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अथर्ववेद > काण्ड 1 > सूक्त 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
    सूक्त - सिन्धुद्वीपम् देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त

    अ॒म्बयो॑ य॒न्त्यध्व॑भिर्जा॒मयो॑ अध्वरीय॒ताम्। पृ॑ञ्च॒तीर्मधु॑ना॒ पयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒म्वयः॑ । य॒न्ति॒ । अध्व॑ऽभिः । जा॒मयः॑ । अ॒ध्व॒रि॒ऽय॒ताम् ।पृ॒ञ्च॒तीः । मधु॑ना । पय॑: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अम्बयो यन्त्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्। पृञ्चतीर्मधुना पयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अम्वयः । यन्ति । अध्वऽभिः । जामयः । अध्वरिऽयताम् ।पृञ्चतीः । मधुना । पय: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अम्बयः) पाने योग्य माताएँ और (जामयः) मिलकर भोजन करने हारी, बहिनें [वा कुलस्त्रियाँ] (मधुना) मधु के साथ (पयः) दूध को (पृञ्चतीः) मिलाती हुई (अध्वरीयताम्) हिंसा न करने हारे यजमानों के (अध्वभिः) सन्मार्गों से (यन्ति) चलती हैं ॥१॥

    भावार्थ - जो पुरुष, पुत्रों के लिये माताओं के समान और भाइयों के लिये बहिनों के समान हितकारी होते हैं, वे सन्मार्गों से आप चलते और सबको चलाते हैं ॥१॥

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