Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 80 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 80/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शंयुः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-८०
    48

    इन्द्र॒ ज्येष्ठं॑ न॒ आ भ॑रँ॒ ओजि॑ष्ठं॒ पपु॑रि॒ श्रवः॑। येने॒मे चि॑त्र वज्रहस्त॒ रोद॑सी॒ ओभे सु॑शिप्र॒ प्राः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । ज्येष्ठ॑म् । न॒: । आ ।भ॒र॒ । ओजि॑ष्ठम् । पपु॑रि । श्रव॑: ॥ येन॑ । इ॒मे इति॑ । चि॒त्र॒ । व॒ज्र॒ऽह॒स्त॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । आ । उ॒भे इति॑ । सु॒ऽशि॒प्र॒ । प्रा: ॥८०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र ज्येष्ठं न आ भरँ ओजिष्ठं पपुरि श्रवः। येनेमे चित्र वज्रहस्त रोदसी ओभे सुशिप्र प्राः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । ज्येष्ठम् । न: । आ ।भर । ओजिष्ठम् । पपुरि । श्रव: ॥ येन । इमे इति । चित्र । वज्रऽहस्त । रोदसी इति । आ । उभे इति । सुऽशिप्र । प्रा: ॥८०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 80; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (नः) हमारे लिये (ज्येष्ठम्) अतिश्रेष्ठ, (ओजिष्ठम्) अत्यन्त बल देनेवाला, (पपुरि) पालन करनेवाला (श्रवः) यश (आ) सब ओर से (भर) धारण कर (येन) जिस [यश] से, (चित्र) हे अद्भुत स्वभाववाले, (वज्रहस्त) हे वज्र हाथ में रखनेवाले ! (सुशिप्र) हे दृढ़ जबड़ों वाले ! (इमे) इन (उभे) दोनों (रोदसी) अन्तरिक्ष और भूमि को (आ प्राः) तूने भर दिया है ॥१॥

    भावार्थ

    दृढ़ स्वभाव और दृढ़ शरीरवाला राजा आकाश और भूमि पर चलने के लिये उपाय करके यशस्वी होवे ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १, २ ऋग्वेद में हैं-६।४६।, ६ मन्त्र १ सामवेद-पू० ६।१०।१ • १−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (ज्येष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्तम् (नः) अस्मभ्यम् (आ) समन्तात् (भर) धर (ओजिष्ठम्) अतिशयेन बलप्रदम् (पपुरि) आदृगमहन०। पा० ३।२।१७१। पॄ पालनपूरणयोः-क्विन्। उदोष्ठ्यपूर्वस्य। पा० ७।१।१०२। इत्युत्वम्। पालकम्। पोषकम् (श्रवः) यशः (येन) यशसा (इमे) दृश्यमाने (चित्र) अद्भुतस्वभाव (वज्रहस्त) शस्त्रास्त्रपाणे (रोदसी) अन्तरिक्षभूमी (आ) (उभे) (सुशिप्र) दृढहनो (प्राः) पूरितवानसि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    Indra, lord of noblest virtue and knowledge, bear and bring us that best and most lustrous food for the nourishment of body and mind by which, O wondrous hero of golden helmet and wielder of thunder in hand, you may reach both this earth and this sky upto the heaven.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Mighty King. O fair chinned one, O holder of thunderlike weapon. O wondrous one you grant me that name and fame which is enriching, mightiest and excellent and wherewith you fill this earth and heaven.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १, २ ऋग्वेद में हैं-६।४६।, ६ मन्त्र १ सामवेद-पू० ६।१०।१ • १−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (ज्येष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्तम् (नः) अस्मभ्यम् (आ) समन्तात् (भर) धर (ओजिष्ठम्) अतिशयेन बलप्रदम् (पपुरि) आदृगमहन०। पा० ३।२।१७१। पॄ पालनपूरणयोः-क्विन्। उदोष्ठ्यपूर्वस्य। पा० ७।१।१०२। इत्युत्वम्। पालकम्। पोषकम् (श्रवः) यशः (येन) यशसा (इमे) दृश्यमाने (चित्र) अद्भुतस्वभाव (वज्रहस्त) शस्त्रास्त्रपाणे (रोदसी) अन्तरिक्षभूमी (आ) (उभे) (सुशिप्र) दृढहनो (प्राः) पूरितवानसि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top