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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - कुष्ठस्तक्मनाशनः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
    40

    हि॑र॒ण्ययाः॒ पन्था॑न आस॒न्नरि॑त्राणि हिर॒ण्यया॑। नावो॑ हिर॒ण्ययी॑रास॒न्याभिः॒ कुष्ठं॑ नि॒राव॑हन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हि॒र॒ण्यया॑: । पन्था॑न: । आ॒स॒न् । अरि॑त्राणि । हि॒र॒ण्यया॑ । नाव॑: । हि॒र॒ण्ययी॑: । आ॒स॒न् । याभि॑: । कुष्ठ॑म् । नि॒:ऽआव॑हन् ॥४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्ययाः पन्थान आसन्नरित्राणि हिरण्यया। नावो हिरण्ययीरासन्याभिः कुष्ठं निरावहन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यया: । पन्थान: । आसन् । अरित्राणि । हिरण्यया । नाव: । हिरण्ययी: । आसन् । याभि: । कुष्ठम् । नि:ऽआवहन् ॥४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (हिरण्ययाः) तेजोमय (पन्थानः) मार्ग और (हिरण्यया) तेजोमय (अरित्राणी) बल्लियाँ वा डाँड़ (आसन्) थे। (हिरण्ययीः) तेजोमय (नावः) नावें (आसन्) थीं, (याभिः) जिनसे (कुष्ठम्) गुणपरीक्षक पुरुष को (निरावहन्) वे निश्चय करके लाये हैं ॥५॥

    भावार्थ

    महात्मा लोग विद्वान् का आदर करके आनन्दित होते हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(हिरण्ययाः) हिरण्यमयाः। तेजोयुक्ताः (पन्थानः) मार्गाः (आसन्) अभवन् (अरित्राणि) अशित्रादिभ्य इत्रोत्रौ। उ० ४।१७३। इति ऋ गतौ−इत्र। नौकाचालनकाष्ठानि (हिरण्यया) हिरण्यमयानि (नावः) नौकाः (हिरण्ययीः) हिरण्यमय्यः तेजोयुक्ताः (आसन्) (याभिः) नौभिः (कुष्ठम्) म० १। गुणपरीक्षकं पुरुषम् (निरावहन्) निर्+आङ्+अवहन्। निश्चयेन आनीतवन्तः ॥

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    विषय

    हिरण्यय अरित्र

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र में सूर्य को धुलोकरूप समुद्र की 'हिरण्ययी नाव' कहा गया है। इस नाव में (पन्थान:) = सब मार्ग (हिरण्ययाः आसन्) = ज्योतिर्मय हैं। यह धुलोक का समुद्र सूर्य-किरणों से चमक रहा है। इस नाव के (अरित्राणि) = किरणरूप चप्पू भी (हिरण्यया) = ज्योतिर्मय हैं। (नाव:) = ये सूर्यरूपी नौकाएँ तो (हिरण्ययी: आसन्) = ज्योतिर्मय हैं ही। ब्रह्माण्ड में सब लोकों का-सब सौर जगतों का अलग-अलग सूर्य है, आठ सूर्यों का वर्णन मिलता है, अत: 'नाव:' बहुवचन का प्रयोग हुआ है [आरोगो भ्राजः पाट: पतंग: स्वर्णदो ज्यातिषीमान विभास: । कश्यपोऽष्टमः, स महामेरुन जहाति'[-तै० आ० १.७.१-२]।२. ये सूर्यरूप नाव वे हैं (याभि:) = जिनसे (कुष्ठम्) = कुष्ठ को (निरावहन्) = निश्चय से प्राप्त करते हैं। सूर्य की दीप्तिमयी किरणों से ही तो इस कुष्ठ का पोषण होता है।

    भावार्थ

    ज्योतिर्मय द्युलोक में गति करते हुए ज्योतिर्मय सूर्य की ज्योतिर्मयी किरणों से परिपुष्ट हुई-हुई 'कुष्ठ' ओषधि को प्राप्त करके हम ज्वर आदि को दूर करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    [नौका के] (पन्थानः) चलने के मार्ग (हिरण्यया: ) हिरण्यमय अर्थात् हिरण्य के सदृश चमकीले ( आसन् ) थे, (अरित्राणि) नौका के चप्पु [oars] (हिरण्ययाः=हिरण्यानि) हिरण्य के सदृश चमकीले थे। (नाव:) नौकाएँ (हिरण्ययीः) हिरण्य के सदृश चमकीली ( आसन् ) थीं, ( नाभि: ) जिन नौकाओं द्वारा (कुष्ठम् ) कुष्ठौषध को (निरावहन्) दिव्यशक्तियों ने प्राप्त कराया।

    टिप्पणी

    [नाव: में बहुवचन नौकास्थ ताराओं के बहुत्व के कारण हुआ है। कारण में कार्य का उपचार हुआ है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kushtha Oshadhi

    Meaning

    Golden are the paths of manly sojourn. Golden are the oars of the boat, saviours from sin and disease. Golden are the boats to cross the seas. By these do the divines find and bring the kushtha herb for cure.

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    Translation

    Golden are the (water) ways, golden are oars; golden are boats where with they carry the kustha.

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    Translation

    Full of organic effulgence are the ways splendid are the oars, the bones etc. piles, and ships, are the bodies full of lustres of the bodily powers, through which the Kustha is brought into use.

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    Translation

    Godly are the paths of a yogi. Virtuous are his accomplishments to guard him against lust and anger. Excellent are his wisdom, intellect, judgment, which he uses as paddles to cover the journey of life. The yogis attain to, through these devices, God, Who pervades the material body.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(हिरण्ययाः) हिरण्यमयाः। तेजोयुक्ताः (पन्थानः) मार्गाः (आसन्) अभवन् (अरित्राणि) अशित्रादिभ्य इत्रोत्रौ। उ० ४।१७३। इति ऋ गतौ−इत्र। नौकाचालनकाष्ठानि (हिरण्यया) हिरण्यमयानि (नावः) नौकाः (हिरण्ययीः) हिरण्यमय्यः तेजोयुक्ताः (आसन्) (याभिः) नौभिः (कुष्ठम्) म० १। गुणपरीक्षकं पुरुषम् (निरावहन्) निर्+आङ्+अवहन्। निश्चयेन आनीतवन्तः ॥

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