अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 2
ऋषिः - शन्ताति
देवता - रुद्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जलचिकित्सा सूक्त
97
जा॑ला॒षेणा॒भि षि॑ञ्चत जाला॒षेणोप॑ सिञ्चत। जा॑ला॒षमु॒ग्रं भे॑ष॒जं तेन॑ नो मृड जी॒वसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठजा॒ला॒षेण॑ । अ॒भि । सि॒ञ्च॒त॒ । जा॒ला॒षेण॑ । उप॑ । सि॒ञ्च॒त॒ । जा॒ला॒षम् । उ॒ग्रम् । भे॒ष॒जम् । तेन॑ । न॒: । मृ॒ड॒ । जी॒वसे॑ ॥५७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
जालाषेणाभि षिञ्चत जालाषेणोप सिञ्चत। जालाषमुग्रं भेषजं तेन नो मृड जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठजालाषेण । अभि । सिञ्चत । जालाषेण । उप । सिञ्चत । जालाषम् । उग्रम् । भेषजम् । तेन । न: । मृड । जीवसे ॥५७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
दोष के नाश के लिये उपदेश।
पदार्थ
(जालाषेण) जलसम्बन्धी द्रव्य से [फोड़े को] (अभि सिञ्चत) सब और से सींचो, (जालाषेण) सुखकारक पदार्थों से [उसे] (उप सिञ्चत) पास से सींचो। (जालाषम्) सुखों का समूह [वेदज्ञान] (उग्रम्) तीक्ष्ण (भेषजम्) औषध है, (तेन) उससे [हे रुद्र] (नः) हमें (जीवसे) जीने के लिये (मृड) सुखी रख ॥२॥
भावार्थ
जैसे वैद्य औषधियों द्वारा रोगों को अच्छा करते हैं, वैसे ही मनुष्य वेदज्ञान से अपने पाप नष्ट कर के सुखी होवें ॥२॥
टिप्पणी
२−(जालाषेण) जायते जः। जैर्जातैर्लष्यते वाञ्छ्यते। ज+लष इच्छायाम्−घञ्। जलाषमुदकम्−निघ० १।१२। सुखनाम−निघ० ३।६। तस्येदम्। पा० ४।१।९२। इति, अण्। जलसम्बन्धिना वस्तुना (अभि) अभितः (सिञ्चत) व्रणं प्रक्षालयत, हे वैद्याः (जालाषेण) सुखकरेण द्रव्येण (उप) उपेत्य (सिञ्चत) शोधयत (जालाषम्) तस्य समूहः। पा० ४।२।३७। इति, अण्। सुखस्य समूहो वेदज्ञानम् (उग्रम्) तीक्ष्णम् (भेषजम्) भयनिवारकं वस्तु (तेन) जालाषेण (नः) अस्मान् (मृड) सुखय (जीवसे) जीवनार्थम् ॥
विषय
गोमूत्र-फेन से वणचिकित्सा
पदार्थ
१. [जालाषमिति उदकनामसु पठितम्। अत्र च विनियोगानुसारेण गोमूत्रफेनलक्षणम्-सा०] हे परिचारको! (जालाषेण अभिषिञ्बत) = गोमूत्र-फेन से व्रण को सब ओर से धोओ [प्रक्षालयत], (जालाषेण उपसिञ्चत) = गोमूत्र-फेन से इसे उपसिक्त करो-रुई को उसमें भिगोकर व्रण पर रखो। यह (जालाषम्) = गोमूत्रफेन (उग्रं भेषजम्) = बड़ा तीक्ष्ण रोग-निवर्तक औषध है। हे इन्द्र! (तेन) = उस जालाष से (न:) = हमें (जीवसे) = दीर्घजीवन की प्राप्ति के लिए (मुड) = सखी कीजिए।
भावार्थ
गोमूत्रफेन तीव्र कृमिनाशक औषध है। इसके प्रयोग से कैंसर आदि का दूर होना भी सम्भव है।
भाषार्थ
(जालाषेण) प्रदीप्त अर्थात् गर्म जल द्वारा (अभिषिञ्चत) क्षत प्रदेश को स्नान कराओ, अच्छी तरह धोओ, और (जालाषेण) प्राप्त जल द्वारा (उपषिञ्चत) समीप से सेक करो। (जालाषम् ) गर्म या प्रतप्त जल (उग्रम, भेषजम्) उग्र भषज है (तेन) उस [औषध] द्वारा ( न:) हमें (जीवसे) जीने के लिये (मृड) हे जल चिकित्सक ! तू सुखी कर ।
टिप्पणी
[जालाषम्१= जलाषमेव जालाषम् उदकनाम (निघं० १।१२)। जलाषम्= जल+ अष दीप्तौ (भ्वादिः)। प्रदीप्तजल या गर्म जल। गर्म जल द्वारा धोने से क्षत प्रदेश में कीटाणु-प्रवेश (Infection) नहीं होता।] [१. सायणानुसार पाठ है "जलाषम् और अर्थ है "गोमूत्रफेन"]
विषय
व्रणचिकित्सा।
भावार्थ
हे विद्वान् पुरुषो ! (जालाषेण) जल से (अभि सिञ्चत) स्नान कराओ, (जालाषेण उपसिञ्चत) जल से ही व्रण आदि को धोओ। (जालाषम्) जल ही (उग्र-भेषजम्) तीव्र रोगनाशक पदार्थ है। हे परमात्मन् ! (तेन) उस जल के द्वारा ही (जीवसे) मुखमय जीवन के लिये (नः) हमें (मृड) सुखी कर। अध्यात्म में—‘ज-लाष’ प्राणियों का एकमात्र अभिलाषा का विषय = परम ब्रह्मसुख।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंततिर्ऋषिः। १-२ रुद्रः, ३ भेषजं देवता। १ २ अनुष्टुभौ। ३ पथ्या बृहती। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Water Treatment
Meaning
Wash the wound all round with water medication, wash it on and in with water medication. Jalasha, the medicinal water, is very intense in action. O physician, be kind and gracious with intense Jalasha for a long healthy life.
Translation
Bathe the parts all around with water. Bathe the inner parts with water. The water is a powerful remedy. May you make us happy with it, 50 that we. may live
Translation
Besprinkle it with jalasha, the anodyne, make it wet with relieving balm, this medicine is strong and shoothing, with this bless us, O Physician! to make me live long.
Translation
O physician besprinkle the wound with anodyne, bedew it with relieving balm. Vedic knowledge is a strong, soothing medicine, O God, bless us therewith, that we may live.
Footnote
Just as a physician cures diseases through medicine, so should a man remove his moral weaknesses through the knowledge of the Vedas, and try to live long.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(जालाषेण) जायते जः। जैर्जातैर्लष्यते वाञ्छ्यते। ज+लष इच्छायाम्−घञ्। जलाषमुदकम्−निघ० १।१२। सुखनाम−निघ० ३।६। तस्येदम्। पा० ४।१।९२। इति, अण्। जलसम्बन्धिना वस्तुना (अभि) अभितः (सिञ्चत) व्रणं प्रक्षालयत, हे वैद्याः (जालाषेण) सुखकरेण द्रव्येण (उप) उपेत्य (सिञ्चत) शोधयत (जालाषम्) तस्य समूहः। पा० ४।२।३७। इति, अण्। सुखस्य समूहो वेदज्ञानम् (उग्रम्) तीक्ष्णम् (भेषजम्) भयनिवारकं वस्तु (तेन) जालाषेण (नः) अस्मान् (मृड) सुखय (जीवसे) जीवनार्थम् ॥
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