अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 83/ मन्त्र 1
इन्द्र॑ त्रि॒धातु॑ शर॒णं त्रि॒वरू॑थं स्वस्ति॒मत्। छ॒र्दिर्य॑च्छ म॒घव॑द्भ्यश्च॒ मह्यं॑ च या॒वया॑ दि॒द्युमे॑भ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । त्रि॒ऽधातु॑ । श॒र॒णम् । त्रि॒ऽवरू॑थम् । स्व॒स्ति॒ऽमत् ॥ छ॒र्दि: । य॒च्छ॒ । म॒घव॑त्ऽभ्य: । च॒ । मह्य॑म् । च॒ । य॒वय॑ । दि॒द्युम् । ए॒भ्य॒: ॥८३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र त्रिधातु शरणं त्रिवरूथं स्वस्तिमत्। छर्दिर्यच्छ मघवद्भ्यश्च मह्यं च यावया दिद्युमेभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । त्रिऽधातु । शरणम् । त्रिऽवरूथम् । स्वस्तिऽमत् ॥ छर्दि: । यच्छ । मघवत्ऽभ्य: । च । मह्यम् । च । यवय । दिद्युम् । एभ्य: ॥८३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (त्रिधातु) तीन [सोना, चाँदी, लोहे] धातुओंवाला, (त्रिवरूथम्) तीन [शीत, ताप और वर्षा ऋतुओं] में उत्तम, (शरणम्) शरण [आश्रय] के योग्य और (स्वस्तिमत्) बहुत सुखवाला (छर्दिः) घर (मघवद्भ्यः) धनवालों को (च) और (मह्यम्) मुझको [अर्थात् एक-एक को] (यच्छ) दे, (च) और (एभ्यः) इन सबके लिये (दिद्युम्) प्रकाश को (यवय) संयुक्त कर ॥१॥
भावार्थ
राजा का कर्तव्य है कि मनुष्यों के निवासस्थान और सभास्थान आदि ऐसे उत्तम बनवावे कि जिनमें सबको मिलकर और प्रत्येक पुरुष को आवश्यक पदार्थ सुरक्षित रहने से सब ऋतुओं में सुख मिले और स्वास्थ्य बढ़ने से धन की वृद्धि होवे ॥१॥
टिप्पणी
यह सूक्त ऋग्वेद में है-६।४६।९, १०। मन्त्र १ सामवेद-पू० ३।८।४ ॥ १−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (त्रिधातु) त्रिभिः सुवर्णरजतलोहधातुभिर्युक्तम् (शरणम्) आश्रययोग्यम् (त्रिवरूथम्) जॄवृञ्भ्यामूथन्। उ० २।६। वृञ् वरणे-ऊथन्। त्रिषु शीततापवर्षासु वरणीयमुत्तमम् (स्वस्तिमत्) बहुसुखयुक्तम् (छर्दिः) अर्चिशुचिहुसृपिछादिछर्दिभ्य इसिः। २।१०८। छर्द सन्दीपने वमने च-इसि। गृहम्-निघ० ३।४। (यच्छ) देहि (मघवद्भ्यः) धनयुक्तेभ्यः (च) (मह्यम्) राजभक्ताय (च) (यवय) संयोजय (दिद्युम्) अ० १।२।३। द्युत दीप्तौ-क्विप्, तलोपः। प्रकाशम् (एभ्यः) सर्वेभ्यः ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
India Devata
Meaning
Indra, lord ruler of the wealth of nations, for the men of wealth, power, honour and generosity of heart, and for me too, give a home made of three metals and materials, comfortable in three seasons of summer, winter and rains, a place of rest, peace and security for complete well being. Give the light for them, keep off the blaze from them.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal