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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - चतुष्पदा प्राजापत्या पङ्क्तिः सूक्तम् - विराट् सूक्त
    23

    सोद॑क्राम॒त्सा पि॒तॄनाग॑च्छ॒त्तां पि॒तरो॑ऽघ्नत॒ सा मा॒सि सम॑भवत्।

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । पि॒तृन् । आ । अ॒ग॒च्छ॒त् । ताम् । पि॒तर॑: । अ॒घ्न॒त॒ । सा । मा॒सि । सम् । अ॒भ॒व॒त् ॥१२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्सा पितॄनागच्छत्तां पितरोऽघ्नत सा मासि समभवत्।

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । उत् । अक्रामत् । सा । पितृन् । आ । अगच्छत् । ताम् । पितर: । अघ्नत । सा । मासि । सम् । अभवत् ॥१२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (सा उत् अक्रामत्) वह [विराट्] ऊपर चढ़ा, (सा) वह (पितॄन्) ऋतुओं में (आ अगच्छत्) आई, (ताम्) उसको (पितरः) ऋतुएँ (अघ्नत) प्राप्त हुए, (सा) वह (मासि) महीने में [वा चन्द्रमा में] (सम् अभवत्) संयुक्त हुई ॥३॥

    भावार्थ

    ईश्वरशक्ति की महिमा ऋतु आदि कालों में प्रकट है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(पितॄन्) ऋतून्-दयानन्दभाष्ये, यजु० ८।६०। (पितरः) ऋतवः (मासि) मासे मासे। चन्द्रमसि। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    पितरों का विराट को प्राप्त होना

    पदार्थ

    १. (सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा पितन् आगच्छत) = वह पितरों को प्राप्त हुई। (पितरः ताम् अन्नत) = पितृजन उस विराट को प्राप्त हुए। (सा) = वह विराट् (मासि) = सम्पूर्ण मास में (सम् अभवत्) = उन पितरों के साथ हुई । (तस्मात्) = विराट के पितरों के साथ होने से (पितृभ्यः) = पितजनों के लिए (मासि) = प्रत्येक मास पर (उपमास्यं ददति) = मासिक वृत्ति दे देते हैं। उत्तम सन्तान प्रतिमास पितरों के लिए आवश्यक धन देना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। यही उनका पितृयज्ञ होता है। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार इस पितृयज्ञ के महत्व को समझ लेता है, वह (पिृयाणं पन्थां प्रजानाति) = पित्याणमार्ग को सम्यक् जान लेता है। इस पित्याण से चलता हुआ वह चन्द्रलोक [स्वर्ग] को प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    विशिष्ट दीसिवाली शासन-व्यवस्थावाले राष्ट्र में युवक पितृयज्ञ को सम्यक् निभाते हैं। प्रतिमास पितरों के लिए आवश्यक धन प्राप्त करा देना वे अपना कर्तव्य समझते हैं।

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    भाषार्थ

    (सा) वह विराट् (उदक्रामत्) उत्क्रान्त हुई, समुन्नत हुई, (सा) वह (पितॄन्) ऋतुओं१ की ओर (आगच्छत्) आई (ताम्) उसे (पितरः) ऋतुओं ने (अघ्नत) प्राप्त किया। (सा) वह समुन्नत विराट् (मासि) मास में (सम् अभवत्) प्रकट हुई।

    टिप्पणी

    [यद्यपि दो मासों की एक ऋतु होती है। तो भी ऋतु के दो मासों२ में से प्रत्येक मास में विराट् प्रकट होती है]।[१. ऋतवो वै पितरः (शतपथ २।६।१।३२)। २. वैदिक साहित्य में प्रत्येक मास को भी ऋतु कहा है। यथा "मधुश्च माधवश्च वासन्तिकावृतू" (यजु० १३।२५); "शुक्रश्च शुचिश्चि ग्रैष्मावृतू" (यजु० १४।६); "नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतू" (यजु० १४।१५) इत्यादि। मधु= चैत्र, माधव= वैशाख ये दो मास "ऋतू" दो ऋतुएं हैं। इसी प्रकार शुक्र= ज्येष्ठ शुचि= आषाढ़ ये दो मास "ऋतू" दो ऋतुएं है। तथा नभः= श्रावण, नभस्य= भाद्रपद ये दो मास "ऋतू" दो ऋतुए हैं। इन तीन प्रमाणों में "ऋतू" पद द्विवचनान्त हैं, अतः दो मास को सूचित करते हैं। इसी प्रकार देखो (यजु० १४।१६; १४।२७)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    Virat proceeded on and came to the Pitaras, parents and seniors. Parents and seniors received and welcomed it. It joined and manifested in the month.

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    Translation

    She moved up. She came to the elders (pitrn). The elders smote her. In a month (masi), she came into being (again).

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    Translation

    This mounted up and came to men of practice and action. They wounded this virat. Ina month this got it healed.

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    Translation

    The glory of God arose. She approached the Fathers They lived with her. She lived with them for a month,

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(पितॄन्) ऋतून्-दयानन्दभाष्ये, यजु० ८।६०। (पितरः) ऋतवः (मासि) मासे मासे। चन्द्रमसि। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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