Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 22 के मन्त्र

मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
    ऋषि: - त्रिशोकः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२२
    35

    अ॒भि त्वा॑ वृषभा सु॒ते सु॒तं सृ॑जामि पी॒तये॑। तृ॒म्पा व्यश्नुही॒ मद॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । वृ॒ष॒भ॒ । सु॒ते । सु॒तम् । सृ॒जा॒मि॒ । पी॒तये॑ । तृ॒म्प । वि । अ॒श्नु॒हि॒ । मद॑म् ॥२२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा वृषभा सुते सुतं सृजामि पीतये। तृम्पा व्यश्नुही मदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । त्वा । वृषभ । सुते । सुतम् । सृजामि । पीतये । तृम्प । वि । अश्नुहि । मदम् ॥२२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (2)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (वृषभ) हे वीर ! (सुते) निचोड़ने पर (सुतम्) निचोड़े हुए [सोम रस] को (पीतये) पीने के लिये (त्वा अभि) तुझे (सृजामि) मैं देता हूँ। (तृम्प) तू तृप्त हो और (मदम्) आनन्द को (वि अश्नुहि) प्राप्त हो ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे राजा सद्वैद्यों द्वारा सोम आदि उत्तम ओषधियों के सेवन से प्रसन्न रहें, वैसे ही मनुष्य वेद आदि सत्य शास्त्रों का तत्त्व ग्रहण करके आनन्द पावें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १-३। ऋग्वेद में हैं-८।४।२२-२४ तथा सामवेद में हैं- उ० १।२ तृच ७ तथा मन्त्र १ सामवेद में है-पू० २।७।७ ॥ १−(अभि) प्रति (त्वा) त्वाम् (वृषभ) हे वीर ! हे इन्द्र (सुते) अभिषुते। संस्कृते (सुतम्) अभिषुतं संस्कृतं सोमम् (सृजामि) त्यजामि। ददामि (पीतये) पानाय (तृम्प) तृम्प तृप्तौ। तृप्तो भव (वि) विविधम् (अश्नुहि) अशू व्याप्तौ-परस्मैपदम्। अश्नुष्व। प्राप्नुहि (मदम्) हर्षम् ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Lord of generous and creative power, when the yajna is on and soma is distilled, I prepare the cup and offer you the drink. Pray accept, drink to your heart’s content and enjoy the ecstasy of bliss divine.

    Top