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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 472
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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इ꣡न्द्रा꣢येन्दो म꣣रु꣡त्व꣢ते꣣ प꣡व꣢स्व꣣ म꣡धु꣢मत्तमः । अ꣣र्क꣢स्य꣣ यो꣡नि꣢मा꣣स꣡द꣢म् ॥४७२॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रा꣢꣯य । इ꣣न्दो । मरु꣡त्व꣢ते । प꣡व꣢꣯स्व । म꣡धु꣢꣯मत्तमः । अ꣣र्क꣡स्य꣢ । यो꣡नि꣢꣯म् । आ꣣स꣡द꣢म् । आ꣣ । स꣡दम् ॥४७२॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रायेन्दो मरुत्वते पवस्व मधुमत्तमः । अर्कस्य योनिमासदम् ॥४७२॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्राय । इन्दो । मरुत्वते । पवस्व । मधुमत्तमः । अर्कस्य । योनिम् । आसदम् । आ । सदम् ॥४७२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 472
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
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विषय - अगले मन्त्र में इन्दु नाम से परमात्मा-रूप-सोम का आह्वान है।
पदार्थ -
हे (इन्दो) चन्द्रमा के सदृश आह्लादक, रस से आर्द्र करनेवाले रसनिधि परमात्मन् ! (मधुमत्तमः) अतिशय मधुर आप (मरुत्वते इन्द्राय) प्राणयुक्त मेरे आत्मा के लाभार्थ, (अर्कस्य) उपासक उस आत्मा के (योनिम्) निवासगृह हृदय में (पवस्व) प्राप्त हों ॥६॥
भावार्थ - समाधि-दशा में रसागार परमेश्वर से प्रवाहित होता हुआ आनन्द-संदोह हृदय में व्याप्त होकर उपासक जीव का महान् कल्याण करता है ॥६॥
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