अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 112/ मन्त्र 1
ऋषि: - वरुणः
देवता - आपः, वरुणः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - पापनाशन सूक्त
34
शुम्भ॑नी॒ द्यावा॑पृथि॒वी अन्ति॑सुम्ने॒ महि॑व्रते। आपः॑ स॒प्त सु॑स्रुवुर्दे॒वीस्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठशुम्भ॑नी॒ इति॑ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । अन्ति॑सुम्ने॒ इत्यन्ति॑ऽसुम्ने । महि॑व्रते॒ इति॑ महि॑ऽव्रते । आप॑: । स॒प्त । सु॒स्रु॒वु॒: । दे॒वी: । ता: । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥११७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शुम्भनी द्यावापृथिवी अन्तिसुम्ने महिव्रते। आपः सप्त सुस्रुवुर्देवीस्ता नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठशुम्भनी इति । द्यावापृथिवी इति । अन्तिसुम्ने इत्यन्तिऽसुम्ने । महिव्रते इति महिऽव्रते । आप: । सप्त । सुस्रुवु: । देवी: । ता: । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥११७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
इन्द्रियों के जय का उपदेश।
पदार्थ
(शुम्भनी) शोभायमान (द्यावपृथिवी) सूर्य और पृथिवी लोक (अन्तिसुम्ने) [अपनी] गतियों से सुख देनेवाले और (महिव्रते) बड़े व्रत [नियम] वाले हैं। (देवीः) उत्तम गुणवाली (सप्त) सात (आपः) व्यापनशील इन्द्रियाँ [दो कान, दो नथने, दो आँखें और एक मुख] (सुस्रुवुः) [हमें] प्राप्त हुई हैं, (ताः) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१॥
भावार्थ
जैसे सूर्य और पृथिवी लोक ईश्वरनियम से अपनी-अपनी गति पर चल कर वृष्टि अन्न आदि से उपकार करते हैं, वैसे ही मनुष्य इन्द्रियों को नियम में रखकर अपराधों से बचें ॥१॥ (सप्त आपः) पदों का मिलान करो (सप्त सिन्धवः) पदों से-अ० ४।६।२ ॥
टिप्पणी
१−(शुम्भनी) शुम्भ शोभायाम्-ल्युट्। शुम्भन्यौ शोभायमाने (द्यावापृथिवी) सूर्यभूलोकौ (अन्तिसुम्ने) वसेस्तिः। उ० ४।१८०। अम गतौ−ति। सुम्नं सुखम्-निघ० ३।६। स्वगतिभिः सुखकारिण्यौ (महिव्रते) अत्यन्तनियमयुक्ते (आपः) व्यापनशीलानीन्द्रियाणि। शीर्षण्यानि कर्णनासिकाचक्षुर्द्वयमुखानि। सिन्धवः-अ० ४।६।२। (सप्त) अ० ४।६।२। सप्तसंख्याकाः (सुस्रुवुः) स्रु गतौ-लिट्। अस्मान् प्रापुः (देवीः) दिव्यगुणाः (ताः) आपः (नः) अस्मान् (मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (अंहसः) कष्टात् ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Freedom from Sin
Meaning
Heaven and earth, both bright and beautiful, kind and close at heart, which use mighty observers of the laws of existence, and the seven streams of life which flow through pranas, senses and mind, and all through our actions, may all these keep us away and save us from sin and suffering.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal