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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 10
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्नी बृहती सूक्तम् - विराट् सूक्त
    28

    तस्याः॒ कुबे॑रो वैश्रव॒णो व॒त्स आसी॑दामपा॒त्रं पात्र॑म्।

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्या॑: । कुबेर॑: । वै॒श्र॒व॒ण । व॒त्स: । आसी॑त् । आ॒म॒ऽपा॒त्रम् । पात्र॑म् । ॥१४.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्याः कुबेरो वैश्रवणो वत्स आसीदामपात्रं पात्रम्।

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्या: । कुबेर: । वैश्रवण । वत्स: । आसीत् । आमऽपात्रम् । पात्रम् । ॥१४.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 5; मन्त्र » 10
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    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (वैश्रवणः) विशेष श्रवण [ज्ञान] वाला (कुबेरः) कुबेर [विद्वान् पुरुष] (तस्याः) उस [विराट्] का (वत्सः) उपदेष्टा और (आमपात्रम्) सब गतियों का आधार [ब्रह्म] (पात्रम्) रक्षासाधन (आसीत्) था ॥१०॥

    भावार्थ

    विशेष श्रवण मनन करनेवाले पुरुष उस परमात्मा की शक्ति का यथावत् उपदेश करते हैं ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(तस्याः) विराजः (कुबेरः) कुम्बेर्नलोपश्च। उ० १।५९। कुबि आच्छादने-एरक्। धनाध्यक्षः। विद्वान् (वैश्रवणः) विश्रवण-अण्। विश्रवणेन विशेषज्ञानेन युक्तः (आमपात्रम्) अम गतौ भोजने च-घञ्। सर्वगतीनामाधारो ब्रह्म। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    इतरजनों द्वारा तिरोधा का दोहन

    पदार्थ

    १.(सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा इतरजनान् आगच्छत्) = [इ-तर] वह काम [बासना] को तैर जानेवाले लोगों को प्राप्त हुई। (ताम्) = उसे (इतरजना: उपाह्वयन्त) = वासना को तैरनेवाले लोग पुकारते थे कि (विषवति एहि इति) = [तिरोधा-over power, conquer, defeat] हे शत्रुपराजयशक्ते! आओ तो। (तस्याः) = उस विराट् का (वत्सः) = निय-यह वासना को पराजित करनेवाला व्यक्ति (कुबेर:) = [कुबि आच्छादने] शरीर में शक्ति को आच्छादित करनेवाला (वैश्रवण: आसीत्) = विशिष्ट श्रवण-[ज्ञान]-वाला था। (पात्रम्) = उसका यह रक्षणीय शरीर (आमपात्रम्) = सब उत्तम गतियों [अम गतौ] का आधार था। २. (ताम्) = उस विराट् को, (रजतनाभि:) = रञ्जन की साधनभूत शक्ति को अपने अन्दर बाँधनेवाला (काबेरक:) = शक्ति को अपने अन्दर ही आच्छादित करनेवाला, यह (इतरजन) = कामजयी व्यक्ति (अधोक्) = दुहता था। (तां तिरोधाम् एव अधोक्) = उसने उस शक्ति के आच्छादन का-शत्रु पराजय का ही दोहन किया। (इतरजना:) = ये वासना को तैर जानेवाले लोग (तां तिरोधाम् उपजीवन्ति) = उस शक्ति के आच्छादान की वृत्ति को-शत्रु-पराजय की वृत्ति को ही जीवनाधार बनाते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार शक्ति के अन्तरधान के महत्त्व को व कामरूप शत्रु को पराजित करने के महत्त्व को समझ लेता है, वह (सर्वं पाप्मानं तिरोधत्ते) = वह सारे पाप को पराजित कर डालता है तथा (उपजीवनीयः भवति) = औरों के जीवन में भी सहायक होता है।

    भावार्थ

    विशिष्ट शासन-व्यवस्था होने पर कामवासना को पराजित करनेवाला व्यक्ति अपने अन्दर शक्ति को आच्छादित करता है और विशिष्ट ज्ञानवाला बनता है। यह पाप को पराजित करता हुआ अपने जीवन को सुन्दर बनाता है और औरों के लिए सहायक होता है।

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    भाषार्थ

    (तस्याः) उस [इतरजन विराट्-व्यवस्था] का (वत्सः) बछड़ा या पुत्र (आसीत्) था (वैश्रवणः) श्रवण-मनन से विहीनवंश में उत्पन्न (कुबेरः) तथा निज कर्मों का अच्छादक अर्थात् उन पर पर्दा डालने वाला [इतरजनों का] राजा। (आमपात्रम्) तथा उन की अपरिपक्वनीति के रक्षा-पालन के साधन थे (पात्रम्) उनके रक्षक-पालक। कुबेरः=कुबि (आच्छादने)+रः (वाला) (भ्वादिः चुरादिः)

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    Of her, Kubera, the man of special knowledge interested in listening, was the darling child, and the man uninitiated was at the receiving end.

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    Translation

    Kubera (uncouth-bodied), son of Višravama (kuberah vaisravanah) (keen of hearing) was her calf; the unburnt clay-vessel (ama-patram) was the milking-pot.

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    Translation

    The dark-nights, darkness prevailing on the earth wherein the avdibility becomes less was the calf of this virat and untendered pot was the milking vessel.

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    Translation

    A highly wise, learned person is her preacher, and God, the Mainstay of all actions, her Guardian.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(तस्याः) विराजः (कुबेरः) कुम्बेर्नलोपश्च। उ० १।५९। कुबि आच्छादने-एरक्। धनाध्यक्षः। विद्वान् (वैश्रवणः) विश्रवण-अण्। विश्रवणेन विशेषज्ञानेन युक्तः (आमपात्रम्) अम गतौ भोजने च-घञ्। सर्वगतीनामाधारो ब्रह्म। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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