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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१६
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    अप॒ ज्योति॑षा॒ तमो॑ अ॒न्तरि॑क्षादु॒द्नः शीपा॑लमिव॒ वात॑ आजत्। बृह॒स्पति॑रनु॒मृश्या॑ व॒लस्या॒भ्रमि॑व॒ वात॒ आ च॑क्र॒ आ गाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑ । ज्योति॑षा । तम॑: । अ॒न्तरि॑क्षात् । उ॒द्न: । शीपा॑लम्ऽइव । वात॑:। आ॒ज॒त् ॥ बृह॒स्पति॑: । अ॒नु॒ऽमृ‌श्य॑ । व॒लस्य॑ । अ॒भ्रम्ऽइ॑व । वात॑: । आ । च॒क्रे॒ । आ । गा: ॥१६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप ज्योतिषा तमो अन्तरिक्षादुद्नः शीपालमिव वात आजत्। बृहस्पतिरनुमृश्या वलस्याभ्रमिव वात आ चक्र आ गाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । ज्योतिषा । तम: । अन्तरिक्षात् । उद्न: । शीपालम्ऽइव । वात:। आजत् ॥ बृहस्पति: । अनुऽमृ‌श्य । वलस्य । अभ्रम्ऽइव । वात: । आ । चक्रे । आ । गा: ॥१६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 16; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [जैसे सूर्य] (ज्योतिषा) ज्योति के साथ (अन्तरिक्षात्) आकाश से (तमः) अन्धकार को, और (इव) जैसे (वातः) पवन (उद्नः) जल पर से (शीपालम्) सेवार घास को, और (इव) जैसे (वातः) पवन (अभ्रम्) बादल को, [वैसे ही] (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी वेदविद्या के रक्षक महाविद्वान्] ने (अनुमृश्य) बार-बार विचारकर (वलस्य) हिंसक असुर को (अप आजत्) निकाल दिया है, (आ) और (गाः) वेदवाणियों को (आ चक्रे) स्वीकार किया है ॥॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य अन्धकार का, और जैसे पवन सेवार, कमल आदि, और मेघ को हटा देता है, वैसे ही विद्वान् पुरुष दुराचारियों को हटाकर वेद की आज्ञा का पालन करे ॥॥

    टिप्पणी

    −(अप) दूरीकरणे (ज्योतिषा) प्रकाशेन सह (तमः) अन्धकारम् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् सूर्यो यथा (उद्नः) उदकात् (शीपालम्) शीङो धुक्लक्वलञ्वालनः। उ० ४।३८। शीङ् स्वप्ने-वालन्, स च कित्, वस्य पः। शैवालम्। उदके लतारूपमुत्पन्नं तृणविशेषम्। जलनीलीम् (इव) यथा (वातः) पवनः (आजत्) अज गतिक्षेपणयोः-लङ्। अगमयत (बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाण्या रक्षकः (अनुमृश्य) निरन्तरं विचार्य (वलस्य) द्वितीयार्थे षष्ठी। हिंसकं दैत्यम् (अभ्रम्) मेघम् (इव) (वातः) (आ) समुच्चये (आ चक्रे) स्वीकृतवान् (गाः) वेदवाणीः ॥

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    विषय

    उद्नः शीपालम् इव

    पदार्थ

    १. (बृहस्पतिः) = ज्ञान का स्वामी प्रभु (ज्योतिषा) = ज्ञान-ज्योति के द्वारा (अन्तरिक्षात्) = हमारे हृदयान्तरिक्ष से (तमः) = अन्धकार को (अप आजत्) = दूर फेंक देता है, (इव) = जैसेकि (वात:) = वायु उद्नः पानी पर से (शीपालम्) = शैवाल-काई को दूर फेंक देता है। प्रभु ज्योति के द्वारा अज्ञानान्धकार को इसीप्रकार परे फेंक देते हैं जैसेकि तेज़ वायु पानी पर से काई को परे फेंक देती है। २. वे प्रभु (वलस्य) = ज्ञान के आवरणभूत कामरूप आसुरभाव को (अनुमश्य) = क्रमश: दूर करके [मृश्-to remove, rule off] गाः आचक्रे चारों ओर ज्ञान-रश्मियों को फैलानेवाले होते हैं। प्रभु काम [वृत्र] को इसप्रकार दूर कर देते हैं, (इव) = जैसेकि (वात:) = वायु (अभ्रम्) = मेघ को दूर कर देता है।

    भावार्थ

    प्रभु हमारे हदयान्तरिक्ष से अन्धकार को ज्योति के द्वारा इसप्रकार भगा देते हैं, जैसे तेज वायु मेष को छिन्न-भिन्न कर देता है।

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    भाषार्थ

    (बृहस्पतिः) बृहती-पृथिवी के अधिपति (वातः) वायु ने (वलस्य) घेरनेवाले मेघ की शक्ति को (अनुमृश्य) मानो जांचकर (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से (तमः) तमोभूत-मेघ को (अप आजत्) हटा दिया है। और (ज्योतिषा) सूर्य की ज्योति द्वारा प्रकाश प्रकट कर दिया हैं। वायु ने तमोभूत-मेघ को ऐसे हटाया है, (इव) जैसे कि (उद्नः) जलक्रीड़ा करता हुआ बैल, जल से (शीपालम्) शैवाल अर्थात् सेवार को हटा देता है। (वातः) वायु ने (इव) जैसे (अभ्रम्) मेघ को (आ चक्रे) पैदा किया था, वैसे ही उसने (गाः) मेघ से जलों को भी प्रकट कर दिया है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में कवितारूप में वायु का वर्णन है। मानसून वायुएँ मेघ बनाती तथा जल बरसाती हैं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    As the sun removes darkness with light from the middle regions, as the wind removes the cover of moss and grass from the surface of water, so does Brhaspati, lord of the expansive universe, with deep thought, remove the cover of the darkness of nescience and sets in motion the dynamics of nature’s creativity in circuits of energy as the motions of the wind.5. As the sun removes darkness with light from the middle regions, as the wind removes the cover of moss and grass from the surface of water, so does Brhaspati, lord of the expansive universe, with deep thought, remove the cover of the darkness of nescience and sets in motion the dynamics of nature’s creativity in circuits of energy as the motions of the wind.

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    Translation

    Brihaspati, the atmospheric heat gathers the rays grasping from the darkening cloud (Vala) as the sun dispels the darkness from the sky with its light, as the gust of wind blows a lily from the ‘surface ‘of the water and as the air blows away cloud.

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    Translation

    Brihaspati, the atmospheric heat gathers the rays grasping from the darkening cloud (Vala) as the sun dispels the darkness from the sky with its light, as the gust of wind plows a lily from the surface of the water and as the air plows away cloud.

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    Translation

    Just as the fast wind removes the moss from the surface of water, similarly does the Sun efface darkness from the atmosphere by its light. Just as the strong wind, dispersing the darkening cloud, reveals the rays of the Sun, so does a Vedic scholar dispelling the forces of darkness and ignorance, spreads the light of knowledge all around.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(अप) दूरीकरणे (ज्योतिषा) प्रकाशेन सह (तमः) अन्धकारम् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् सूर्यो यथा (उद्नः) उदकात् (शीपालम्) शीङो धुक्लक्वलञ्वालनः। उ० ४।३८। शीङ् स्वप्ने-वालन्, स च कित्, वस्य पः। शैवालम्। उदके लतारूपमुत्पन्नं तृणविशेषम्। जलनीलीम् (इव) यथा (वातः) पवनः (आजत्) अज गतिक्षेपणयोः-लङ्। अगमयत (बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाण्या रक्षकः (अनुमृश्य) निरन्तरं विचार्य (वलस्य) द्वितीयार्थे षष्ठी। हिंसकं दैत्यम् (अभ्रम्) मेघम् (इव) (वातः) (आ) समुच्चये (आ चक्रे) स्वीकृतवान् (गाः) वेदवाणीः ॥

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