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यजुर्वेद अध्याय - 39

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  • यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 13
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    य॒माय॒ स्वाहाऽन्त॑काय॒ स्वाहा॑ मृ॒त्यवे॒ स्वाहा॒ ब्रह्म॑णे॒ स्वाहा॑ ब्रह्मह॒त्यायै॒ स्वाहा॑ विश्वे॑भ्यो दे॒वेभ्यः॒ स्वाहा॒ द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॒ स्वाहा॑॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒माय॑। स्वाहा॑। अन्त॑काय। स्वाहा॑। मृ॒त्यवे॑। स्वाहा॑। ब्रह्म॑णे। स्वाहा॑। ब्र॒ह्म॒ह॒त्याया॒ इति॑ ब्रह्मऽह॒त्यायै॑। स्वाहा॑। विश्वे॑भ्यः। दे॒वेभ्यः॑। स्वाहा॑। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। स्वाहा॑ ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमाय स्वाहान्तकाय स्वाहा मृत्यवे स्वाहा ब्रह्मणे स्वाहा ब्रह्महत्यायै स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा द्यावापृथिवीभ्याँ स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यमाय। स्वाहा। अन्तकाय। स्वाहा। मृत्यवे। स्वाहा। ब्रह्मणे। स्वाहा। ब्रह्महत्याया इति ब्रह्मऽहत्यायै। स्वाहा। विश्वेभ्यः। देवेभ्यः। स्वाहा। द्यावापृथिवीभ्याम्। स्वाहा॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 39; मन्त्र » 13
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! तुम लोग (यमाय) नियन्ता न्यायाधीश वा वायु के लिये (स्वाहा) इस शब्द का (अन्तकाय) नाशकर्त्ता काल के लिये (स्वाहा) (मृत्यवे) प्राणत्याग करानेवाले समय के लिये (स्वाहा) (ब्रह्मणे) बृहत्तम अति बड़े परमात्मा के लिये वा ब्राह्मण विद्वान् के लिये (स्वाहा) (ब्रह्महत्यायै) ब्रह्म वेद वा ईश्वर वा विद्वान् की हत्या के निवारण के लिये (स्वाहा) (विश्वेभ्यः) सब (देवेभ्यः) दिव्य गुणों से युक्त विद्वानों वा जलादि के लिये (स्वाहा) और (द्यावापृथिवीभ्याम्) सूर्य्यभूमि के शोधने के लिये (स्वाहा) इस शब्द का प्रयोग करो॥१३॥

    भावार्थ - जो मनुष्य न्यायव्यवस्था का पालन कर अल्पमृत्यु को निवारण कर ईश्वर और विद्वानों का सेवन कर ब्रह्महत्यादि दोषों को छुड़ा के सृष्टिविद्या को जान के अन्त्येष्टिकर्म विधि करते हैं, वे सब के मङ्गल देनेवाले होते हैं। सब काल में इस प्रकार मृतशरीर को जला के सब के सुख की उन्नति करनी चाहिये॥१३॥

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