Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 13
    ऋषिः - त्रित ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    5

    अग्रे॑ बृ॒हन्नु॒षसा॑मू॒र्ध्वोऽअ॑स्थान्निर्जग॒न्वान् तम॑सो॒ ज्योति॒षागा॑त्। अ॒ग्निर्भा॒नुना॒ रुश॑ता॒ स्वङ्ग॒ऽआ जा॒तो विश्वा॒ सद्मा॑न्यप्राः॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्रे॑। बृ॒हन्। उ॒षसा॑म्। ऊ॒र्ध्वः। अ॒स्था॒त्। नि॒र्ज॒ग॒न्वानिति॑ निःऽजग॒न्वान्। तम॑सः। ज्योति॑षा। आ। अ॒गा॒त्। अ॒ग्निः। भा॒नुना॑। रुश॑ता। स्वङ्ग॒ इति॑ सु॒ऽअङ्गः॑। आ। जा॒तः। विश्वा॑। सद्मा॑नि। अ॒प्राः॒ ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्रे बृहन्नुषसामूर्ध्वाऽअस्थान्निर्जगन्वान्तमसो ज्योतिषागात् । अग्निर्भानुना रुशता स्वङ्गऽआ जातो विश्वा सद्मान्यप्राः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्रे। बृहन्। उषसाम्। ऊर्ध्वः। अस्थात्। निर्जगन्वानिति निःऽजगन्वान्। तमसः। ज्योतिषा। आ। अगात्। अग्निः। भानुना। रुशता। स्वङ्ग इति सुऽअङ्गः। आ। जातः। विश्वा। सद्मानि। अप्राः॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे राजन्! जो आप (अग्रे) पहिले से जैसे सूर्य्य (स्वङ्गः) सुन्दर अवयवों से युक्त (आजातः) प्रकट हुआ (बृहन्) बæड़ा (उषसाम्) प्रभातों के (ऊर्ध्वः) ऊपर आकाश में (अस्थात्) स्थिर होता और (रुशता) सुन्दर (भानुना) दीप्ति तथा (ज्योतिषा) प्रकाश से (तमसः) अन्धकार को (निर्जगन्वान्) निरन्तर पृथक् करता हुआ (आगात्) सब लोक-लोकान्तरों को प्राप्त होता है, (विश्वा) सब (सद्मानि) स्थूल स्थानों को (अप्राः) प्राप्त होता है, उसके समान प्रजा के बीच आप हूजिये॥१३॥

    भावार्थ - जो सूर्य्य के समान श्रेष्ठ गुणों से प्रकाशित, सत्पुरुषों की शिक्षा से उत्कृष्ट, बुरे व्यसनों से अलग, सत्य-न्याय से प्रकाशित, सुन्दर अवयव वाला, सर्वत्र प्रसिद्ध, सबके सत्कार और जानने योग्य व्यवहारों का ज्ञाता, और दूतों के द्वारा सब मनुष्यों के आशय को जानने वाला, शुद्ध, न्याय से प्रजाओं में प्रवेश करता है, वही पुरुष राजा होने के योग्य होता है॥१३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top