Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 75
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्यो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    6

    या ओष॑धीः॒ पूर्वा॑ जा॒ता दे॒वेभ्य॑स्त्रियु॒गं पु॒रा। मनै॒ नु ब॒भ्रूणा॑म॒हꣳ श॒तं धामा॑नि स॒प्त च॑॥७५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याः। ओष॑धीः। पूर्वाः॑। जा॒ताः। दे॒वेभ्यः॑। त्रि॒यु॒गमिति॑ त्रिऽयु॒गम्। पु॒रा। मनै॑। नु। ब॒भ्रूणा॑म्। अ॒हम्। श॒तम्। धामा॑नि। स॒प्त। च॒ ॥७५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याऽओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगम्पुरा । मनै नु बभ्रूणामहँ शतन्धामानि सप्त च॥


    स्वर रहित पद पाठ

    याः। ओषधीः। पूर्वाः। जाताः। देवेभ्यः। त्रियुगमिति त्रिऽयुगम्। पुरा। मनै। नु। बभ्रूणाम्। अहम्। शतम्। धामानि। सप्त। च॥७५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 75
    Acknowledgment

    भावार्थ - पृथ्वीवर व जलामध्ये जी औषधी तयार होते ती तीन वर्षांपूर्वीची परिपक्व झालेली असावी. माणसांनी वैद्यक शास्राप्रमाणे ती सेवन करावी. अशी औषधी सर्व अंगांगात भिनून तत्काळ रोग नाहीसे करून सुखी करते.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top