Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 78
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    6

    वेदे॑न रू॒पे व्य॑पिबत् सुतासु॒तौ प्र॒जाप॑तिः। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वेदे॑न। रू॒पेऽइति॑ रू॒पे। वि। अ॒पि॒ब॒त्। सु॒ता॒सु॒तौ। प्र॒जाप॑ति॒रिति॒ प्र॒जाऽप॑तिः। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वेदेन रूपे व्यपिबत्सुतासुतौ प्रजापतिः । ऋतेन सत्यमिन्द्रियँविपानँ शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतम्मधु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वेदेन। रूपेऽइति रूपे। वि। अपिबत्। सुतासुतौ। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः। ऋतेन। सत्यम्। इन्द्रियम्। विपानमिति विऽपानम्। शुक्रम्। अन्धसः। इन्द्रस्य। इन्द्रियम्। इदम्। पयः। अमृतम्। मधु॥७८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 78
    Acknowledgment

    भावार्थ - वेदांना जाणणारेच धर्माधर्माला जाणू शकतात. धर्माचे आचरण व अधर्माचा त्याग करून ते सुखी होऊ शकतात.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top