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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 66 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 66/ मन्त्र 7
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - मरुतः
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
अ॒ने॒नो वो॑ मरुतो॒ यामो॑ अस्त्वन॒श्वश्चि॒द्यमज॒त्यर॑थीः। अ॒न॒व॒सो अ॑नभी॒शू र॑ज॒स्तूर्वि रोद॑सी प॒थ्या॑ याति॒ साध॑न् ॥७॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ने॒नः । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । यामः॑ । अ॒स्तु॒ । अ॒न॒श्वः । चि॒त् । यम् । अज॑ति । अर॑थीः । अ॒न॒व॒सः । अ॒न॒भी॒शुः । र॒जः॒ऽतूः । वि । रोद॑सी॒ इति॑ । प॒थ्याः॑ । या॒ति॒ । साध॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथीः। अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन् ॥७॥
स्वर रहित पद पाठअनेनः। वः। मरुतः। यामः। अस्तु। अनश्वः। चित्। यम्। अजति। अरथीः। अनवसः। अनभीशुः। रजःऽतूः। वि। रोदसी इति। पथ्याः। याति। साधन् ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 66; मन्त्र » 7
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
विषय - बिना पैट्रोल का यान
शब्दार्थ -
(मरुतः) हे मरुतो ! वीर सैनिको ! (व:) तुम्हारा (याम:) यान, जहाज (अन् एन:) निर्विघ्न गतिकारी (अस्तु) हो । तुम्हारा वह यान (रज: तूः) अणुशक्ति से चालित हो (यम्) जो (अन् अश्व:) बिना घोड़ों के (अरथी:) बिना सारथि के (अनवस:) बिना अन्न, बिना लकड़ी, कोयला या पैट्रोल के (अन् अभीशू:) बिना रासों के, बिना लगाम के (चित्) ही (रोदसी) भूमि पर और आकाश में (अजति) चल सके, जा सके (पथ्या साधन्) गतियों को साधता हुआ (वि याति) विशेष रूप से और विविध प्रकार से गति कर सके ।
भावार्थ - मन्त्र में अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में अणुशक्ति से चालित यान का वर्णन है। देश के सैनिकों के पास इस प्रकार के यान होने चाहिए जो बिना ईंधन, लकड़ी और पैट्रोल के ही गति कर सकें। कैसे हों वे यान ? १. वे यान अणु-शक्ति से चालित होने चाहिएँ । २. उनमें घोड़े जोतने की आवश्यकता न हो । ३. उनमें लकड़ी, कोयला, हवा, पानी, पैट्रोल की आवश्यकता भी न हो । ४. उनमें लगाम, रास अथवा संचालक साधन की आवश्यकता न हो । वे स्वचालित हों । ५. वे भूमि पर भी चल सकें और आकाश में भी गति कर सकें। ६. वे विभिन्न प्रकार की गतियाँ करने में समर्थ हों ।
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