अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 61/ मन्त्र 1
यद॑ग्ने॒ तप॑सा॒ तप॑ उपत॒प्याम॑हे॒ तपः॑। प्रि॒याः श्रु॒तस्य॑ भूया॒स्मायु॑ष्मन्तः सुमे॒धसः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अ॒ग्ने॒ । तप॑सा । तप॑: । उ॒प॒ऽत॒प्याम॑हे । तप॑: । प्रि॒या: । श्रु॒तस्य॑ । भू॒या॒स्म॒ । आयु॑ष्मन्त: । सु॒ऽमे॒धस॑: ॥६३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यदग्ने तपसा तप उपतप्यामहे तपः। प्रियाः श्रुतस्य भूयास्मायुष्मन्तः सुमेधसः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अग्ने । तपसा । तप: । उपऽतप्यामहे । तप: । प्रिया: । श्रुतस्य । भूयास्म । आयुष्मन्त: । सुऽमेधस: ॥६३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
वेदविद्या प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(अग्ने) हे विद्वन् आचार्य ! (यत्) जिस कारण से (तपसा) तप [शीत उष्ण, सुख दुःख आदि द्वन्द्वों के सहन] से (तपः) ऐश्वर्य के हेतु (तपः) तप [ब्रह्मचर्य आदि सत्यव्रत] को (उपतप्यामहे) हम ठीक-ठीक काम में लाते हैं। [उसी से] हम (श्रुतस्य) वेदशास्त्र के (प्रियाः) प्रीति करनेवाले, (आयुष्मन्तः) प्रशंसनीय आयुवाले और (सुमेधसः) तीव्रबुद्धि (भूयास्म) हो जावें ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य तप अर्थात् द्वन्द्वों का सहन और पूर्ण ब्रह्मचर्य के सेवन से वेदविद्या प्राप्त करके यशस्वी और तीव्रबुद्धि होकर संसार का उपकार करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(यत्) यस्मात् कारणात् (अग्ने) विद्वन्। आचार्य (तपसा) तप सन्तापे ऐश्वर्ये च-असुन्। श्रमेण। शीतोष्णसुखदुःखादिद्वन्द्वसहनेन (तपः) ऐश्वर्यकारणम् (उपतप्यामहे) यथावदनुतिष्ठामः (तपः) ब्रह्मचर्यादिसत्यव्रतम् (प्रियाः) प्रीतिकर्तारः (श्रुतस्य) वेदशास्त्रस्य (भूयास्म) (आयुष्मन्तः) श्रेष्ठजीवनयुक्ताः (सुमेधसः) सुमेधावन्तः ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Intelligence by Tapas
Meaning
Agni, lord of light, enlightened teacher and guide, when with relentless rule of austerity we undertake the hard discipline of study and training which is pursued without reservation and remiss, then let us be dear dedicated favourites of mother Shruti, Veda, and live a long life with good health and noble intelligence of high order.
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