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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 62 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 62/ मन्त्र 5
    ऋषि: - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६२
    24

    इन्द्रा॑य॒ साम॑ गायत॒ विप्रा॑य बृह॒ते बृ॒हत्। ध॑र्म॒कृते॑ विप॒श्चिते॑ पन॒स्यवे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑य । साम॑ । गा॒य॒त॒ । विप्रा॑य । बृ॒ह॒ते । बृ॒हत् ॥ ध॒र्म॒ऽकृते॑ । वि॒प॒:ऽचिते॑ । प॒न॒स्यवे॑ ॥६२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राय साम गायत विप्राय बृहते बृहत्। धर्मकृते विपश्चिते पनस्यवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राय । साम । गायत । विप्राय । बृहते । बृहत् ॥ धर्मऽकृते । विप:ऽचिते । पनस्यवे ॥६२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (2)

    विषय

    मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्यो !] (विप्राय) बुद्धिमान्, (बृहते) महान्, (धर्मकृते) धर्म [धारणयोग्य नियम] के बनानेवाले, (विपश्चिते) विशेष महाज्ञानी, (पनस्यवे) सबके लिये व्यवहार चाहनेवाले, (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] के लिये (बृहत्) बड़े (साम) साम [दुःखनाशक मोक्षज्ञान] का (गायत) तुम गान करो ॥॥

    भावार्थ

    मनुष्य वेदद्वारा धर्मविधान पर चलकर परमात्मा की उपासना से बुद्धिमान् और व्यवहारकुशल होकर मोक्षसुख प्राप्त करें ॥॥

    टिप्पणी

    मन्त्र -७ ऋग्वेद में है-८।९८ [सायणभाष्य ८७]।१-३। सामवेद-उ० ३।२। तृच २२, मन्त्र , पू० ४।१०।८ ॥ −(इन्द्राय) परमैश्वर्यवते जगदीश्वराय (साम) अ० ७।४।१। दुःखनाशकं मोक्षज्ञानम् (गायत) पठत (विप्राय) मेधाविने (बृहते) महते (बृहत्) महत् (धर्मकृते) धर्मस्य धारणीयनियमस्य कर्त्रे (विपश्चिते) अ० ६।२।३। वि+प्र+चिती संज्ञाने-क्विप्। विशेषमहाज्ञानिने (पनस्यवे) पण स्तुतौ व्यवहारे च-असुन्-क्यच्-उ। सर्वेभ्यो व्यवहारमिच्छते ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Sing Brhatsama hymns in adoration of Indra, vibrant spirit of the universe and giver of fulfilment, grand and infinite, source ordainer and keeper of the law of universal Dharma, giver and protector of knowledge and karma, the lord adorable. Sing Brhatsama hymns in adoration of Indra, vibrant spirit of the universe and giver of fulfilment, grand and infinite, source ordainer and keeper of the law of universal Dharma, giver and protector of knowledge and karma, the lord adorable.

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