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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 20
    ऋषिः - प्रस्कण्वः देवता - सूर्यः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७
    31

    स॒प्त त्वा॑ ह॒रितो॒ रथे॒ वह॑न्ति देव सूर्य। शो॒चिष्के॑शं विचक्ष॒णम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्त । त्वा॒ । ह॒रित॑: । रथे॑ । वह॑न्ति । दे॒व॒ । सू॒र्य॒ ॥ शो॒चि:ऽके॑शम् । वि॒ऽच॒क्ष॒णम् ॥४७.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य। शोचिष्केशं विचक्षणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्त । त्वा । हरित: । रथे । वहन्ति । देव । सूर्य ॥ शोचि:ऽकेशम् । विऽचक्षणम् ॥४७.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 20
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    हिन्दी (3)

    विषय

    १३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (देव) हे चलनेवाले (सूर्य) सूर्य ! [रविमण्डल] (सप्त) सात [शुक्ल, नील, पीत, रक्त, हरित, कपिश, चित्र वर्ण वाली] (हरितः) आकर्षक किरणें (शोचिष्केशम्) पवित्र प्रकाशवाले (विचक्षणम्) विविध प्रकार दिखानेवाले (त्वा) तुझको (रथ) रथ [गमन विधान] में (वहन्ति) ले चलती हैं ॥२०॥

    भावार्थ

    यह प्रकाशमान सूर्यलोक, शुक्ल, नील, पीत आदि सात किरणों द्वारा अपनी धुरी पर अपने घेरे में घूमता है। इस नियम का बनानेवाला वह परमेश्वर है ॥२०॥

    टिप्पणी

    १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥

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    विषय

    देव+विचक्षण

    पदार्थ

    १.हे (देव) = द्योतमान-हृदयों को निर्मल करके प्रदीप्त करनेवाले (सूर्य) = निरन्तर सरणशील सूर्य! (त्वा) = तुझे (सप्त हरितः) = सात रंगोंवाली रसहरणशील किरणें (रथे) = रथ में (वहन्ति) = धारण करती हैं। २. उस तुझको धारण करती है जो तू (शोचिष्केशम्) = देदीप्यमान किरणरूप केशोंवाला है तथा (विचक्षणम्) = मस्तिष्क को ज्ञानज्योति से दीप्त करनेवाला है। सूर्य की किरणें सात प्रकार की है, अत: सूर्य का नाम ही सप्ताश्व हो गया है। ये सात किरणें सातों प्राणदायी तत्त्वों को हमारे शरीरों में प्रविष्ट कराती हुई हमें नीरोग बनाती हैं। रोग-हरण करने से ये किरणें हरित हैं। रोगकृमियों का संहार करती हुई ये किरणें हमारे शरीरों को शुद्ध कर डालती हैं, इसी से सूर्य 'शोचिष्केश'

    भावार्थ

    सूर्य ससाश्व है। यह अपनी सात किरणों के द्वारा सातों प्राणों को हममें पुष्ट करता है। हमारे हृदयों को देव-हृदय बनाता है। मस्तिष्क को विचक्षण करता है।

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    भाषार्थ

    (सूर्य) हे सूर्यों के सूर्य! (देव) प्रकाशमान परमेश्वर! (शोचिष्केशम्) प्रदीप्त तथा पवित्र रश्मियोंवाले, (विचक्षणम्) तथा विवेकदृष्टिवाले (त्वा) आपको, (सप्त हरितः) विषयों का परिहार की हुई मेरी सात शक्तियाँ, (रथे) मेरे शरीर-रथ में (वहन्ति) वहन करने लग गई हैं।

    टिप्पणी

    [सप्त हरितः=५ ज्ञानेन्द्रियाँ, मन तथा बुद्धि। रजस् तथा तमस् से पराभूत ये सात शक्तियाँ व्यक्ति को विषयोन्मुख और परमेश्वर से पराङ्मुख बना देती हैं, और यही सात शक्तियाँ, सत्त्वगुण प्रधान होकर, विषयों का परिहार कर, परमेश्वरोन्मुख होकर, परमेश्वर को शरीर रथ का रथी बनाकर, शरीर-रथ में उसका वहन करते लगती हैं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O sun, self-refulgent lord of blazing flames and universal illumination, seven are the colourful lights of glory which like seven horses draw your chariot of time across the spaces. In the same way, seven are the chhandas, metres, which reveal the light of Divinity in the sacred voice of the Veda.

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    Translation

    O All-impelling God, O Divine power, the seven rays carry in your (Tva) world (Ratha) woundrous light of luminous rays.

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    Translation

    O All-impelling God, O Divine power, the seven rays carry in your (Tva) world (Ratha) wondrous light of luminous rays.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥

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