । प्रतिऽप्राश: । जहि । अरसान् । कृणु । ओषधे ॥२७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
बुद्धि से विवाद करे, इसका उपदेश।
पदार्थ
(सुपर्णः) सुन्दर पक्षवाले [गरुड़, गिद्ध आदि पक्षी के समान दूरदर्शी पुरुष] ने (त्या) तुझको (अनु=अन्विष्य) ढूँढकर (अविन्दत्) पाया है, (सूकरः) सूकर [सूअर पशु के समान तीव्रबुद्धि और बलवान् पुरुष] ने (त्वा) तुझको (नसा) नासिका से (अखनत्) खोदा है। (प्राशम्) मुझ प्रश्नकर्त्ता के (प्रतिप्राशः) प्रतिवादियों को (जहि) मिटा दे, (ओषधे) हे ताप को पी लेनेवाली [ओषधि के समान बुद्धि ! उन सबको] (अरसान्) फींका (कृणु) कर ॥२॥
भावार्थ
(सुपर्णः) गिद्ध, मोर आदि पक्षी बड़े तीव्रदृष्टि होते हैं और सूकर एक बलवान् पशु अपनी नासिका से अपने खाद्य तृण को पृथिवी में से खोदकर खा जाता है। इसी प्रकार दूरदर्शी, परिश्रमी और बलवान् पुरुष बुद्धि की महिमा को साक्षात् करके यथायोग्य उसका प्रयोग करते हैं और सदा जय पाते हैं ॥२॥
टिप्पणी
२–सुपर्णः। धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० २।६। इति सु+पॄ पालनपूरणयोः–न, यद्वा। पत गतौ–न प्रत्ययः, तकारस्य रेफः। सुपतनः शोभनगमनः। शीघ्रगामी। गरुडः। पक्षिमात्रम्। अनु। अन्विष्य। अविन्दत्। विद्लृ लाभे लङ्। शे मुचादीनाम्। पा० ७।१।५९। इति नुम्। अलभत। सूकरः। ॠदोरप्। पा० ३।३।५७। इति सु+कृ विक्षेपे, वा कृञ् हिंसायाम्। वा कॄङ् विज्ञाने–अप्। अथवा, ट प्रत्ययः। उकारस्य दीर्घः। अथवा, सू इति शब्दं करोति, सू+कृ–टः। सुकिरति भूमिं सुकृणाति मनुष्यान् यद्वा सुकारयते विजानाति खाद्यपदार्थान्। वराहः। अखनत्। खनु विदारे–लङ्। विदारितवान्। उद्धृतवान्। नसा। णसङ् कौटिल्ये–क्विप्। नासिकया ॥
विषय
सुपर्ण तथा सूकर द्वारा
पदार्थ
१. हे (ओषधे) = पाटा नामक ओषधे ! (त्वा) = तुझे (सुपर्ण:) = गरुड़ (अनु अविन्दत्) = क्रमश: खोज निकालता है। विष आदि के अपहरण के लिए गरुड़ को इसकी आवश्कता रही है। वह वासनारूप [Instinctively] से इस ओषधि को खोज लेता है। २. (सूकरः) = सूअर (त्वा) = तुझे (नसा) = थुथनी से [नासिका सहित दंष्ट्रा से] (अखनत्) = खोद लेता है। भूमि के अन्दर उत्पन्न होनेवाली इस ओषधि को यह बाहर निकाल लेता है। ३. हे ओषधे! तू (प्राशम्) = पथ्यसेवी के (प्रतिप्राश:) = विरोधी बनकर उसे खा जानेवाले रोगों को (जहि) = नष्ट कर दे। इन रोगकृमियों को (अरसान् कृणु) = शुष्क कर दे।
भावार्थ
पाटा ओषधि को सुपर्ण और सूअर प्रभु-प्रदत्त बासना से ढूँढ लेते हैं और इसके सेवन से विषैले प्रभावों को दूर करते हैं।
भाषार्थ
(सुपर्णः) गरुड़ ने (त्वा) तुझे (अनु अविन्दत्) दूंडा, तेरा अन्वेषण किया, (सूकरः) सूअर ने (नसा) नाक के द्वारा (त्वा) तुझे (अखनत्) खोद कर भूमि से निकाला। (प्राशम् """) अर्थ पूर्ववत् ।
टिप्पणी
[पाटा ओषधि के पहिचान के साधन हैं सुपर्ण और सूअर।]
विषय
ओषधि के दृष्टान्त से चितिशक्ति का वर्णन ।
भावार्थ
(सुपर्णः) शोभन ज्ञानवान्, विद्वान्, पुरुष (त्वा) तुझको (अनु अविन्दत्) खोज कर प्राप्त कर लेता है। (सूकरः) प्राणरूप वायु या प्राणायाम का उत्तम अभ्यासी (त्वा) तुझे (नसा) घ्राणेन्द्रिय द्वारा प्राणायाम का अभ्यास करके (अखनत्) गुप्त गुहा से खोद लेता है, तेरा मूल जान लेता है । (प्राशं प्रतिमाशः) पूर्ववत्।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कपिञ्जल ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-४ अनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory
Meaning
You are the gift of suparna the Garuda, eagle power of refulgence and high imagination. You are the achievement of Sukara, holiest action of the immaculate soul, with high pranic energy. Answer all doubts and questions raised by sceptics and negationists and silence them one by one. Expose them all as empty and meaningless.
Translation
The eagle (suprņa) mighty wings has found you out and the wild boar (sükara) has dug you out with his muzzle (nasà) . May you send a counter-missile against the missile. O herb, make my rivals sapless, dull and flat.
Translation
The bird discovers this plant and the boar unearth it by his snout. This herbaceous plant makes diseases dull becoming counter-questioner to him who questions its efficiency.
Translation
O intellect, thou art discovered through investigation, by a person far- seeing like an eagle, and perceived by a person sagacious and strong like a boar that unearths his food with his sprout. O intellect, refute the adversaries of mine, the debater. O intellect efficacious like the medicine that removes fever, render all my opponents in the debate dull and flat!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२–सुपर्णः। धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० २।६। इति सु+पॄ पालनपूरणयोः–न, यद्वा। पत गतौ–न प्रत्ययः, तकारस्य रेफः। सुपतनः शोभनगमनः। शीघ्रगामी। गरुडः। पक्षिमात्रम्। अनु। अन्विष्य। अविन्दत्। विद्लृ लाभे लङ्। शे मुचादीनाम्। पा० ७।१।५९। इति नुम्। अलभत। सूकरः। ॠदोरप्। पा० ३।३।५७। इति सु+कृ विक्षेपे, वा कृञ् हिंसायाम्। वा कॄङ् विज्ञाने–अप्। अथवा, ट प्रत्ययः। उकारस्य दीर्घः। अथवा, सू इति शब्दं करोति, सू+कृ–टः। सुकिरति भूमिं सुकृणाति मनुष्यान् यद्वा सुकारयते विजानाति खाद्यपदार्थान्। वराहः। अखनत्। खनु विदारे–लङ्। विदारितवान्। उद्धृतवान्। नसा। णसङ् कौटिल्ये–क्विप्। नासिकया ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(সুপর্ণঃ) গরুড়/উত্তম ডানাবিশিষ্ট (ত্বা) তোমাকে (অনু অবিন্দৎ) খুঁজেছে, তোমার অন্বেষণ করেছে, (সূকরঃ) শূকর (নসা) নাকের দ্বারা (ত্বা) তোমাকে (অখনৎ) খনন করে ভূমি থেকে উদ্ধৃত করেছে। (প্রাশম্) প্রকর্ষরূপে ভোজনকারীকে উদ্দিষ্ট করে (প্রতিপ্রাশঃ) প্রতিদ্বন্দ্বী প্রাশদের (ওষধে) হে ঔষধি তুমি (জহি) নাশ করো (অরসান্ কুণু) এবং তাঁদের রসবিহীন করো।
टिप्पणी
[পাটা ঔষধি চেনার সাধন হল সুপর্ণ এবং শূকর।]
मन्त्र विषय
বুদ্ধ্যা বিবাদঃ কর্ত্তব্য ইত্যুপদিশ্যতে
भाषार्थ
(সুপর্ণঃ) সুন্দর পক্ষবিশিষ্ট [গরুড়, বাজ আদি পক্ষীর সমান দূরদর্শী পুরুষ] (ত্যা) তোমাকে (অনু=অন্বিষ্য) অন্বেষণ করে (অবিন্দৎ) প্রাপ্ত করেছে, (সূকরঃ) শূকর [শূকর পশুর সমান তীব্রবুদ্ধি ও বলবান্ পুরুষ] (ত্বা) তোমাকে (নসা) নাসিকা দ্বারা (অখনৎ) উদ্ধৃত করেছে। (প্রাশম্) [আমার] প্রশ্নকর্ত্তার (প্রতিপ্রাশঃ) প্রতিবাদীদের (জহি) বিনাশ করো, (ওষধে) হে তাপ পানকারী [ঔষধির সমান বুদ্ধি ! সেই সকলকে] (অরসান্) ক্ষীণ/নীরস (কৃণু) করো ॥২॥
भावार्थ
(সুপর্ণঃ) বাজ, ময়ূর আদি পক্ষী তীব্রদৃষ্টিসম্পন্ন হয় এবং শূকর এক বলবান্ পশু নিজের নাসিকা দ্বারা নিজের খাদ্য তৃণকে মাটি থেকে খুঁড়ে খায়। এইভাবে দূরদর্শী, পরিশ্রমী ও বলবান্ পুরুষ বুদ্ধির মহিমা সাক্ষাৎ করে যথাযোগ্য তার প্রয়োগ করে এবং সদা জয় প্রাপ্ত করে ॥২॥
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