अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 62/ मन्त्र 2
उप॑ त्वा॒ कर्म॑न्नू॒तये॒ स नो॒ युवो॒ग्रश्च॑क्राम॒ यो धृ॑षत्। त्वामिद्ध्य॑वि॒तारं॑ ववृ॒महे॒ सखा॑य इन्द्र सान॒सिम् ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । त्वा॒ । कर्म॑न् । ऊ॒तये॑ । स: । न॒: । युवा॑ । उ॒ग्र: । च॒क्रा॒म॒ । य: । धृ॒षत् ॥ त्वाम् । इत् । हि । अ॒वि॒तार॑म् । व॒वृ॒महे॑ । सखा॑य: । इ॒न्द्र॒ । सा॒न॒सिम् ॥६२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
उप त्वा कर्मन्नूतये स नो युवोग्रश्चक्राम यो धृषत्। त्वामिद्ध्यवितारं ववृमहे सखाय इन्द्र सानसिम् ॥
स्वर रहित पद पाठउप । त्वा । कर्मन् । ऊतये । स: । न: । युवा । उग्र: । चक्राम । य: । धृषत् ॥ त्वाम् । इत् । हि । अवितारम् । ववृमहे । सखाय: । इन्द्र । सानसिम् ॥६२.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
१-४ राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(कर्मन्) कर्म के बीच (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिये (सः) उस (यः) जिस (युवा) स्वभाव से बलवान्, (उग्रः) तेजस्वी और (धृषत्) निर्भय पुरुष ने (चक्राम) पैर बढ़ाया है, (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (अवितारम्) उस रक्षक और (सानसिम्) दानी (त्वा) तुझको, (त्वाम्) तुझको (हि) ही (इत्) अवश्य (सखायः) हम मित्र लोग (उप) आदर से (ववृमहे) चुनते हैं ॥२॥
भावार्थ
जो पुरुष प्रजारक्षण में बड़ा पराक्रमी हो, प्रजागण सब लोगों में से उसीको राजा बनावें ॥२॥
टिप्पणी
१-४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।१४।१-४ ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Indra Devata
Meaning
We approach you for protection and success in every undertaking. O lord youthful and blazing brave who can challenge and subdue any difficulty, pray come to our help. Indra, friends and admirers of yours, we depend on you alone as our sole saviour and victorious lord and choose to pray to you only as the lord supreme.
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