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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - वनस्पतिः, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
    33

    आगा॒दुद॑गाद॒यं जी॒वानां॒ व्रात॒मप्य॑गात्। अभू॑दु पु॒त्राणां॑ पि॒ता नृ॒णां च॒ भग॑वत्तमः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒गा॒त् । उत् । अ॒गा॒त्। अ॒यम् । जी॒वाना॑म् । व्रात॑म् । अपि॑ । अ॒गा॒त् । अभू॑त् । ऊं॒ इति॑ । पु॒त्राणा॑म् । पि॒ता । नृ॒णाम् । च॒ । भग॑वत्ऽतम: ॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आगादुदगादयं जीवानां व्रातमप्यगात्। अभूदु पुत्राणां पिता नृणां च भगवत्तमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अगात् । उत् । अगात्। अयम् । जीवानाम् । व्रातम् । अपि । अगात् । अभूत् । ऊं इति । पुत्राणाम् । पिता । नृणाम् । च । भगवत्ऽतम: ॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य अपने आप को ऊँचा करे।

    पदार्थ

    (अयम्) यह [प्राणी] (आ+अगात्) आया है, (उत् अगात्) ऊपर आया है, (जीवानाम्) जीवितों [पुरुषार्थियों] के (व्रातम्) समूह में (अपि) भी (अगात्) प्राप्त हुआ है। वह (पुत्राणाम्) पुत्रों का (पिता) पिता (च) और (नृणाम्) मनुष्यों में (भगवत्तमः) अत्यन्त ऐश्वर्यवान् (उ) अवश्य (अभूत्) हुआ है ॥२॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी मनुष्य ही जीवित होते हैं, इससे मनुष्य संसार में जन्म पाकर ब्रह्मचर्यसेवन से विद्या ग्रहण करें और पुरुषार्थियों के समान पुरुषार्थी होकर पुत्रादि सब प्रजा का पालन-पोषण करके महाप्रतापी और यशस्वी होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २–आ+अगात् इण् गतौ–लुङ्। आगतवान्। उत्+अगात्। उदस्थात्। संचारक्षमोऽभूत्। जीवानाम्। जीवितानां पुरुषार्थिनाम्। व्रातम्। भृमृदृशियजि०। उ० ३।११०। इति वृञ् वरणे–अतच् पृषोदरादिः। यद्वा, व्रतं कर्म–निघ० २।१। तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इति व्रत–अण्। व्राताः, मनुष्याः–निघ० २।३। समूहम्। पुत्राणाम्। अ० १।११।५। सुतानाम्। सन्तानानाम्। नृणाम्। नयतीति ना। नयतेर्डिच्च। उ० २।१००। इति णीञ् प्रापणे–ऋ प्रत्ययः, स च डित्। नृ च। पा० ६।४।६। इति नामि दीर्घाभावो विकल्पत्वात्। नेतॄणाम्। पुरुषाणाम्। भगवत्तमः। अतिशायने तमबिष्ठनौ। पा० ५।३।५५। इति भगवत्+तमप्। अतिशयेन भगवान् ऐश्वर्यवान् ॥

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    विषय

    रोगमुक्ति के परिणाम

    पदार्थ

    १. (अयम्) = औषध-प्रयोग से रोगमुक्त हुआ-हुआ यह पुरुष (आगात) = समन्तात् गतिवाला हुआ है। (उद् आगात्) = यह उत्कृष्ट गतिवाला हुआ है। (जीवानां वातं अपि) जीवों के समूह में भी (आगात्) = आया है-सभा-समाज में आने-जाने लग गया है। २. इनता ही नहीं (उ) = और विवाहित होकर यह (पुत्राणां पिता अभूत) = पुत्रों का पिता हुआ है (च) = और (नृणां भगवत्तमः) = मुनष्यों में उत्तम ऐश्वर्यवाला हुआ है। रोगपीडित अवस्था में इसका आना-जाना रुका हुआ था, लेटा ही रहता था। विवाहित होने का प्रश्न ही नहीं था, धनार्जन के कामों को कर सकना सम्भव न था। अब ठीक होकर यह सब-कुछ करने लगा है।

    भावार्थ

    'ग्राही' रोग ने इसे समाज में आने-जाने से रोक रक्खा था। यह विवाहित होने योग्य भी न लगता था, कुछ कमाना इसके लिए सम्भव ही न था। अब औषध-प्रयोग से रोग से ऊपर उठकर यह समाज में आने-जाने लगा है, पिता बना है और धनार्जन कर पाया है।

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    भाषार्थ

    (अयम्) यह रोगी (आगात् ) आ गया है, (उदगात्) तथा उठ आया है, (जीवानाम व्रातम् अपि) जीवितों के समूह के प्रति भी ( अगात् ) आया है। (उ) तथा (पुत्राणाम् ) पूर्वोत्पन्न पुत्रों का (पिता) पुन: रक्षक ( अभूत् ) हो गया है, (च) और ( नृणाम् ) मनुष्यों में (भगवत्तमः) अतिशय भाग्य शाली हो गया है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rheumatism

    Meaning

    The patient (earlier seized with rheumatism in every joint) has got up, has come and is here with the crowd of healthy people. He is now up and active with his child as a father normally is, and among the people he is the most actively fortunate.

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    Translation

    This person has come round, has risen up and has also come into the community of the living.He has become father of sons and most reputed among men.

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    Translation

    The patients (thus regaining life) wanders hither and rise up He mixes up in the crowd of people and again becomes the father of children and becomes most fortunate amongst the men.

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    Translation

    This God is present in the world, but is above the worldly painful shackles. He reaches all the souls through omnipresence. O God, Thou art the Father of all souls. Thy sons, Thou art the Mightiest of all men.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २–आ+अगात् इण् गतौ–लुङ्। आगतवान्। उत्+अगात्। उदस्थात्। संचारक्षमोऽभूत्। जीवानाम्। जीवितानां पुरुषार्थिनाम्। व्रातम्। भृमृदृशियजि०। उ० ३।११०। इति वृञ् वरणे–अतच् पृषोदरादिः। यद्वा, व्रतं कर्म–निघ० २।१। तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। इति व्रत–अण्। व्राताः, मनुष्याः–निघ० २।३। समूहम्। पुत्राणाम्। अ० १।११।५। सुतानाम्। सन्तानानाम्। नृणाम्। नयतीति ना। नयतेर्डिच्च। उ० २।१००। इति णीञ् प्रापणे–ऋ प्रत्ययः, स च डित्। नृ च। पा० ६।४।६। इति नामि दीर्घाभावो विकल्पत्वात्। नेतॄणाम्। पुरुषाणाम्। भगवत्तमः। अतिशायने तमबिष्ठनौ। पा० ५।३।५५। इति भगवत्+तमप्। अतिशयेन भगवान् ऐश्वर्यवान् ॥

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    बंगाली (1)

    पदार्थ

    (অয়ম্) এই [প্রাণী] (আ+অগাৎ) আসিয়াছে, (উত, অগাৎ) উপর আসিয়া, (জীবানাম্) জীবিত [পুরুষার্থীর] (ব্রাতম্) সমূহে (অপি)(অগাৎ) প্রাপ্ত হইয়া সে (পুত্রাণাম্) পুত্রের (পিতা) পিতা (চ) এবং (নৃণাম্) মনুষ্যের মধ্যে (ভগবত্তমঃ) অত্যন্ত ঐশ্বর্যবান (উ) অবশ্য (অভূৎ) হইয়া থাকে।।

    भावार्थ

    এই [প্রাণী] আসিয়াছে, উপরে আসিয়া, জীবিত [পুরুষার্থীর] সমূহে ও প্রাপ্ত হইয়া। সে পুত্রের পিতা এবং মনুষ্যের মধ্যে অত্যন্ত ঐশ্বর্যবান অবশ্য হইয়া থাকে।।
    পুরুষার্থী মনুষ্যই জীবিত হইয়া, ইহা হইতে মনুষ্য সংসারে জন্ম লইয়া ব্রহ্মচর্য সেবন দ্বারা বিদ্যা গ্রহণ করে এবং পুরুষার্থী হইয়া পুত্রাদি সমস্ত প্রজার পালন-পোষণ করিয়া মহাপ্রতাপী এবং যশস্বী হইবে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    আগাদুদগাদয়ং জীবানাং ব্রাতমপ্যগাত্ । অভূদু পুত্ৰাণাং পিতা নৃণাং চ ভগবত্তমঃ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। বনষ্পতিঃ। অনুষ্টুপ্

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