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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 33
ऋषिः - सिन्धुद्वीप आम्बरीषः, त्रित आप्त्यो वा देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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शं꣡ नो꣢ दे꣣वी꣢र꣣भि꣡ष्ट꣢ये꣣ शं꣡ नो꣢ भवन्तु पी꣣त꣡ये꣢ । शं꣢꣫ योर꣣भि꣡ स्र꣢वन्तु नः ॥३३॥

स्वर सहित पद पाठ

श꣢म् । नः꣢ । देवीः꣢ । अ꣣भि꣡ष्ट꣢ये । शम् । नः꣣ । भवन्तु । पीत꣡ये꣢ । शम् । योः । अ꣣भि꣢ । स्र꣣वन्तु । नः ॥३३॥


स्वर रहित मन्त्र

शं नो देवीरभिष्टये शं नो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु नः ॥३३॥


स्वर रहित पद पाठ

शम् । नः । देवीः । अभिष्टये । शम् । नः । भवन्तु । पीतये । शम् । योः । अभि । स्रवन्तु । नः ॥३३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 33
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 13
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
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पदार्थ -
(देवीः) परमात्मा की ज्ञानज्योतियाँ (नः-अभीष्टये) हमारी अभिकांक्षा-आभ्युदयिक सुखसम्पत्ति के लिये (शं भवन्तु) कल्याणकारी होवें, तथा (नः पीतये शम्) हमारी तृप्ति, निःश्रेयसप्राप्ति—मुक्ति के लिये कल्याणकारी होवें (शंयोः-नः-अभिस्रवन्तु) वे सुख शान्ति को हमारे ‘अभि-उभयतः’—दोनों क्षेत्रों में बहावें वर्षावें।

भावार्थ - परमात्मा की ज्ञानज्योतियाँ सर्वत्र व्याप्त हैं, वे हैं सृष्टिकर्तृता, नियन्तृता, कर्मफलदातृता आदि हमारी अभिकांक्षाओं गन्धसुख रससुख आदि के लिये, प्रत्येक गन्धादि भोग्य वस्तु में परमात्मा की महिमा, कला, विभूति, झाँकी भासित होती रहे, तभी गन्धादि सुख सच्चा सुख हो सकेगा अन्यथा परिणामतः दुःख ही सिद्ध होगा। एवं आत्मा के अन्दर साक्षात् हुईं ज्योतियाँ आनन्द धाराएँ बनकर तृप्ति—मुक्ति के लिये सिद्ध होंगी॥१३॥

विशेष - ऋषिः—सिन्धुद्वीप आम्बरीषस्त्रित आप्त्यो वा (स्यन्दमान संसारप्रवाह और स्यन्दमान मोक्षप्रवाह—दोनों प्रवाहों में आप्ति वाला अभ्युदय और निःश्रेयस का साधक हृदयाकाश में ईषा—गतिवाला या व्यापक परमात्मा में स्थूल सूक्ष्म कारण शरीर बन्धन से रहित हुआ जीवन्मुक्त)॥ देवता—देव्यः (परमात्मा की ज्ञान ज्योतियाँ)॥<br>

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