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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 23 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    ऋषि: - ब्रह्मा देवता - चन्द्रमाः, योनिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वीरप्रसूति सूक्त
    48

    येन॑ वे॒हद्ब॒भूवि॑थ ना॒शया॑मसि॒ तत्त्वत्। इ॒दं तद॒न्यत्र॒ त्वदप॑ दू॒रे नि द॑ध्मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । वे॒हत् । ब॒भूवि॑थ । ना॒शया॑मसि । तत् । त्वत् । इ॒दम् । तत् । अ॒न्यत्र॑ । त्वत् । अप॑ । दू॒रे । नि । द॒ध्म॒सि॒ ॥२३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन वेहद्बभूविथ नाशयामसि तत्त्वत्। इदं तदन्यत्र त्वदप दूरे नि दध्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । वेहत् । बभूविथ । नाशयामसि । तत् । त्वत् । इदम् । तत् । अन्यत्र । त्वत् । अप । दूरे । नि । दध्मसि ॥२३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।

    पदार्थ

    [हे स्त्री] (येन) जिस कारण से तू (वेहत्) बन्घ्या [बाँझ] (बभूविथ) हुई है, (तत्) उस कारण को (त्वत्) तुझसे (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं। (इदम्=इदानीम्) अभी (तत्) उसको (त्वत्) तुझसे (अन्यत्र) और कहीं (दूरे) दूर (अप=अपहृत्य) हटाकर (निदध्मसि=०-ध्मः) हम रखते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    सद्वैद्य पुत्रेष्टि यज्ञ करके ओषधि द्वारा बाँझपन मिटाकर वीर सन्तान उत्पन्न करते हैं, देखो−श्रीमद् दयानन्दकृत संस्कारविधि-गर्भाधानप्रकरण ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(येन) येन पापजन्यरोगादिना (वेहत्) संश्चत्तृपद्वेहत्। उ० २।८५। इति वि+हन वधे-अति। इकारस्य एकारो नलोपश्च निपात्येते। विशेषेण हन्ति गर्भं या, गर्भघातिनी। बन्ध्या। (नाशयामसि) नाशयामः। चिकित्सया अपहन्मः। (त्वत्) त्वत्तः सकाशात्। (इदम्) इदानीम्। (दूरे) दूरदेशे। (अप नि दध्मसि) अपहृत्य निक्षिपामः ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Fertility, Prajapatyam

    Meaning

    The cause by which you have become infertile, unable to conceive and carry, we remove from you and take it elsewhere far from you. (The remedy suggested by the mantra seems both medical and surgical.)

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