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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 24
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सोमादयो देवताः छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    सोमा॑य ल॒बानाल॑भते॒ त्वष्ट्रे॑ कौली॒कान् गो॑षा॒दीर्दे॒वानां॒ पत्नी॑भ्यः कु॒लीका॑ देवजा॒मिभ्यो॒ऽग्नये॑ गृ॒हपत॑ये पारु॒ष्णान्॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमा॑य। ल॒बान्। आ। ल॒भ॒ते॒। त्वष्ट्रे॑। कौ॒ली॒कान्। गो॒षा॒दीः। गो॒सा॒दीरिति॑ गोऽसा॒दीः। दे॒वाना॑म्। पत्नी॑भ्यः। कु॒लीकाः। दे॒व॒जा॒मिभ्य॒ इति॑ देवऽजा॒मिभ्यः॑। अ॒ग्नये॑। गृ॒हप॑तय॒ इति॑ गृ॒हऽप॑तये। पा॒रु॒ष्णान् ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमाय लबानालभते त्वष्ट्रे कौलीकान्गोषादीर्देवानाम्पत्नीभ्यः कुलीका देवजामिभ्यो ग्नये गृहपतये पारुष्णान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमाय। लबान्। आ। लभते। त्वष्ट्रे। कौलीकान्। गोषादीः। गोसादीरिति गोऽसादीः। देवानाम्। पत्नीभ्यः। कुलीकाः। देवजामिभ्य इति देवऽजामिभ्यः। अग्नये। गृहपतय इति गृहऽपतये। पारुष्णान्॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 24
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे पक्षियों का काम जाननेवाला जन (सोमाय) ऐश्वर्य के लिये (लबान्) बटेरों (त्वष्ट्रे) प्रकाश के लिये (कौलीकान्) कौलीक नाम के पक्षियों (देवानाम्) विद्वानों की (पत्नीभ्यः) स्त्रियों के लिये (गोसादीः) जो गौओं को मारती हैं, उन पखेरियों (देवजामिभ्यः) विद्वानों की बहिनियों के लिये (कुलीकाः) कुलीक नामक पखेरियों और (अग्नये) जो अग्नि के समान वर्त्तमान (गृहपतये) गृहपालन करने वाला उस के लिये (पारुष्णान्) पारुष्ण पक्षियों को (आ, लभते) प्राप्त होता है, वैसे तुम भी प्राप्त होओ॥२४॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य पक्षियों के स्वभावज कामों को जानकर उनकी अनुहारि किया करते हैं, वे बहुश्रुत के समान होते हैं॥२४॥

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