Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 152 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 152/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शासो भारद्वाजः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    स्व॒स्ति॒दा वि॒शस्पति॑र्वृत्र॒हा वि॑मृ॒धो व॒शी । वृषेन्द्र॑: पु॒र ए॑तु नः सोम॒पा अ॑भयंक॒रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒स्ति॒ऽदाः । वि॒शः । पतिः॑ । वृ॒त्र॒ऽहा । वि॒ऽमृ॒धः । व॒शी । वृषा॑ । इन्द्रः॑ । पु॒रः । ए॒तु॒ । नः॒ । सो॒म॒ऽपाः । अ॒भ॒य॒म्ऽक॒रः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वस्तिदा विशस्पतिर्वृत्रहा विमृधो वशी । वृषेन्द्र: पुर एतु नः सोमपा अभयंकरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वस्तिऽदाः । विशः । पतिः । वृत्रऽहा । विऽमृधः । वशी । वृषा । इन्द्रः । पुरः । एतु । नः । सोमऽपाः । अभयम्ऽकरः ॥ १०.१५२.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 152; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 2

    Meaning -
    Generous and virile Indra, giver of happiness and all round well being, ruler and protector of the people, destroyer of darkness, sin and evil, who destroys enemies and rules and controls the world, may, we pray, ever be with us as protector and promoter of the soma joy of his creation and give us freedom from fear and oppression.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top