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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1810
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - द्विपदा गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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प꣡व꣢स्व सोम म꣣न्द꣢य꣣न्नि꣡न्द्रा꣢य꣣ म꣡धु꣢मत्तमः ॥१८१०॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । मन्द꣡य꣢न् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । म꣡धु꣢꣯मत्तमः ॥१८१०॥


स्वर रहित मन्त्र

पवस्व सोम मन्दयन्निन्द्राय मधुमत्तमः ॥१८१०॥


स्वर रहित पद पाठ

पवस्व । सोम । मन्दयन् । इन्द्राय । मधुमत्तमः ॥१८१०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1810
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(सोम) शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (मधुमत्तमः) अत्यन्त मधुर रस वाला (इन्द्राय) उपासक आत्मा के लिये (मन्दयन्) आनन्द देने के हेतु (पवस्व) प्राप्त हो॥१॥

विशेष - ऋषिः—जमदग्निः (प्रज्वलित-प्रकाशित ज्ञानाग्निवाला उपासक)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला परमात्मा)॥ छन्दः—द्विपदा गायत्री॥<br>

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