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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 24 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
    ऋषि: - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४
    35

    उप॑ नः सु॒तमा ग॑हि॒ सोम॑मिन्द्र॒ गवा॑शिरम्। हरि॑भ्यां॒ यस्ते॑ अस्म॒युः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । न॒: । सु॒तम् ।आ । ग॒हि॒ । सोम॑म् । इ॒न्द्र॒ । गोऽआ॑शिरम् ॥ हरि॑ऽभ्याम् । य: । ते॒ । अ॒स्म॒ऽयु: ॥२४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप नः सुतमा गहि सोममिन्द्र गवाशिरम्। हरिभ्यां यस्ते अस्मयुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । न: । सुतम् ।आ । गहि । सोमम् । इन्द्र । गोऽआशिरम् ॥ हरिऽभ्याम् । य: । ते । अस्मऽयु: ॥२४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    विद्वानों के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले विद्वान्] (नः) हमारे (सुतम्) सिद्ध किये हुए, (गवाशिरम्) पृथिवी पर फैले हुए (सोमम्) ऐश्वर्य को (उप) समीप में (आ गहि) सब ओर से प्राप्त हो, (यः) जो (ते) तेरा [ऐश्वर्य] (हरिभ्याम्) दो घोड़ों [के समान व्यापक बल और पराक्रम] से (अस्मयुः) हमें चाहनेवाला है ॥१॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग पृथिवी के सब वैभवों को एक दूसरे के लिये उपयोगी बनावें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-३।४२।१-९ ॥ १−(उप) समीपे (नः) अस्माकम् (सुतम्) संस्कृतम् (आ) समन्तात् (गहि) प्राप्नुहि (सोमम्) ऐश्वर्यम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् विद्वन् (गवाशिरम्) अ० २०।२२।६। अशेर्नित्। उ० १।२। गो+आङ्+अशू व्याप्तौ-किरन्। पृथिव्यां व्याप्तम् (हरिभ्याम्)। अ० २०।२३।१। अश्वसदृशाभ्यां व्यापकाभ्यां बलपराक्रमाभ्याम् (यः) सोमः। ऐश्वर्यम् (ते) तव (अस्मयुः) अ० २०।२३।७। अस्मान् कामयमानः ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Indra, lord of power and honour, come hither to our soma yajna and taste our soma seasoned with cow’s milk. Come by your chariot drawn by horses, self- programmed to reach us.

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