अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - रुद्रः, व्याघ्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
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परे॑णैतु प॒था वृकः॑ पर॒मेणो॒त तस्क॑रः। परे॑ण द॒त्वती॒ रज्जुः॒ परे॑णाघा॒युर॑र्षतु ॥
स्वर सहित पद पाठपरे॑ण । ए॒तु॒ । प॒था । वृक॑: । प॒र॒मेण॑ । उ॒त । तस्क॑र: । परे॑ण । द॒त्वती॑ । रज्जु॑: । परे॑ण । अ॒घ॒ऽयु: । अ॒र्ष॒तु॒ ॥३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
परेणैतु पथा वृकः परमेणोत तस्करः। परेण दत्वती रज्जुः परेणाघायुरर्षतु ॥
स्वर रहित पद पाठपरेण । एतु । पथा । वृक: । परमेण । उत । तस्कर: । परेण । दत्वती । रज्जु: । परेण । अघऽयु: । अर्षतु ॥३.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वैरी के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(वृकः) हुण्डार वा भेड़िया (परेण) दूर (पथा) मार्ग से (एतु) चला जावे, (उत) और (तस्करः) पीड़ा देनेवाला चोर (परमेण) अधिक दूर मार्ग से। (दत्वती) दान्तवाली (रज्जुः) रसरी अर्थात् साँप (परेण) दूर से, और (अघायुः) बुरा चीतनेवाला पापी (परेण) दूर से (अर्षतु) भाग जावे ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य अपने घर ऐसे बनावें और ऐसा प्रबन्ध करें, जिससे दुष्ट मनुष्य और हिंसक जीवों से रक्षा रहे ॥२॥
टिप्पणी
२−(परेण) अन्येन दूरेण (एतु) गच्छतु (पथा) मार्गेण (वृकः) म० १। अरण्यश्वा (परमेण) दूरतरेण (उत) अपि (तस्करः) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। इति तनु विस्तारोपकृतिशब्दोपतापेषु-अदि। तनति उपतापयतीति तद्, उपतापः पीडा। दिवाविभानिशा०। पा० ३।२।२१। इति तत् इत्युपपदे कृञ् करणे-ट प्रत्ययः। तद्बृहतोः करपत्योश्चोरदेवतयोः सुट् तलोपश्च। पा० ६।१।१५७। इति सुट्तलोपौ। तत् उपतापं करोतीति तस्करः। चोरः। (दत्वती) दन्त-मतुप् ङीप्। पद्दन्नोमास्०। पा० ६।१।६३। इति दत्। दन्तवती (दत्वती रज्जुः) दन्तयुक्तो रज्वाकृतिः सर्पः (अघायुः) अ० १।२०।२। अनिष्टचारी। पापात्मा (अर्षतु) ऋषी गतौ। गच्छतु ॥
विषय
सर्प और अघायु
पदार्थ
१. (वृकः) = यह प्राणिहिंसक अरण्यश्वा (परेण) = हमारे सञ्चार मार्ग से भिन्न (पथ) = मार्ग से (एतु) = जाए, (उत) = और (तस्करः) = चोर पुरुष भी (परमेण) = उससे भी दूरतर मार्ग से जानेवाला हो। २. (दत्वती) = यह दाँतोवाली (रज्जुः) = रस्सी के आकार का सर्प (परेण) = अन्य मार्ग से जाए। (अघायु:) = अघ-पाप, अर्थात् दूसरों का हिंसन चाहनेवाला यह पापी भी (परेण) = अन्य मार्ग से ही (अर्षतु) = जाए।
भावार्थ
वृक, चोर, साँप व अशुभेच्छु हिंसक हमसे सदा दूर रहें।
भाषार्थ
(परेण पथा) अन्य मार्ग से (वृकः एतु) भेड़िया गमन करे, (उत) तथा (तस्करः) चोर-पुरुष (परमेण) दूरतर मार्ग से गमन करे। (परेण) अन्य मार्ग से (दत्वती रज्जुः) दांतोंवाली रस्सी अर्थात् साँप गमन करे, (परेण१) अन्य मार्ग से (अघायु:) हत्यारा शत्रु (अर्षतु) गमन करे।
टिप्पणी
[अन्यमार्ग=हमारे जाने के मार्ग से भिन्न मार्ग से। अघायु:= हत्यारा मानुष-शत्रु (मन्त्र १)। अर्षतु =ऋषि गीतौ (तुदादिः)। मन्त्र १, और सूक्त के अन्यमन्त्रों में "हीरुक्" भावना समान है।][१. बृक, साँप आदि का मार्ग है जंगल। तस्कर का मार्ग है जल की चार-दीबारी। अघायु का मार्ग है निज राष्ट्र, न कि परराष्ट्र अर्थात् मित्रराष्ट्र। सामान्य प्रजाजनों का मार्ग है नागरिकता अर्थात् बस्ती का मार्ग।]
भावार्थ
(वृकः परेण पथा एतु) छुपकर घात करने वाला भेड़िया आदि परले दूर के मार्ग से चला जाय। और (तस्करः) चोर आदमी (परमेण एतु) उससे भी परे मार्ग से जावे। (दत्वती रज्जुः परेण) दांतों वाली रस्सी के समान सर्प भी परे ही से जावे और (अघायुः) पापी पुरुष जो हम पर अपना पाप, घात कार्य करना चाहता है ऐसा नृशंस डाकू भी (परेण पथा अर्षतु) दूर के दूसरे मार्ग से ही जावे अर्थात् इनसे बचने का उपाय यह है कि ये बस्ती में न आने पावें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। रुद्र उत व्याघ्नो देवता। १ पथ्यापंक्ति, २, ४-६ अनुष्टुभः, ३ गायत्री, ७ ककुम्मतीगर्भोपरिष्टद बृहती। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Throw off the Enemies
Meaning
Let the wolf go away by far off path. Let the thief and smuggler go away by the farthest path. Let the rope-like snake with fangs go off by far off path. And let the sinner, the robber, go away by the path that is far away.
Translation
May the wolf (vrka) go by a path other than ours. May the high-way-man go by the path even farther away. May the toothed rope (snake) move along some other path and may killer go by some distant path.
Translation
Let the wolf go by the distant way, let the thief pass by most remote pathway, let the rope having teeth i.e. snake go by a-far distant way and let the malicious man be away from us.
Translation
Let the wolf go on a distant path. Let the thief go on a most remote pathway. Let the serpent go on a far road. Let the malicious man go away on a distant route.
Footnote
None of these i.e., wolf, thief, serpent and a malicious man should come near our house. They should remain far away from our habitation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(परेण) अन्येन दूरेण (एतु) गच्छतु (पथा) मार्गेण (वृकः) म० १। अरण्यश्वा (परमेण) दूरतरेण (उत) अपि (तस्करः) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। इति तनु विस्तारोपकृतिशब्दोपतापेषु-अदि। तनति उपतापयतीति तद्, उपतापः पीडा। दिवाविभानिशा०। पा० ३।२।२१। इति तत् इत्युपपदे कृञ् करणे-ट प्रत्ययः। तद्बृहतोः करपत्योश्चोरदेवतयोः सुट् तलोपश्च। पा० ६।१।१५७। इति सुट्तलोपौ। तत् उपतापं करोतीति तस्करः। चोरः। (दत्वती) दन्त-मतुप् ङीप्। पद्दन्नोमास्०। पा० ६।१।६३। इति दत्। दन्तवती (दत्वती रज्जुः) दन्तयुक्तो रज्वाकृतिः सर्पः (अघायुः) अ० १।२०।२। अनिष्टचारी। पापात्मा (अर्षतु) ऋषी गतौ। गच्छतु ॥
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