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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 27
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - स्वराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    प्र याभि॒र्यासि॑ दा॒श्वास॒मच्छा॑ नि॒युद्भि॑र्वायवि॒ष्टये॑ दुरो॒णे। नि नो॑ र॒यिꣳ सु॒भोज॑सं युवस्व॒ नि वी॒रं गव्य॒मश्व्यं॑ च॒ राधः॑॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। याभिः॑। यासि॑। दा॒श्वास॑म्। अच्छ॑। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। वा॒यो॒ इति॑ वायो। इ॒ष्टये॑। दु॒रो॒णे। नि। नः॒। र॒यिम्। सु॒भोज॑स॒मिति॑ सु॒ऽभोज॑सम्। यु॒व॒स्व॒। नि। वी॒रम्। गव्य॑म्। अश्व्य॑म्। च॒। राधः॑ ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र याभिर्यासि दाश्वाँसमच्छा नियुद्भिर्वायविष्टये दुरोणे । नि नो रयिँ सुभोजसँ युवस्व नि वीरङ्गव्यमश्व्यठञ्च राधः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। याभिः। यासि। दाश्वासम्। अच्छ। नियुद्भिरिति नियुत्ऽभिः। वायो इति वायो। इष्टये। दुरोणे। नि। नः। रयिम्। सुभोजसमिति सुऽभोजसम्। युवस्व। नि। वीरम्। गव्यम्। अश्व्यम्। च। राधः॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 27
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    Meaning -
    O learned person, powerful like the air, we carefully seek thee, full of desirable, noble qualities. Send in our home wealth, worthy of enjoyment and giver of pleasure. Give us a heroic son, and gifts of kine and horses.

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