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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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मन्त्र चुनें
अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - आर्ची बृहती
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
39
स उप॑हूतो दे॒वेषु॑ भक्षय॒त्युप॑हूत॒स्तस्मि॒न्यद्दे॒वेषु॑ वि॒श्वरू॑पम् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । उप॑ऽहूत: । दे॒वेषु॑ । भ॒क्ष॒य॒ति॒ । उप॑ऽहूत: । तस्मि॑न् । यत् । दे॒वेषु॑ । वि॒श्वऽरू॑पम् ॥११.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
स उपहूतो देवेषु भक्षयत्युपहूतस्तस्मिन्यद्देवेषु विश्वरूपम् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । उपऽहूत: । देवेषु । भक्षयति । उपऽहूत: । तस्मिन् । यत् । देवेषु । विश्वऽरूपम् ॥११.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अतिथि के सत्कार का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [अतिथि जब] (उपहूतः) बुलाया गया (देवेषु) विद्वानों में [वर्तमान ब्रह्मचर्य, वेदाध्ययन, ईश्वरप्रणिधान आदि शुभ गुण] (भक्षयति) भोगता है, (तस्मिन्) उसके [भोग करने के] उपरान्त (उपहूतः) बुलाया गया वह [गृहस्थ] (देवेषु) विद्वानों में (यत्) जो कुछ (विश्वरूपम्) विविध रूप [वस्तु है, उसे भोगता है] ॥१०॥
भावार्थ
गृहस्थ ब्रह्मचारी ब्राह्मण से दीक्षा प्राप्त करके पूर्ण ब्रह्मचर्य से धर्मवृद्धि करके आनन्दित होवे ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(देवेषु) विद्वत्सु वर्तमानं ब्रह्मचर्यस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानादिशुभगुणम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
'अन्तरिक्ष, द्युलोक, देवों व लोकों' में आमन्त्रण
पदार्थ
१. (स:) = वह अतिथियज्ञ को पूर्ण करनेवाला व्यक्ति (अन्तरिक्षे) = अन्तरिक्ष में, दिवि धुलोक में, (देवेषु) = विद्वानों [ब्राह्मणों] में तथा (लोकेषु) = अन्य लोकों में [क्षत्रिय, वैश्यादि में] (उपहूत:) = आमन्त्रित हुआ-हुआ (भक्षयति) = भक्षण [सेवन] करता है, (यत् अन्तरिक्षे दिवि देवेषु लोकेषु) = जो अन्तरिक्ष में, धुलोक में, देवों में व सामान्य लोगों में (विश्वरूपम्) = नाना रूपोंवाले वायु [अन्तरिक्ष], सूर्यप्रकाश [धुलोक], ज्ञान [देव], बल, धन व अन्न [लोक] आदि पदार्थ हैं, तस्मिन् उपहूतः उनमें यह निमन्त्रित होता है।
भावार्थ
अतिथियज्ञ को पूर्ण करनेवाले व्यक्ति को 'अन्तरिक्षस्थ, धुलोकस्थ, दैवस्थ व लोकस्थ' किन्हीं भी पदार्थों की कमी नहीं रहती।
भाषार्थ
(देवेषु) देवों में स्थित हुआ (सः) वह अतिथिपति, (तस्मिन्) उस भोज के निमित्त (यद्) जोकि (देवेषु) देवों में (विश्वरूपम्) नानाविध है, (उपहूतः, उपहूतः) बार-बार निमन्त्रित हुआ (भक्षयति) भोगों का भक्षण करता है, भोगों को भोगता है।
इंग्लिश (4)
Subject
Atithi Yajna: Hospitality
Meaning
The host invited among divinities enjoys all that variety among divinities which the invited guest enjoyed in that yajna.
Translation
He, among the enlightened ones, being invited feeds well, being invited to that which wears all the forms in the enlightened ones (devesu).
Translation
He invited in learned men regales ail those forms of which the invited guest previously has enjoyed in them.
Translation
A guest respectfully invited by the learned, enjoys as an invitee all the nice articles found in the learned.
Footnote
Nice articles: Celibacy, study and profound meditation in God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(देवेषु) विद्वत्सु वर्तमानं ब्रह्मचर्यस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानादिशुभगुणम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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