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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 13
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - रत्नवान् धनवानात्मा देवता छन्दः - भुरिगतिशक्वरी स्वरः - पञ्चमः
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    अश्मा॑ च मे॒ मृत्ति॑का च मे गि॒रय॑श्च मे॒ पर्व॑ताश्च मे॒ सिक॑ताश्च मे॒ वन॒स्पत॑यश्च मे॒ हिर॑ण्यं च॒ मेऽय॑श्च मे श्या॒मं च॑ मे लो॒हं च॑ मे॒ सीसं॑ च मे॒ त्रपु॑ च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्मा॑। च॒। मे॒। मृत्ति॑का। च॒। मे॒। गि॒रयः॑। च॒। मे॒। पर्व॑ताः। च॒। मे॒। सिक॑ताः। च॒। मे॒। वन॒स्पत॑यः। च॒। मे॒। हिर॑ण्यम्। च॒। मे॒। अयः॑। च॒। मे॒। श्या॒मम्। च॒। मे॒। लो॒हम्। च॒। मे॒। सीस॑म्। च॒। मे॒। त्रपु॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्मा च मे मृत्तिका च मे गिरयश्च मे पर्वताश्च मे सिकताश्च मे वनस्पतयश्च मे हिरण्यञ्च मे यश्च मे श्यामञ्च मे लोहञ्च मे सीसञ्च मे त्रपु च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्मा। च। मे। मृत्तिका। च। मे। गिरयः। च। मे। पर्वताः। च। मे। सिकताः। च। मे। वनस्पतयः। च। मे। हिरण्यम्। च। मे। अयः। च। मे। श्यामम्। च। मे। लोहम्। च। मे। सीसम्। च। मे। त्रपु। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 13
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    पदार्थ -
    (मे) मेरा (अश्मा) पत्थर (च) और हीरा आदि रत्न (मे) मेरी (मृत्तिका) अच्छी माटी (च) और साधारण माटी (मे) मेरे (गिरयः) मेघ (च) और अन्न आदि (मे) मेरे (पर्वताः) बड़े-छोटे पर्वत (च) और पर्वतों में होने वाले पदार्थ (मे) मेरी (सिकताः) बड़ी बालू (च) और छोटी-छोटी बालू (मे) मेरे (वनस्पतयः) बड़ आदि वृक्ष (च) और आम आदि वृक्ष (मे) मेरा (हिरण्यम्) सब प्रकार का धन (च) तथा चांदी आदि (मे) मेरा (अयः) लोहा (च) और शस्त्र (मे) मेरा (श्यामम्) नीलमणि वा लहसुनिया आदि (च) और चन्द्रकान्तमणि (मे) मेरा (लोहम्) सुवर्ण (च) तथा कान्तिसार आदि (मे) मेरा (सीसम्) सीसा (च) और लाख (मे) मेरा (त्रपु) जस्ता (च) और पीतल आदि ये सब (यज्ञेन) सङ्ग करने योग्य व्यवहार से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥१३॥

    भावार्थ - मनुष्य लोग पृथिवीस्थ पदार्थों को अच्छी परीक्षा से जान के इनसे रत्न और अच्छे-अच्छे धातुओं को पाकर सबके हित के लिये उपयोग में लावें॥१३॥

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