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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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मन्त्र चुनें
अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 14
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - एकपदासुर्युष्णिक्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
24
ज्योति॑ष्मतो लो॒काञ्ज॑यति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठज्योति॑ष्मत: । लो॒कान् । ज॒य॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥११.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
ज्योतिष्मतो लोकाञ्जयति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठज्योतिष्मत: । लोकान् । जयति । य: । एवम् । वेद ॥११.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
अतिथि के सत्कार का उपदेश।
पदार्थ
वह [गृहस्थ] (ज्योतिष्मतः) प्रकाशमय (लोकान्) लोकों को (जयति) जीतता है, (यः) जो (एवम्) ऐसा (वेद) जानता है ॥१४॥
भावार्थ
पूर्वोक्त प्रकार से अतिथिसेवा और विद्याप्राप्ति करके गृहस्थ ज्ञान प्रकाश के कारण सर्वत्रगति हो जाता है ॥१४॥ इति तृतीयोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी
१४−(ज्योतिष्मतः) ज्ञानप्रकाशमयान् (लोकान्) ज्ञानदशाविशेषान् (जयति) उत्कर्षेण प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत् ॥१४॥
इंग्लिश (1)
Subject
Cow: the Cosmic Metaphor
Meaning
He that knows thus, wins the worlds of light. In this Sukta the universe is described as a cow in the metaphorical sense, Cosmic Organism as it is.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(ज्योतिष्मतः) ज्ञानप्रकाशमयान् (लोकान्) ज्ञानदशाविशेषान् (जयति) उत्कर्षेण प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत् ॥१४॥
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