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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 10
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३७
    43

    ए॒ते स्तोमा॑ न॒रां नृ॑तम॒ तुभ्य॑मस्म॒द्र्यञ्चो॒ दद॑तो म॒घानि॑। तेषा॑मिन्द्र वृत्र॒हत्ये॑ शि॒वो भूः॒ सखा॑ च॒ शूरो॑ऽवि॒ता च॑ नृ॒णाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ते । स्तोमा॑: । न॒राम् । नृ॒ऽत॒म॒ । तुभ्य॑म् । अ॒स्म॒द्र्य॑ञ्च: । दद॑त: । म॒घानि॑ ॥ तेषा॑म् । इ॒न्द्र॒ । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑ । शि॒व: । भू: । सखा॑ । च॒ । शूर॑: । अ॒वि॒ता । च॒ । नृ॒णाम् ॥३७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एते स्तोमा नरां नृतम तुभ्यमस्मद्र्यञ्चो ददतो मघानि। तेषामिन्द्र वृत्रहत्ये शिवो भूः सखा च शूरोऽविता च नृणाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एते । स्तोमा: । नराम् । नृऽतम । तुभ्यम् । अस्मद्र्यञ्च: । ददत: । मघानि ॥ तेषाम् । इन्द्र । वृत्रऽहत्ये । शिव: । भू: । सखा । च । शूर: । अविता । च । नृणाम् ॥३७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 37; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (नराम्) नरों के बीच (नृतम) हे बड़े नर ! [नेता] (एते) यह (अस्मद्र्यञ्चः) हमको मिलनेवाले (स्तोमाः) प्रशंसनीय विद्वान् लोग (तुभ्यम्) तेरे लिये (मघानि) धनों को (ददतः) देते हुए हैं। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन् !] (वृत्रहत्ये) शत्रुओं के मारनेवाले संग्राम में (तेषाम्) उन (नृणाम्) नरों का (शिवः) मङ्गलकारी (सखा) मित्र (च च) और (शूरः) शूर (अविता) रक्षक (भूः) तू हो ॥१०॥

    भावार्थ

    राजा विद्वानों द्वारा धन आदि बढ़ाकर शत्रुओं का नाश करके प्रजा की रक्षा करे ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(एते) (स्तोमाः) प्रशंसनीयाः पुरुषाः (नराम्) नॄ नये-विट्। नेतॄणां मध्ये (नृतम) नयतेर्डिच्च। उ०२।१००। णीञ् प्रापणे-ऋप्रत्ययो-डित्, तमप्। हे अतिशयेन नायक (तुभ्यम्) (अस्मद्र्यञ्चः) अस्मद्+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। विष्वग्देवयोश्च टेरद्र्यञ्चतावप्रत्यये। पा०६।३।९२। अस्मद्-शब्दस्य टेरद्रि। अस्मान् अञ्चन्तः प्राप्नुवन्तः (ददतः) प्रयच्छन्तः सन्ति (मघानि) धनानि (तेषाम्) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (वृत्रहत्ये) वृत्राणां शत्रूणां हत्या हननं यस्मिंस्तस्मिन्, सङ्ग्रामे (शिवः) मङ्गलकारी (भूः) अभूः। भव (सखा) सुहृत् (च) (शूरः) निर्भयः (अविता) रक्षकः (सृ) (नृणाम्) नेतॄणाम् ॥

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    विषय

    शिवः-सखा-अविता

    पदार्थ

    १. हे (नरां नृतम) = नायकों में सर्वोत्तम नायक प्रभो! (एते स्तोमा:) = ये स्तुतिसमूह (तुभ्यम्) = आपकी प्राप्ति के लिए हैं। इन स्तोमों द्वारा हम आपको प्राप्त करते है। (अस्मद्यञ्चो) = हमारे अभिमुख होते हुए ये स्तोम (मघानि ददतः) = ऐश्वयों को देते हुए होते हैं। आपका स्तवन करते हुए हम सब आवश्यक ऐश्वर्यों को प्राप्त करते है। २. हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो! (वृत्रहत्ये) = संग्राम में (तेषां नृणाम्) = उन उन्नति-पथ पर चलनेवाले मनुष्यों का (शिवः) = कल्याण करनेवाले (भू:) = होइए (च) = और (सखा) = उनके मित्र होते हुए (शूरः) = उनके शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले (च) = और (अविता) = रक्षक होइए।

    भावार्थ

    प्रभु-स्तवन करनेवाला सब ऐश्वयों को प्राप्त करता है। प्रभु इनके शत्रुओं को शीर्ण करके इनका कल्याण करते हैं।

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    भाषार्थ

    (नरां नृतम) हे नेताओं में सर्वश्रेष्ठ नेता! (तुभ्यम्) आपके लिए (अस्मद्र्यञ्चः) हम उपासकों द्वारा भेंट किये गये (एते स्तोमाः) ये सामगान, हमें (मघानि) आध्यात्मिक ऐश्वर्य (ददतः) प्रदान करते हैं। (इन्द्र) हे परमेश्वर! (तेषाम्) उन उपासकों के (वृत्रहत्ये) पाप-वृत्रों के हनन-कार्य में आप (शिवः) उनके लिए कल्याणकारी (भूः) हूजिए। (च) और (शूरः) आप पराक्रमकारी, (नृणाम्) उपासक नेताओं के, (सखा अविता) सहायक मित्र और रक्षक हूजिए।

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य और परमात्मा के गुण

    भावार्थ

    हे (नृतम) नरोत्तम ! (तुभ्यम्) तेरे निमित्त (एते नरां स्तोमाः) ये स्तुति समूह या ये प्रजाओं के समूह (अस्मद्रञ्चः) हमारे सन्मुख (मघानि ददतः) नाना ऐश्वर्यों का प्रदान करते हैं। हे इन्द्र (वृत्रहत्ये) शत्रु के नाश करने में तू (तेषाम् शिवः) उनका कल्याणकारी (सखा) मित्र (भूः) हो और तू (शूरः) शूरवीर होकर (नृणाम्) प्रजाओं का (अविता च भूः) रक्षक हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः। त्रिष्टुभः। इन्द्रो देवता। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    These songs of adoration offered to you, O highest leader of the leaders of men, in fact, come back to us, giving wealth, honours and excellence of life. O lord, in these people’s battle against darkness, want and injustice, be their friend, wise protector and kind defender.

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    Translation

    O mighty king you are most excellent leader of all the presonalities. These groups of people concerned with us give wealth to you. You brave one in the battle for the slaughter of enemies, become the well-wishing friend of these men and also become their guardian.

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    Translation

    O mighty king you are most excellent leader of all the personalities. These groups of people concerned with us give wealth to you. You brave one in the battle for the slaughter of enemies, become the well-wishing friend of these men and also become their guardian.

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    Translation

    O chief among the leaders, these are praises for thee. They present all sorts of riches to thee in our presence. In the very act of destruction of the enemy, be a source of comfort and ease to them. Be a brave friend and protector of the people and leaders.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(एते) (स्तोमाः) प्रशंसनीयाः पुरुषाः (नराम्) नॄ नये-विट्। नेतॄणां मध्ये (नृतम) नयतेर्डिच्च। उ०२।१००। णीञ् प्रापणे-ऋप्रत्ययो-डित्, तमप्। हे अतिशयेन नायक (तुभ्यम्) (अस्मद्र्यञ्चः) अस्मद्+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। विष्वग्देवयोश्च टेरद्र्यञ्चतावप्रत्यये। पा०६।३।९२। अस्मद्-शब्दस्य टेरद्रि। अस्मान् अञ्चन्तः प्राप्नुवन्तः (ददतः) प्रयच्छन्तः सन्ति (मघानि) धनानि (तेषाम्) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (वृत्रहत्ये) वृत्राणां शत्रूणां हत्या हननं यस्मिंस्तस्मिन्, सङ्ग्रामे (शिवः) मङ्गलकारी (भूः) अभूः। भव (सखा) सुहृत् (च) (शूरः) निर्भयः (अविता) रक्षकः (सृ) (नृणाम्) नेतॄणाम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (নরাম্) নরদের মধ্যে (নৃতম) হে বড় নেতা ! (এতে) এই (অস্মদ্র্যঞ্চঃ) আমাদের সাথে সাক্ষাৎকারী (স্তোমাঃ) প্রশংসনীয় বিদ্বানগণ (তুভ্যম্) তোমার জন্য (মঘানি) ধনসমূহ (দদতঃ) দান করে । (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান রাজন!] (বৃত্রহত্যে) শত্রু হনন সংগ্রামে (তেষাম্) সেই (নৃণাম্) নরদের (শিবঃ) মঙ্গলকারী (সখা) মিত্র (চ চ) এবং (শূরঃ) শূর (অবিতা) রক্ষক (ভূঃ) তুমি হও ॥১০॥

    भावार्थ

    রাজা বিদ্বানদের দ্বারা ধনাদি বৃদ্ধি করে শত্রুদের নাশ করে প্রজাদের রক্ষা করে/করবে/করুক॥১০॥

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    भाषार्थ

    (নরাং নৃতম) হে নেতাদের মধ্যে সর্বশ্রেষ্ঠ নেতা! (তুভ্যম্) আপনার জন্য (অস্মদ্র্যঞ্চঃ) আমাদের [উপাসকদের] দ্বারা অর্পিত (এতে স্তোমাঃ) এই সামগান, আমাদের (মঘানি) আধ্যাত্মিক ঐশ্বর্য (দদতঃ) প্রদান করে। (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তেষাম্) সেই উপাসকদের (বৃত্রহত্যে) পাপ-বৃত্র-সমূহের হনন-কার্যে আপনি (শিবঃ) তাঁদের জন্য কল্যাণকারী (ভূঃ) হন। (চ) এবং (শূরঃ) আপনি পরাক্রমকারী, (নৃণাম্) উপাসক নেতাদের, (সখা অবিতা) সহায়ক মিত্র এবং রক্ষক হন।

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