अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 7
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
47
अ॑पवा॒से नक्ष॑त्राणामपवा॒स उ॒षसा॑मु॒त। अपा॒स्मत्सर्वं॑ दुर्भू॒तमप॑ क्षेत्रि॒यमु॑च्छतु ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒प॒ऽवा॒से । नक्ष॑त्राणाम् । अ॒प॒ऽवा॒से । उ॒षसा॑म् । उ॒त । अप॑ । अ॒स्मत् । सर्व॑म् । दु॒:ऽभू॒तम् । अप॑ । क्षे॒त्रि॒यम् । उ॒च्छ॒तु॒ ॥७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अपवासे नक्षत्राणामपवास उषसामुत। अपास्मत्सर्वं दुर्भूतमप क्षेत्रियमुच्छतु ॥
स्वर रहित पद पाठअपऽवासे । नक्षत्राणाम् । अपऽवासे । उषसाम् । उत । अप । अस्मत् । सर्वम् । दु:ऽभूतम् । अप । क्षेत्रियम् । उच्छतु ॥७.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोग नाश करने के लिए उपदेश।
पदार्थ
(नक्षत्राणाम्) नक्षत्रों के (अपवासे) छिपने पर (उत) और (उषसाम्) प्रभात वेलाओं के (अपवासे) चले जाने पर (अस्मत्) हमसे (सर्वम्) सब (दुर्भूतम्) अनिष्ट (अप=अप उच्छतु) चला जावे और (क्षेत्रियम्) शरीर वा वंश का रोग (अप) हट जावे ॥७॥
भावार्थ
यह मन्त्र उपसंहार है, अर्थात् जैसे प्रतापी सूर्य के चमकने पर तारे छिप जाते और उषाओं का रङ्ग फीका पड़ जाता है, वैसे ही उद्योगी पुरुष आलस्यादि अनिष्टों और रोगों को दबाकर आनन्द भोगता है ॥७॥
टिप्पणी
७−(अपवासे)। अप+वस वासे, आच्छादने-भावे घञ्। अन्तर्धाने। अपगमने। (नक्षत्राणाम्)। अमिनक्षियजि०। उ० ३।१०५। इति णक्ष गतौ-अत्रन्। नक्षत्राणि नक्षत्रतेर्गतिकर्मणः-निरु० ३।२०। तारकाणाम्। (उषसाम्)। उषः किच्च। उ० ४।२३४। इति उष वधे दाहे च-असि। प्रभातप्रकाशानाम्। (उत)। अपि। (अप)। अप उच्छतु। (अस्मत्)। अस्मत्तः। (सर्वम्)। निखिलम्। (दुर्भूतम्)। दुर+भू-क्त। दुर् दुःखेन भूतं युक्तम्। अभिष्टम्। दुःखम्। (क्षेत्रियम्)। महारोगजातम्। (अप उच्छतु)। उछ विवासे। अपगच्छतु। निवर्तताम् ॥
विषय
प्रात: स्नानादि से रोग-नाश
पदार्थ
१. (नक्षत्राणाम् अपवासे) = नक्षत्रों के अपगमनकाल में, अर्थात् उषा के आरम्भ में (उत) = अथवा (उषसाम्) = प्रतिदिन उषाओं के (अपवासे) = अपगमन के समय, अर्थात् प्रात:काल, उस समय किये जानेवाले स्नानादि के द्वारा (सर्वम्) = सारा (दुर्भूतम्) = रोग का निदानभूत दुष्कृत (अस्मत्) = हमसे (अप उच्छतु) = दूर हो जाए और प्रतिदिन इसप्रकार करने से (क्षेत्रियम्) = कुष्ठ, अपस्मार आदि क्षेत्रिय रोग भी (अप) = हमसे दूर हो जाए।
भावार्थ
हम तारों के अस्त होते ही बहुत सवेरे-सवेरे स्नान आदि क्रियाओं को सम्पन्न करने के द्वारा 'दुर्भूत' को दूर करते हुए क्षेत्रिय' रोगों को भी दूर करने में समर्थ हों।
विशेष
अगले सूक्त का ऋषि अथर्वा है-न डाँवाडोल होनेवाला [न थर्वति] अथवा 'अथ अर्वाड' अपने अन्दर देखनेवाला और परिणामतः औरों के दोषों को न देखकर अपने दोषों को दूर करनेवाला। यह प्रार्थना करता है कि -
भाषार्थ
(नक्षत्राणाम्) नक्षत्रों के (अपवासे) अगगत हो जाने पर, प्रवसित हो जाने पर, (उत) तथा (ऊषसाम्) उषाओं के (अपवासे) अपगत अर्थात प्रवासित हो जाने पर (अस्मत्) हमसे (सर्वम्, दुर्भूतम्) सब दुष्कृत (अप) अपगत हो जाय, (क्षेत्रियम्) शारीरिक रोग (अप उच्छतु) अपगत हो जाय।
टिप्पणी
[नक्षत्रों के प्रवास और उषाओं के प्रवास पर, सूर्य की रश्मियां चमकने लगती हैं, दिन का प्रकाश हो जाता है। इस काल में प्रदीप्त हुई रश्मियों के सेवन से क्षेत्रिय रोग क्षीण होता जाता है। यह ["सूर्यरश्मि-चिकित्सा" है। उषसाम् में बहुवचन यह सूचित करता है कि नाना उषा कालों के पश्चात्, नाना दिनों तक, सूर्य रश्मिचिकित्सा करनी चाहिए। सूर्योदय काल में सूर्यरश्मियाँ लाल होती हैं, जोकि रोगकीटाणुओं का हनन करती हैं (अथर्व ० २।३२।१)]
इंग्लिश (4)
Subject
Cure of Hereditary Disease
Meaning
When the stars fade out and the dawns wane away, let all chronic ailment be off and out, let all hereditary disease fade away.
Translation
In the fading of asterisms, in the fading out of the dawns also, from us, may you allow to fade out all that of evil -nature , fade out (apavas) the ksetriya.
Translation
Let all the troublesome inherited diseases flee away from us when the light of stars departs and when the gleaming of dawns disappears.
Translation
On the disappearance ofthe starlight, on the departure of the gleams ofDawn, may evil fortune pass from us, may the chronic disease disappear.
Footnote
Starlight disappears, when Dawn appears, and Dawn departs, when the sun rises.The light of the sun is a healer of diseases. Sun-light gives us freshness, new life and vitality.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(अपवासे)। अप+वस वासे, आच्छादने-भावे घञ्। अन्तर्धाने। अपगमने। (नक्षत्राणाम्)। अमिनक्षियजि०। उ० ३।१०५। इति णक्ष गतौ-अत्रन्। नक्षत्राणि नक्षत्रतेर्गतिकर्मणः-निरु० ३।२०। तारकाणाम्। (उषसाम्)। उषः किच्च। उ० ४।२३४। इति उष वधे दाहे च-असि। प्रभातप्रकाशानाम्। (उत)। अपि। (अप)। अप उच्छतु। (अस्मत्)। अस्मत्तः। (सर्वम्)। निखिलम्। (दुर्भूतम्)। दुर+भू-क्त। दुर् दुःखेन भूतं युक्तम्। अभिष्टम्। दुःखम्। (क्षेत्रियम्)। महारोगजातम्। (अप उच्छतु)। उछ विवासे। अपगच्छतु। निवर्तताम् ॥
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