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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२२
    32

    आ हर॑यः ससृज्रि॒रेऽरु॑षी॒रधि॑ ब॒र्हिषि॑। यत्रा॒भि सं॒नवा॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । हर॑य: । स॒सृ॒जि॒रे॒ । अरु॑षी: । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ । यत्र॑ । अ॒भि । स॒म्ऽनवा॑महे ॥२२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ हरयः ससृज्रिरेऽरुषीरधि बर्हिषि। यत्राभि संनवामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । हरय: । ससृजिरे । अरुषी: । अधि । बर्हिषि । यत्र । अभि । सम्ऽनवामहे ॥२२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 22; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (हरयः) दुःख हरनेवाले मनुष्य (अरुषीः) गतिशील [उद्योगी] प्रजाओं को (बर्हिषि) बढ़ती के स्थान में (अधि) अधिकारपूर्वक (आ ससृज्रिरे) लाये हैं, (यत्र) जहाँ पर [तुझ राजा को] (अभि) सब ओर से (संनवामहे) हम मिलकर सराहते हैं ॥॥

    भावार्थ

    जिस राजा की सुनीति से विद्या द्वारा उन्नति होवे, प्रजा सहित विद्वान् जन उसके गुणों का गान करें ॥॥

    टिप्पणी

    −(हरयः) हरयो मनुष्यनाम-निघ० २।३। दुःखहर्तारो विद्वांसः (आ ससृज्रिरे) सृज विसर्गे-लिट्, रुडागमः। आ ससृजिरे। आनीतवन्तः (अरुषीः) अ० २०।१७।९। ऋ गतौ-उषच्, ङीप्। गतिशीलाः। उद्योगिनीः प्रजाः (अधि) अधिकारपूर्वकम् (बर्हिषि) बृह वृद्धौ-इसुन्। वृद्धिस्थाने (यत्र) यस्मिन् स्थाने (अभि) सर्वतः (संनवामहे) णु स्तुतौ। राजानं वयं मिलित्वा स्तुमः ॥

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    इंग्लिश (2)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Let the vibrations of divinity, like crimson rays of dawn which bring the sun to the earth, bring Indra on to our sacred grass where we humans meet and pray and celebrate the lord in song together.

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    Translation

    Men engage the progressive men on the place of excellence where pay homage to them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(हरयः) हरयो मनुष्यनाम-निघ० २।३। दुःखहर्तारो विद्वांसः (आ ससृज्रिरे) सृज विसर्गे-लिट्, रुडागमः। आ ससृजिरे। आनीतवन्तः (अरुषीः) अ० २०।१७।९। ऋ गतौ-उषच्, ङीप्। गतिशीलाः। उद्योगिनीः प्रजाः (अधि) अधिकारपूर्वकम् (बर्हिषि) बृह वृद्धौ-इसुन्। वृद्धिस्थाने (यत्र) यस्मिन् स्थाने (अभि) सर्वतः (संनवामहे) णु स्तुतौ। राजानं वयं मिलित्वा स्तुमः ॥

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