अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 7
तद्विष्णोः॑ पर॒मं प॒दं सदा॑ पश्यन्ति सू॒रयः॑। दि॒वीव॒ चक्षु॒रात॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । विष्णो॑: । प॒र॒मम् । प॒दम् । सदा॑ । प॒श्य॒न्ति॒ । सू॒रय॑: । दि॒विऽइ॑व । चक्षु॑: । आऽत॑तम् ॥२७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः। दिवीव चक्षुराततम् ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । विष्णो: । परमम् । पदम् । सदा । पश्यन्ति । सूरय: । दिविऽइव । चक्षु: । आऽततम् ॥२७.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
व्यापक ईश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(सूरयः) बुद्धिमान् पण्डित लोग (विष्णोः) सर्वव्यापक विष्णु के (तत्) उस (परमम्) अति उत्तम (पदम्) पाने योग्य स्वरूप को (सदा) सदा (पश्यन्ति) देखते हैं (इव) जैसे (दिवि) प्रकाश में (आततम्) फैला हुआ (चक्षुः) नेत्र [दृश्य पदार्थों को देखता है] ॥७॥
भावार्थ
जैसे प्राणी सूर्य आदि के प्रकाश में शुद्ध नेत्रों से पदार्थों को देखते हैं, वैसे ही विद्वान् लोग निर्मल विज्ञान से अपने आत्मा में जगदीश्वर के आनन्दस्वरूप मोक्ष पद को साक्षात् करके आनन्द पाते हैं ॥७॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।२२।२०; यजु०−६।५; साम० उ०−८।२।५ ॥
टिप्पणी
७−(तत्) प्रसिद्धम् (विष्णोः) व्यापकस्य (परमम्) सर्वोत्कृष्टम् (पदम्) प्राप्तव्यं स्वरूपं मोक्षम् (सदा) सर्वदा (पश्यन्ति) संप्रेक्षन्ते। साक्षात्कुर्वन्ति (सूरयः) अ० २।११।४। मेधाविनः पण्डिताः (दिवि) सूर्यादिप्रकाशे (इव) यथा (चक्षुः) नेत्रम्। पश्यति दृश्यानि इति शेषः (आततम्) प्र सृतम् ॥
इंग्लिश (1)
Subject
Omnipresent Vishnu
Meaning
The eminent brave, scholars, sages and devotees always see that supreme power and presence of Vishnu pervasive in the universe just as we see the sun, all¬ watching eye of the world, shining in heaven.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(तत्) प्रसिद्धम् (विष्णोः) व्यापकस्य (परमम्) सर्वोत्कृष्टम् (पदम्) प्राप्तव्यं स्वरूपं मोक्षम् (सदा) सर्वदा (पश्यन्ति) संप्रेक्षन्ते। साक्षात्कुर्वन्ति (सूरयः) अ० २।११।४। मेधाविनः पण्डिताः (दिवि) सूर्यादिप्रकाशे (इव) यथा (चक्षुः) नेत्रम्। पश्यति दृश्यानि इति शेषः (आततम्) प्र सृतम् ॥
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