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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 104/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रशोचन देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    47

    ऐना॑न्द्यतामिन्द्रा॒ग्नी सोमो॒ राजा॑ च मे॒दिनौ॑। इन्द्रो॑ म॒रुत्वा॑ना॒दान॑म॒मित्रे॑भ्यः कृणोतु नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ए॒ना॒न् । द्य॒ता॒म् । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । सोम॑: । राजा॑ । च॒ । मे॒दिनौ॑ । इन्द्र॑: । म॒रुत्वा॑न् । आ॒ऽदान॑म् । अ॒मित्रे॑भ्य: । कृ॒णो॒तु॒ । न॒: ॥१०४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऐनान्द्यतामिन्द्राग्नी सोमो राजा च मेदिनौ। इन्द्रो मरुत्वानादानममित्रेभ्यः कृणोतु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । एनान् । द्यताम् । इन्द्राग्नी इति । सोम: । राजा । च । मेदिनौ । इन्द्र: । मरुत्वान् । आऽदानम् । अमित्रेभ्य: । कृणोतु । न: ॥१०४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 104; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं के हराने का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि के समान गुणवान् (मेदिनौ) प्रीति करनेवाले (सोमः) सेनाप्रेरक युद्धमन्त्री (च) और (राजा) ऐश्वर्यवान् न्यायाधीश दोनों (एनान्) इन शत्रुओं को (आद्यताम्) बाँध लेवें। (मरुत्वान्) शूरों को साथ रखनेवाला (इन्द्रः) महाप्रतापी राजा (नः) हमारे (अमित्रेभ्यः) शत्रुओं के लिये (आदानम्) आकर्षण यन्त्र (कृणोतु) बनावे ॥३॥

    भावार्थ

    सेनासचिव, न्यायमन्त्री और मुख्य सेनापति अपने शूर वीरों से शत्रुओं को परास्त करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(एनान्) शत्रून् (आद्यताम्) बध्नीताम् (इन्द्राग्नी) वाय्वग्निवद् गुणवन्तौ। इन्द्राग्नी=वाय्वग्नी−दयानन्द-भाष्ये यजु० २१।२०। (सोमः) सेनाप्रेरको युद्धमन्त्री (राजा) ऐश्वर्यवान् न्यायसचिवः (च) (मेदिनौ) मिद स्नेहने−णिनि। स्नेहिनौ (इन्द्रः) महाप्रतापी राजा (मरुद्भिः) शूरवीरैर्युक्तः अ० १।२०।१। (आदानम्) आकर्षणयन्त्रम् (अमित्रेभ्यः) शत्रूणां बन्धाय (कृणोतु) करोतु (नः) अस्माकम् ॥

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    विषय

    इन्द्र+मरुत्वान्

    पदार्थ

    १. (इन्द्राग्नी) = जितेन्द्रियता व आगे बढ़ने की वृत्ति (एनान्) = इन शत्रुओं को (आद्यताम्) = सर्वथा बन्धन में करनेवाली हो। इन शत्रुओं को बन्धन में करने पर (सोम:) = शरीरस्थ [वीर्य] (च) = और (राजा) = [राजू दीप्तौ] जीवन की दीप्ति (मेदिनौ) = हमारे प्रति स्नेह करनेवाली हों। शत्रुओं को वशीभूत करने पर शरीर में सोम का रक्षण होता है और जीवन दीस बनता है। २. (मरुत्वान्) = प्राणोंवाला (इन्द्रः) = इन्द्र (न:) = हमारे (अमित्रेभ्यः) = शत्रुओं के लिए (आदानम्) = बन्धन को (कृणोतु) = करे। प्राणसाधना करता हुआ जितेन्द्रिय पुरुष काम-क्रोध आदि शत्रुओं को वशीभूत करनेवाला हो।

    भावार्थ

    हम जितेन्द्रिय बनें, आगे बढ़ने की वृत्तिवाले हों। ऐसा होने पर ही हम सोम का रक्षण कर पाएँगे और जीवन को दीसि बना पाएंगे। प्राणसाधना करते हुए जितेन्द्रिय बनना ही काम-क्रोध आदि के वशीकरण का उपाय है।

    विशेष

    जितन्द्रिय पुरुष ही नीरोग बनता है। यह 'कासा' आदि रोगों का विजेता 'उन्मोचन' कहलता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (इन्द्राग्नी) इन्द्र सम्राट और अग्रणी प्रधानमन्त्री (मेदिनौ) स्नेही होकर, इसी प्रकार (सोमः) सेनाध्यक्ष (च) और (राजा) राष्ट्रपति वरुण नामक राजा भी (मेदिनौ) स्नेही होकर, (एनान्) इन शत्रुओं को (आ द्यताम्) बन्द करने का दण्ड दें। (मरुत्वान्) सेनाधिपति (इन्द्रः) सम्राट् (नः) हमारे (अभिनेभ्यः) शत्रुओं के लिये (आदानम्) पकड़ने के जाल का प्रयोग (कृणोतु) करे।

    टिप्पणी

    [सम्राट्, प्रधानमन्त्री, सेनाध्यक्ष तथा वरुण राजा– ये चारों स्नेहार्द्र हृदय होकर बन्द करने के दण्ड का प्रयोग करें, विद्वेष भावना से नहीं। इन्द्रः राजा= इन्द्रश्च सम्राड् वरुणश्च राजा" (यजु० ८।३७)। अग्निः "अग्रणीर्भवति" (निरुक्त ७।४। १४)। सोमः= सेनाध्यक्ष (यजु० १७।४०)। मरुतः= मारने में कुशल सैनिक (यजु० १७।४०, ४१)। मेदिनौ= ञिमिदा स्नेहने (भ्वादि:, दिवादिः) स्नेहिनौ, न कि मेदस्विनौ= स्थूलकायौ]।

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    विषय

    शत्रुओं का पराजय और बन्धन।

    भावार्थ

    (इन्द्राग्नी) राजा और सेनापति (एनान्) उक्त शत्रुओं को (आ द्यताम्) बांध लें। (सोमः राजा च) सोम और राजा दोनों ही (मेदिनौ) इस कार्य के लिये बलवान् हैं। और (इन्द्र:) इन्द्र (मरुत्वान्) मरुत् = वीरभटों के साथ (नः) हमारे (अमित्रेभ्यः) शत्रुओं के लिये (आदानम्) बन्धनपाश (कृणोतु) तैयार करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रशोचन ऋषिः। इन्द्राग्नी उत बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Conquest of Enemies

    Meaning

    Let Indra and Agni, the powerful ruler and blazing commander, and let the ruler and Soma, peaceable keeper, both accordant in law and cooperation, bind them. And let Indra, commander of stormy forces, prepare for us the method and strategy of taking over and binding our enemies.

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    Translation

    May the resplendent army-chief and the adorable king allied and the shining blissful Lord fetter them. May the resplendent army chief make fetters for our enemies.

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    Translation

    Let the King and commanding officer bind them fast, the leader of arm forces and the administrator of the region are powerful and let the mighty weapon-producer with the heroes prepare the bond to bind our enemies.

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    Translation

    May the Defense Minister and the Lord of Justice, friendly, and active Iike wind and fire bind them fast. May the king, equipped with warriors arrange for the capture of our enemies.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(एनान्) शत्रून् (आद्यताम्) बध्नीताम् (इन्द्राग्नी) वाय्वग्निवद् गुणवन्तौ। इन्द्राग्नी=वाय्वग्नी−दयानन्द-भाष्ये यजु० २१।२०। (सोमः) सेनाप्रेरको युद्धमन्त्री (राजा) ऐश्वर्यवान् न्यायसचिवः (च) (मेदिनौ) मिद स्नेहने−णिनि। स्नेहिनौ (इन्द्रः) महाप्रतापी राजा (मरुद्भिः) शूरवीरैर्युक्तः अ० १।२०।१। (आदानम्) आकर्षणयन्त्रम् (अमित्रेभ्यः) शत्रूणां बन्धाय (कृणोतु) करोतु (नः) अस्माकम् ॥

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