Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसुयुर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
    5

    अग्ने॑ पावक रो॒चिषा॑ म॒न्द्रया॑ देव जि॒ह्वया॑। आ दे॒वान् व॑क्षि॒ यक्षि॑ च॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। पा॒व॒क॒। रो॒चिषा॑। म॒न्द्रया॑। दे॒व॒। जि॒ह्वया॑। आ। दे॒वान्। व॒क्षि॒। यक्षि॑। च॒ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव जिह्वया । आ देवान्वक्षि यक्षि च ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। पावक। रोचिषा। मन्द्रया। देव। जिह्वया। आ। देवान्। वक्षि। यक्षि। च॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    भावार्थ - जसा सूर्य आपल्या प्रकाशाने सर्व जगाला प्रसन्न करतो तसे आप्त, उपदेशक व विद्वान यांनी सर्व प्राण्यांना प्रसन्न करावे.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top