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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - आर्ची बृहती सूक्तम् - अतिथि सत्कार
    39

    स उप॑हूतो दे॒वेषु॑ भक्षय॒त्युप॑हूत॒स्तस्मि॒न्यद्दे॒वेषु॑ वि॒श्वरू॑पम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । उप॑ऽहूत: । दे॒वेषु॑ । भ॒क्ष॒य॒ति॒ । उप॑ऽहूत: । तस्मि॑न् । यत् । दे॒वेषु॑ । वि॒श्वऽरू॑पम् ॥११.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स उपहूतो देवेषु भक्षयत्युपहूतस्तस्मिन्यद्देवेषु विश्वरूपम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । उपऽहूत: । देवेषु । भक्षयति । उपऽहूत: । तस्मिन् । यत् । देवेषु । विश्वऽरूपम् ॥११.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 6; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अतिथि के सत्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [अतिथि जब] (उपहूतः) बुलाया गया (देवेषु) विद्वानों में [वर्तमान ब्रह्मचर्य, वेदाध्ययन, ईश्वरप्रणिधान आदि शुभ गुण] (भक्षयति) भोगता है, (तस्मिन्) उसके [भोग करने के] उपरान्त (उपहूतः) बुलाया गया वह [गृहस्थ] (देवेषु) विद्वानों में (यत्) जो कुछ (विश्वरूपम्) विविध रूप [वस्तु है, उसे भोगता है] ॥१०॥

    भावार्थ

    गृहस्थ ब्रह्मचारी ब्राह्मण से दीक्षा प्राप्त करके पूर्ण ब्रह्मचर्य से धर्मवृद्धि करके आनन्दित होवे ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(देवेषु) विद्वत्सु वर्तमानं ब्रह्मचर्यस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानादिशुभगुणम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    'अन्तरिक्ष, द्युलोक, देवों व लोकों' में आमन्त्रण

    पदार्थ

    १. (स:) = वह अतिथियज्ञ को पूर्ण करनेवाला व्यक्ति (अन्तरिक्षे) = अन्तरिक्ष में, दिवि धुलोक में, (देवेषु) = विद्वानों [ब्राह्मणों] में तथा (लोकेषु) = अन्य लोकों में [क्षत्रिय, वैश्यादि में] (उपहूत:) = आमन्त्रित हुआ-हुआ (भक्षयति) = भक्षण [सेवन] करता है, (यत् अन्तरिक्षे दिवि देवेषु लोकेषु) = जो अन्तरिक्ष में, धुलोक में, देवों में व सामान्य लोगों में (विश्वरूपम्) = नाना रूपोंवाले वायु [अन्तरिक्ष], सूर्यप्रकाश [धुलोक], ज्ञान [देव], बल, धन व अन्न [लोक] आदि पदार्थ हैं, तस्मिन् उपहूतः उनमें यह निमन्त्रित होता है।

    भावार्थ

    अतिथियज्ञ को पूर्ण करनेवाले व्यक्ति को 'अन्तरिक्षस्थ, धुलोकस्थ, दैवस्थ व लोकस्थ' किन्हीं भी पदार्थों की कमी नहीं रहती।

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    भाषार्थ

    (देवेषु) देवों में स्थित हुआ (सः) वह अतिथिपति, (तस्मिन्) उस भोज के निमित्त (यद्) जोकि (देवेषु) देवों में (विश्वरूपम्) नानाविध है, (उपहूतः, उपहूतः) बार-बार निमन्त्रित हुआ (भक्षयति) भोगों का भक्षण करता है, भोगों को भोगता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atithi Yajna: Hospitality

    Meaning

    The host invited among divinities enjoys all that variety among divinities which the invited guest enjoyed in that yajna.

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    Translation

    He, among the enlightened ones, being invited feeds well, being invited to that which wears all the forms in the enlightened ones (devesu).

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    Translation

    He invited in learned men regales ail those forms of which the invited guest previously has enjoyed in them.

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    Translation

    A guest respectfully invited by the learned, enjoys as an invitee all the nice articles found in the learned.

    Footnote

    Nice articles: Celibacy, study and profound meditation in God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(देवेषु) विद्वत्सु वर्तमानं ब्रह्मचर्यस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानादिशुभगुणम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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